ॐ नमः हरिहराय

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ही लव्ज़ मी ‘नॉट’

नितिन के. मिश्रा 


Prologue


हौंडा सिटी के पहियों की सड़क पर ज़ोरदार रगड़ की आवाज़ रात के सन्नाटे में दूर तक गूंजी। सुनसान खाली स्याह सडक पर गाड़ी किसी फनिहर नाग की भाँति लहरा रही थी। साफ़ ज़ाहिर था कि कार चालक या तो अपनी औकात से अधिक पिए हुए था या फिर जिंदगी से बेज़ार होकर उसने अपने जीवन और कार की कमान छोड़ दी थी।


चकराता के पहाड़ी रास्ते पर एक सौ अस्सी की रफ़्तार से भागती हुई हौंडा सिटी रात्रि आसमान में गर्जन कर रहे मेघों को चुनौती देने के अन्दाज़ में हुंकार भरते हुए साइड बैरियर्स तोड़ कर दर्रे की गहराई नापने लगी। 


कुछ ही पलों में दर्रा गगन भेदी धमाके से गूँज उठा। गाड़ी दर्रे में बहती नदी के बीचों-बीच उभरी चट्टानों में से एक से टकराई थी। पिचके कनस्तर सी नजर आ रही हौंडा सिटी का अगला दरवाज़ा उखड़ कर पानी में बह गया था और अप्राकृतिक कोण पर मुड़ा-तुड़ा एक निर्जीव शरीर सीट बेल्ट से लटका हुआ बाहर झूल रहा था। 


ऊंचाई से गिरने के कारण गाड़ी की डिक्की खुल गयी थी। 

अंदर से दो अलग-अलग मर्दाना और जनाना हाथ बाहर झाँक रहे थे जिनसे टपकती लहू की बूँदें नीचे नदी में गिर कर अपना अस्तित्व खो रही थीं।


गाड़ी से काले धुएँ के उठते गुबार के बीच सुलगती चिंगारियां अठखेलियाँ करते हुए पेट्रोल टैंक से होते रिसाव से जा मिली। 


एक और गगनभेदी धमाका हुआ। 

इस धमाके के प्रभाव ने चट्टानों के बीच फंसी गाड़ी को नदी की आवेग से उफनती लहरों के हवाले कर दिया। जलती हुई गाड़ी उठती-गिरती लहरों पर सवार यूं बह चली जैसे कटी हुई पतंग हवा के अधीन दिशाहीन होकर बहती है। 


कुछ ही देर में पानी पर तैरता आग का वो गुबार नज़रों से ओझल हो गया। दर्रे के ऊपर सड़क के मुहाने पर टूटी हुई साइड बैरियर के पास एक साया खड़ा था जो मूक दर्शक बना उस पूरे दृश्य को देख रहा था। कुछ देर तक वहीं खड़ा रहने के पश्चात वो साया भी रात के अँधेरे में कहीं लोप हो गया।


One Year Later 


‘रिंग अराउंड द रोज़ीस, पॉकेट फुल ऑफ़ पोजिज़

हशा-बुशा, वी ऑल फॉल डाउन’


अनंतिका के कानों में छोटी बच्ची की पतली, खनकती आवाज़ में नर्सरी राइम की धुन पड़ी। उसने चौंक कर अपना चेहरा उठाया। 


अपनी आँखों के सामने उसे वो 8 साल की बच्ची खड़ी दिखाई दे रही थी। अनंतिका को ऐसा लगा कि वो उस बच्ची को अच्छी तरह जानती है लेकिन फिर भी उसे याद नहीं आ रहा था कि आख़िर वो बच्ची कौन है और अनंतिका उसे कैसे जानती है। 


कितनी भोली और मासूम थी वो बच्ची जो सामने खड़ी अपनी हिरणी जैसी बड़ी-बड़ी आँखों से अनंतिका को देख रही थी। उस बच्ची ने गुलाब के रंग की लाल वेल्वेट फ्रॉक पहनी हुई थी और उसके हाथ में एक प्यारा सा सफ़ेद टेडी बेयर था, उसके गोरे और कोमल पैरों में कोई फुटवेयर नहीं थी और उनपर यूं हल्की धूल की परत थी जैसे अभी बाहर मिट्टी में खेल कर आई हो। 


अनंतिका ने आस-पास देखा। 


उसके पीछे एक पुरानी खंडहर जैसी इमारत थी जिसके चारों तरफ़ ऊँचे पेड़ों और झाड़ियों का एक जंगल सा उगा हुआ था। जंगली क्रीपर्स और वाइन्स ने उस पुरानी खंडहरनुमा इमारत के ज़्यादातर हिस्से पर अतिक्रमण कर लिया था। दूर से देखने पर वो इमारत उस छोटे से जंगल का ही अभिन्न अंग नज़र आती थी।


अनंतिका अब उस इमारत को देख रही और यह याद करने की कोशिश कर रही थी कि उसने वो इमारत कहाँ देखी है। उस अजीब से बियाबान में वो छोटी बच्ची क्या कर रही है? 


अनंतिका बच्ची की तरफ़ पलटी और उससे प्यार से पूछा,

“आप कौन हो बेटा? और यहाँ अकेले क्या कर रहे हो? आपके मम्मा-पापा कहाँ हैं?”


वो छोटी बच्ची दो पल अनंतिका को अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से अपलक देखती रही फिर वो खिलखिला कर हंसी और फिर किसी छोटे से ख़रगोश की तरह तेज़ी से भागती हुई ऊँची झाड़ियों के पीछे कहीं ओझल हो गयी। 

अनंतिका चिल्लाई।

“अरे रुको! कहाँ जा रही हो? यहाँ झाड़ियों में मत जाओ, चोट लग जाएगी,”


अनंतिका भी उस बच्ची के पीछे घनी झाड़ियों की तरफ़ भागी। 

जाने वो बच्ची झाड़ियों के पीछे कहाँ ग़ायब हो गयी थी। सिर्फ़ कहीं दूर से उसकी राइम सुनाई दे रही थी। 


‘रिंग अराउंड द रोज़ीस, पॉकेट फुल ऑफ़ पोजिज़

हशा-बुशा, वी ऑल फॉल डाउन’ 


अनंतिका दूर से आती उस आवाज़ की दिशा में आगे बढ़ी। 

आगे झाड़-झंखाड़ और चारों तरफ़ फैली जंगली बेलों और लताओं का जाल और सघन होता जा रहा था। वातावरण में धुँधलका तेज़ी से बढ़ रहा था। कुछ भी साफ़-साफ़ दिखाई नहीं दे रहा था। 


अनंतिका ने अपने सामने एक पेड़ की ऊँची डाल से पर्दों की मानिंद लटकती बेलों और लताओं के जाल को हटाया। सामने दूर उसे झाड़ियों के बीच एक पुराना कुआँ दिखाई दिया जिसके पत्थरों को भी लताओं और जंगली बेलों ने अपनी चपेट में ले लिया था। 


अपने हाथ में टेडी पकड़े वो बच्ची कुएँ की मुँडेर पर चढ़ी हुई थी और नीचे कुएँ के अंदर झांक रही थी। अनंतिका आतंकित भाव से चिल्लाई,

“नहीं! पीछे हटो वहाँ से!”


उस बच्ची ने इत्मिनान से सर उठा कर अनंतिका की ओर देखा और खिलखिला कर हंसी और फिर से नर्सरी राइम गाने लगी।

‘रिंग अराउंड द रोज़ीस, पॉकेट फुल ऑफ़ पोजिज़

हशा-बुशा, वी ऑल फॉल डाउन’ 


अनंतिका तेज़ी से बच्ची की तरफ़ भागी लेकिन उसके कुएँ तक पहुँच पाने से पहले ही जंगली बेलों का जाल उसके पैर में फँस गया और वो तेज़ी से नीचे सूखे पत्तों, टहनियों और बेलों पर जा गिरी। 


अनंतिका को ऐसा लगा जैसे उसकी आँखों के आगे अंधेरा छा रहा है, जैसे वो बेहोश होने वाली है। 

बेहोश होने से पहले उसने जो आख़री दृश्य देखा वो उस कुएँ की मुँडेर पर खड़ी बच्ची का था। 


वो अब भी अनंतिका को देख कर खिलखिला कर हंस रही थी। फिर उसने जैसे खुद को फ़्री फ़ॉल के लिए छोड़ दिया। उसका जिस्म तेज़ी से कुएँ की गहराई में गिरने लगा। अनंतिका ज़ोर से चीखी।


“नहीं!!!”


***


अनंतिका ने चौंक कर आँखें खोली। 


उसकी साँस उखड़ी हुई थी और पूरा जिस्म पसीने से नहाया हुआ था। 

निखिल ने उसका चेहरा अपने दोनों हाथों में लिया हुआ था और उसे जगाने की कोशिश करते हुए कह रहा था।


“अनी…वेक-अप अनी! कोई बुरा सपना देखा क्या?”


“स।।सपना!?”

अनंतिका चौंक कर सीधी हुई। 


वो एस.यू.वी. में निखिल के बग़ल की पैसेंजर सीट पर बैठी हुई थी। 

सफ़र के दौरान कब उसकी आँख लग गयी उसे पता ही ना चला। 


और फिर वो भयानक सपना! वो बच्ची। और वो खंडहर! वो अजीब सा जंगल और कुआँ! क्या वो सब सपना था? 


इतना रीयलिस्टिक सपना अनंतिका ने पहले कभी नहीं देखा था। उसे ऐसा फ़ील हुआ था जैसे वो वास्तविकता में उस सपने को जी रही हो। 


निखिल उसकी तरफ़ पानी की बोतल बढ़ाते हुए बोला

“लो थोड़ा पानी पियो।”


“हम चकराता पहुँच गए क्या?”

अनंतिका ने दो घूँट पानी पी कर सवाल किया।


“बिल्कुल! आधे रास्ते के बाद मैं ड्राइव करता रहा और मैडम खर्राटे मार कर सोती रहीं। चलो बाहर आओ।”

कहते हुए निखिल बाहर निकल गया, अनंतिका भी उसके पीछे गाड़ी से बाहर निकली। 


“आर यू श्योर दिस इज़ द प्लेस?”

“एब्सोल्यूटली!”


“हम्म…नॉट बैड! नॉट बैड एट ऑल!”! अनंतिका चहकते हुए बोली।


उसके सामने एक काफ़ी पुरानी तीन मंज़िला इमारत थी जो अब भी बुलंद और बढ़िया हालत में थी। पुराने जमाने के कॉटिज के रूप में बनायी गयी उस इमारत के आस-पास की ज़मीन जो कभी एक खूबसूरत और आलीशान बाग़ीचा रही होगी वो अब झंखाड़ में बदल चुकी थी। 


उस जगह में एक अजीब सा आकर्षण, एक अनजाना सा सुकून था। 

वहां पहुँचने से पहले अनंतिका उस जगह के बारे में काफी संशय में थी, उसे उम्मीद नहीं थी कि साउथ दिल्ली की कटिंग एज लाइफ स्टाइल के बाद चकराता जैसे स्मॉल टाउन की सिम्पल लाइफ में वो एडजस्ट हो पाएगी लेकिन वो जगह उसे अपनी उम्मीद से अधिक पसंद आई थी। 


बस ये बात वो निखिल पर जाहिर नहीं करना चाहती थी।


“आई न्यू इट!” निखिल ने जानकार वाक्य अधूरा छोड़ा।


“न्यू व्हॉट?”


“दैट यू विल लव दिस प्लेस,” निखिल नज़रों के कोनों से अनंतिका को परखते हुए बोला।


स्पष्ट था कि निखिल से अनंतिका के मनोभाव नहीं छुपे थे। अनंतिका ने निखिल की ओर देखा, निखिल उसे ही देखकर मुस्कुरा रहा था। निखिल की यही अदा अनंतिका को सबसे ज्यादा पसंद थी, अनंतिका के बिना कुछ कहे ही निखिल उसके दिल की बात समझ जाता था। पिछले तीन साल से अनंतिका और निखिल लिव-इन रिलेशनशिप में थे।


अनंतिका पेशे से एक पेंटर और आर्ट क्यूरेटर थी जबकि निखिल एक एकाउंटिंग फर्म के लिए काम करता था। अनंतिका से निखिल की मुलाक़ात एक आर्ट एग्ज़िबिशन में हुई थी। उस आर्ट गैलरी ओनर के एकाउंट्स निखिल सम्भालता था और ओनर के साइन लेने के लिए गैलरी पहुंचा था। आर्ट गैलरी में उस समय अनंतिका की पेंटिंग्स की एग्ज़िबिशन लगी थी। 


पेंटिंग्स से ज्यादा निखिल को अनंतिका पसंद आई थी। पूरे समय वो नज़रें चुरा कर उसे ही देखता रहा, जल्द ही अनंतिका को भी खुद पर स्थित उन नज़रों का एहसास हो गया। पहले पहल अनंतिका ने निखिल को कोई आर्ट क्रिटिक समझ लिया और उसके पास पेंटिंग्स के प्रति उसके रिव्यू जानने के इरादे से पहुंची।


“मुझे आर्ट की समझ नहीं, मैं तो सिर्फ बैलेंस शीट और एकाउंट्स की भाषा समझता हूँ और मेरे हिसाब से अगर ये पेंटिंग्स एसेट हैं तो आपकी ख़ूबसूरती लायबिलिटी,” निखिल मुस्कुराते हुए बोला।


“क्या मतलब?”


“आपकी इस ख़ूबसूरती के आगे आपकी पेंटिंग्स को कोई देख ही नहीं सकता, सबकी नज़रें सिर्फ आप पर ही टिकी हुई हैं,”


“तो अपनी पेंटिंग्स की वैल्यू बढ़ाने के लिए मुझे अपनी ख़ूबसूरती घटा देनी चाहिए?” अनंतिका कुछ सोच कर मुस्कुराते हुए बोली।


“नहीं, एक आपको एक अच्छा अकाउंटेंट हायर करना चाहिए, जो आपकी लायबिलिटीज़ का ख्याल रखे," निखिल ने कहते हुए जेब से अपना विज़िटिंग कार्ड निकाला और अनंतिका की तरफ बढ़ा दिया।


अनंतिका खुद को खिलखिला कर हंसने से ना रोक पाई।


“हाहाहा…दिस इज़ द चीज़ीएस्ट पिक-अप लाइन आई हैव हर्ड इन माय लाइफ,” अनंतिका ने उसका विज़िटिंग कार्ड लेते हुए कहा।


“डिड इट वर्क?” निखिल आशापूर्ण भाव से बोला।


अनंतिका ने उसके विज़िटिंग कार्ड के पिछले हिस्से पर अपना मोबाइल नम्बर लिख कर निखिल की तरफ बढ़ा दिया।


“कॉल मी टू फाइंड आउट,”


वहां से निखिल और अनंतिका के रिश्ते की शुरुआत हुई जो कि कुछ ही महीनों में इतना गहरा हो गया कि दोनों ने एक-दूसरे के साथ रहने का फैसला कर लिया। 

दोनों ही आज के समय के आज़ाद ख्याल युवा थे इसलिए शादी करके उम्र भर एक साथ बंधने के बजाए एक-दूसरे से अपनी कॉम्पेटिबिलिटी जाँच-परख लेना चाहते थे। 


दोनों के लाइन ऑफ़ वर्क, इंट्रेस्ट, लाइक्स सब कुछ एक-दूसरे से जुदा थे। 


निखिल को आर्ट में लेशमात्र भी दिलचस्पी नहीं थी जबकि कला अनंतिका के लिए ऑक्सीजन जितनी ही ज़रूरी थी। 

निखिल सेलेक्टिवली सोशल था, पार्टी और जलसों से उसका दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था। जब तक बहुत ज़रूरी ना हो निखिल रिज़र्व ही रहता था और लोगों से घुलना-मिलना पसंद नहीं करता था। अनंतिका पूरी दुनिया में शायद इकलौती अपवाद थी जिससे पहली मुलाक़ात में ही फ़्लर्ट करने की वो हिम्मत दिखा पाया। वास्तव में अनंतिका दुनिया में इकलौती ऐसी इंसान थी जिसके सामने अपनी सभी विषमताओं और झिझक की परतें खोल कर निखिल एक ज़िंदादिल युवा होता था। 


निखिल के बिलकुल ही विपरीत अनंतिका हाइली सोशल और उन्मुक्त लड़की थी। 


किसी भी प्रकार के बंधन उसे घुटन का एहसास देते थे। यही कारण था कि वो निखिल के साथ किसी बंधन में नहीं बंधना चाहती थी। 


वो अक्सर निखिल से कहती थी कि रिश्ते उसे क्लॉस्ट्रॉफोबिक करते हैं। इन असमानताओं के बावजूद विपरीत आकर्षण का सिद्धांत उनपर पूरी तरह लागू था। निखिल की जिंदगी का सार जहां अनंतिका पर आकर खत्म हो जाता था वहीं अनंतिका के लिए निखिल शायद एक ऐसी बेशकीमती कलाकृति की तरह था जो उसे बेइंतहा पसंद थी। 


ढाई साल एक-दूसरे को डेट करने के बाद निखिल ने एक दिन अनंतिका को शादी के लिए प्रपोज़ किया। 


निखिल अनंतिका की आदत और ज़रूरत बेशक बन चुका था लेकिन वो खुद नहीं जानती थी कि निखिल उसकी चाहत था या नहीं। अनंतिका के अंतर्मन का ये भावनात्मक द्वंद्व निखिल से छुप नहीं सका। निखिल ने अनंतिका को सोचने के लिए समय दे दिया, जितना भी समय अनंतिका लेना चाहे उतना समय। उस दिन के बाद उनके बीच कभी शादी का मुद्दा नहीं उठा।


फिर कुछ दिन पहले जिस एकाउंटिंग फर्म के लिए निखिल काम करता था उसने निखिल को चकराता में खुली एक एक्सपोर्ट कंपनी के एकाउंट्स हैंडल करने के लिए चकराता भेजने का फैसला किया। 

जिस कंपनी के लिए काम करने के लिए निखिल चकराता आया था उसने ही अकॉमडेशन की व्यवस्था की थी।


“अनलोडिंग का काम करने की फीस लगेगी मैडम, मुफ्त में काम नहीं होगा,”

आवाज़ ने अनंतिका की विचार तंत्रा भंग की। 

उसने देखा उनकी गाड़ी के पास खड़ा निखिल शरारती भाव से मुस्कुरा रहा था।


“मिस्टर अकाउंटेंट, फीस कैश लेंगे या काइंड?” अनंतिका मुस्कुराते हुए निखिल के पास आई।


“आप हमारी सबसे ख़ास क्लाइंट हैं मैडम, फीस हम हमेशा काइंड में ही लेंगे,” निखिल ने अनंतिका को अप्रत्याशित रूप से अपनी ओर खींचा और बाहों में भर लिया।


“होल्ड योर हॉर्सेस स्वीटहार्ट, वी आर स्टिल आउटडोर,” अनंतिका ने आस-पास नज़रें घुमाते हुए कहा। 

उस कॉटिज के बगल में एक और कॉटिज थी जिसे देखकर पता चल रहा था कि वहां लोगों की रिहाइश थी। इससे पहले कि अनंतिका निखिल को रोकती निखिल के होंठों ने अनंतिका के होंठों को अपनी गिरफ़्त में ले लिया। 


अनंतिका के जिस्म पर निखिल का कसाव बढ़ रहा था, उसके पूरे जिस्म में करेंट सी झनझनाहट दौड़ गई। अनंतिका की आँखें स्वतः ही बंद हो गईं। 


अनमने मन से प्रतिवाद करते हुए अनंतिका ने निखिल से सीने पर मुक्का मारा। निखिल के सीने पर अनंतिका की उंगलियाँ फिसलने लगी। उसने निखिल की मज़बूत बाहों की गिरफ़्त में खुद को ढीला छोड़ दिया। 


अनंतिका की कमर पर टिका निखिल का हाथ उसके जिस्म के विभिन्न कोनों पर फिसल रहा था। निखिल के लबों ने एक लम्बे चुम्बन के बाद अनंतिका के होंठों को आज़ाद किया लेकिन चुम्बन की प्रक्रिया जारी रखते हुए निखिल के होंठ अनंतिका की सुराहीदार गर्दन पर ठहर गए। 


अनंतिका को अपनी गर्दन पर निखिल के दांतों की चुभन महसूस हुई, ये चुभन उसे दर्द के साथ-साथ एक सुकून का एहसास भी दे रही थी। अनंतिका के एक पल को आँखें खोली, उसकी नज़रें बगल वाली कॉटिज की ओर ही थीं। 


कॉटिज की पहली मंजिल की खिड़की पर उसे एक साया दिखायी दिया। उस साये का रुख उनकी तरफ था और ये स्पष्ट था कि वो उन्हें ही देख रहा है। निखिल की पीठ उसकी तरफ़ थी इसलिए वो खिड़की पर खड़े उस साये की उपस्थिति से पूर्णतः अनभिज्ञ था। वैसे भी निखिल की आँखें बंद थीं, उस घड़ी वो सिर्फ अनंतिका को महसूस कर रहा था। 


निखिल का दाहिना हाथ अनंतिका के टैंक टॉप के अन्दर फिसलने लगा और उसके उभारों पर ठहर गया। अचानक ही उसे अनंतिका के शरीर में कसमसाहट महसूस हुई, अनंतिका उसे खुद से परे धकेलने की कोशिश कर रही थी।


“निखिल नो! लुक, समवन इज़ वॉचिंग अस,” अनंतिका की आवाज़ में सख्ती थी, वो वाकई खुद को निखिल से अलग करने की कोशिश कर रही थी। 


“देयर इज़ नो वन बेब,” निखिल की उँगलियों का कसाव अनंतिका के उभार पर बढ़ा। 


“आइ सेड नो!!” इस बार अनंतिका ने वाक़ई उसे ज़ोर से परे धकेला। 

निखिल सकपका कर अनंतिका से अलग हुआ। 


अनंतिका का चेहरा बुरी तरह आंदोलित नजर आ रहा था। निखिल की आँखों ने अनंतिका की नज़रों का अनुसरण किया।


“कोई तो नहीं है वहाँ,” निखिल भी उस खिड़की की ओर देखते हुए बोला।


“लेकिन कुछ देर पहले कोई था और वो हम-दोनों को ही देख रहा था,” अनंतिका ने जिद और रोष के मिश्रित भाव से कहा।


निखिल- ‘कोई था तो था, हमें क्या!!’ निखिल ने कंधे उचकाए और फिर से अनंतिका की कमर में हाथ डाल दिया।


“निखिल नो! वी डोंट नो दिस नेबरहुड येट। ये नई जगह है, यहाँ के लोगों को, उनकी सोच को हम नहीं जानते। हमें नहीं भूलना चाहिए कि ये साउथ देल्ही की ओपन सोसाइटी नहीं है बल्कि एक स्मॉल टाउन नेबरहुड है। हमारे ये तौर-तरीके यहाँ लोगों को नापसंद आ सकते है।।।एंड वी डोंट वॉंट टू ऑफेंड एनीवन, राइट?”


“राइट! वैसे भी मूड की बैंड बज चुकी है, सो लेट्स गेट बैक टू वर्क,” निखिल खिज भरे लहजे में बोला और गाड़ी से सामान के बड़े-बड़े बॉक्सेस उतारने लगा।

उन दोनों का पूरा दिन सामान की अनबॉक्सिंग और कॉटिज की बेसिक साफ़-सफाई और अरेंजमेंट करने में गुज़रा। रात तक दोनों ने बेसिक सेट-अप तैयार कर लिया था। उस घड़ी दोनों दिन-भर की थकान से चूर हो चुके थे। निखिल ने पास के ही एक फूड-जॉइंट से डिनर ऑर्डर किया।


“डिनर कब आएगा यार, आइ एम स्टार्विंग!,”


“ऑर्डर किए तो काफ़ी टाइम हो गया, अब तक आ जाना चाहिए था,” निखिल ने रिस्ट वॉच देखते हुए कहा। 

ठीक तभी डोरबेल बजी।


“आ गया! तुम प्लेट्स लगाओ अनी, मैं खाना लेकर आता हूँ,” कहते हुए निखिल सीढ़ियों से नीचे की तरफ़ भागा। 


इस बीच डोरबेल यूँ लगातार बज रही थी जैसे बजाने वाला खुद ही बेल के ऊपर चढ़ कर खड़ा हो गया हो। 

तेज़ कदमों से दरवाज़े की तरफ़ बढ़ते हुए निखिल झुंझला कर चिल्लाते हुए बोला।


“अरे बाबा आ रहा हूँ! एक तो खाना लाने में इतना टाइम लगा दिया उस पर से ऐसे पागलों की तरह बेल बजा रहा है जैसे भूत देख लिया…”

कॉटिज का मेन डोर खोलते हुए निखिल का वाक्य अधूरा रह गया। दरवाज़े के सामने कोई भी नहीं था, उसने सकपका कर नीचे देखा। 

खाने के डब्बे दरवाज़े के सामने नीचे फ़र्श पर रखे थे। 


निखिल ने कॉटिज के आउटर गेट की तरफ़ देखा। एक लगभग पैंतालीस साल का शख़्स गिरते-पड़ते बाहर की ओर भाग रहा था। निखिल अपने आप में बड़बड़ाया।


“इसे देख कर तो लगता है जैसे इसने सच में भूत देख लिया है,”

कॉटिज का बाहरी आयरन गेट खोलते हुए वो शख़्स वापस मुड़ा। 


उसकी डर से पथराई नज़रें पीछे कुछ देख रही थीं। निखिल ने देखा कि उस आदमी का ध्यान निखिल की उपस्थिति की ओर बिल्कुल भी नहीं था। वो तो उसके पीछे कॉटिज की ऊपरी मंज़िल की तरफ़ कुछ देख रहा था। 


इससे पहले कि निखिल कुछ समझ पाता उस आदमी की नज़रें निखिल से मिलीं।

“इस मनहूस कॉटिज में नहीं आना चाहिए था। ज़िंदा रहना चाहते हो तो चले जाओ यहाँ से,”


निखिल के कुछ कह पाने से पहले ही वो आदमी वापस मुड़ा और बाहर खड़ी साइकल पर सवार होकर यूँ भागा जैसे मौत उसके पीछे उसके साइकल के कैरियर पर सवार हो। अब तक अनंतिका भी बाहर आ गयी थी। 


उसने निखिल से पूछा।

“क्या हुआ? ये डिलीवरी वाला ऐसे क्यों भाग गया? क्या बोल रहा था वो?”


“पता नहीं, लगता है नशा किए हुए था साला! मैं फ़ूड-जॉइंट कॉल कर के कम्प्लेन करूँगा कि ऐसे चरसी-गंजेड़ी, भंगेड़ी लोगों को डिलीवरी के लिए ना भेजा करें। चलो खाना खाते हैं।”


डिनर के बाद दोनों कॉटिज के फर्स्ट फ्लोर पर बने सबसे बड़े कमरे में पहुंचे, जिसे कि वो अपना मास्टर बेडरूम बनाने वाले थे। 

फिलहाल उन लोगों ने फर्श पर ही एक गद्दा और चादर बिछा रखे थे| अपने ज़रूरत का छोटा सामान दोनों अपने साथ एस.यू.वी. से ले आए थे जबकि उनका फर्नीचर और अन्य बड़ा सामान अगली सुबह पैकर्स एंड मूवर्स सर्विस द्वारा लाया जाने वाला था। अनंतिका गद्दे पर ढेर हो गई जबकि दरवाज़े पर खड़ा हुआ निखिल उसे ही देख रहा था।


“क्या देख रहे हैं अकाउंटेंट साहब?” अनंतिका ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा।


“यू नो, जब तुम यूं मुझे 80s-90s की बीवियों की तरह अकाउंटेंट साहब बुलाती हो तो बहुत अच्छी फीलिंग आती है,”


निखिल एकटक अनंतिका को देख रहा था। कितनी बेइंतहा खूबसूरत थी वो, किसी तितली की भाँति उन्मुक्त और प्रकृति के सौंदर्य से आच्छादित। जो यूं ही उड़ते हुए उसके काँधे पर दो पल के लिए आ बैठी थी, और अब निखिल की हसरत यही थी कि उसे हौले से अपने प्रेम के आगोश में सदा के लिए कैद कर ले परन्तु वो जानता था कि तितली का सौन्दर्य, उसका यौवन उसकी स्वतंत्रता, उसकी उन्मुक्त उड़ान में था, बंधन में नहीं।


“वहां दरवाज़े पर खड़े क्या सोच रहे हैं अकाउंटेंट साहब? सुबह तो बड़े किंकी हो रहे थे…ज़रा यहाँ आइए आपको ऐसी हरकतें दिखाती हूँ जो 80s-90s की बीवियां बिलकुल नहीं करती थीं,”


अनंतिका की आँखें शरारत से भरी हुई थीं और आवाज़ में एक मादक कशिश थी। निखिल ने कमरे की लाइट बंद की और अनंतिका की ओर बढ़ा। अँधेरे में गद्दे पर बैठते हुए उसने अनंतिका को स्पर्श किया, अनंतिका अपने कपड़े उतार चुकी थी। निखिल ने भी अपने कपड़ों को जिस्म से परे किया और अनंतिका की दोनों टांगें पकड़ कर उसे नीचे खींचा। जाने कितनी ही देर तक दोनों एक-दूसरे में डूबते और उतरते रहे।


अनंतिका की आँख खुली उस समय लगभग रात के ढाई बज चुके होंगे। 

उसे कमरे में सर्द हवा के आने का एहसास हो रहा था। उसने ध्यान दिया कि कमरे की खिड़की खुली हुई है। 


कमरे के अंधेरे में बिना कपड़ों के ही अनंतिका उठ कर खिड़की की ओर बढ़ी। खिड़की के पल्ले पकड़ कर अनंतिका उन्हें लगाने ही वाली थी कि उसकी नज़रें सामने की तरफ उठीं। 


खुली हुई खिड़की के सामने के कॉटिज के फर्स्ट फ्लोर की वही खिड़की थी जिसपर उसने सुबह उस साये को खड़ा देखा था। 


उस समय, खिड़की के पार रौशनी थी जिसमें अनंतिका को खिड़की पर खड़ा साया साफ़ दिखाई दिया| 


वो अभी भी वैसे ही खड़ा हुआ था जैसे अनंतिका ने उसे दिन में देखा था। रात के अँधेरे और ठीक-ठाक दूरी के बावजूद अनंतिका उसे साफ़-साफ़ देख सकती थी। वो एक लड़का था, उससे शायद सात-आठ साल छोटा, बीस या बड़ी हद इक्कीस की उम्र का। लम्बा कद और गोरी रंगत वाला। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। अनंतिका नितांत अँधेरे में खड़ी थी लेकिन फिर भी उसे ऐसा लगा कि उस लड़के की आँखें उसे बिना कपड़ों के बिल्कुल साफ़-साफ़ देख सकती हैं। 


उस लड़के की नज़रें अनंतिका को अपने हर अंग पर फिसलती महसूस हुईं। अनंतिका हड़बड़ा कर खुली हुई खिड़की के पल्ले की ओट में हुई। अनंतिका ने हौले से पल्ले की ओट से सामने झाँका, लड़के की स्थिति में कोई परिवर्तन ना आया था वो यथावत खड़ा उसकी ओर देख रहा था। अनंतिका झुक कर फर्श पर बैठ गई और अपने हाथ उचका कर उसने खिड़की के पल्ले बंद कर दिए और मन ही मन ये फैसला किया कि अगले दिन वो सबसे पहला काम घर के खिड़की-दरवाज़ों पर पर्दे डालने का करेगी।


अगली सुबह निखिल जल्द ही काम पर जाने के लिए निकल गया। 


सुबह के दस बजे के करीब पैकर्स एंड मूवर्स की ट्रक उनका सामान ले आई। पैकिंग सर्विस वालों को इंस्ट्रक्ट करके अनंतिका फर्नीचर, एप्लायंसेज और अन्य भारी सामान घर में व्यवस्थित करवाने में लग गई। 


अपने पेंटिंग ईज़ल, कैनवास व आर्ट का बाक़ी सामान उसने ग्राउंड फ्लोर के हॉल में रखवाया, वो बड़ा हॉल आर्ट स्टूडियो बनाने के लिए बिलकुल परफेक्ट था। उस हॉल से जुड़े छोटे हॉल को लिविंग रूम बना कर वहाँ काउच, सेंटर टेबल और लिविंग रूम का बाक़ी सामान एडजस्ट कर दिया गया। बाकी गैर-ज़रूरी छोटे-बड़े सामान को छोटे हॉल से लगे हुए एक कमरे में डम्प कर दिया गया। 


ग्राउंड फ्लोर पर बने बड़े रसोईघर में किचेन का सारा सामान व्यवस्थित कर दिया गया जबकि बेडरूम की व्यवस्था पहली मंजिल पर बड़े कमरे में की गई जहां पिछली रात अनंतिका और निखिल सोए थे। उस कमरे के अलावा भी पहली मंजिल पर दो और कमरे थे लेकिन अनंतिका ने उन्हें यथावत छोड़ दिया। 


दोपहर दो बजे तक अनंतिका के अनुरूप पूरा घर व्यवस्थित हो चुका था। 

पैकिंग सर्विस वालों के जाने के बाद अनंतिका ने लंच का ऑर्डर उसी फ़ूड-जॉइंट में दिया जिससे पिछली रात उन लोगों ने डिनर मंगाया था। 

उसने पिछली रात आए डिलीवरी वाले की शिकायत भी की और ख़ास हिदायत दी कि किसी ढंग के आदमी को ही डिलीवरी के लिए भेजें। ऑर्डर प्लेस करने के बाद अनंतिका थकान उतारने के लिए नहाने चली गई।


बाथटब का हल्का गुनगुना पानी उसे बहुत सुकून दे रहा था। अनंतिका ने अपनी आँखें बंद कर लीं और जिस्म को बाथटब में ढीला छोड़ दिया। वो यहाँ आकर वाकई खुश थी। ये जगह उसके काम करने के लिए बिलकुल उपयुक्त थी और निखिल का साथ। अगर वो इतनी ही खुश थी तो फिर वो निखिल का मैरिज प्रपोज़ल ऐक्सेप्ट क्यों नहीं कर रही थी? आखिर दोनों पति-पत्नी की तरह रह रहे थे फिर शादी से गुरेज़ क्यों? अनंतिका के अंतर्मन ने उससे सवाल किया। 


उसी समय कॉटिज की कॉलबेल बजी। अनंतिका हड़बड़ा कर बाथटब से उठी, उसने अपने गीले बालों पर टॉवल लपेटा और शरीर पर बेदिंग गाउन डाल लिया। अनंतिका ने मन में सोचा कि पिछली रात के मुकाबले आज डिलीवरी वाला काफी जल्दी ऑर्डर ले आया। उसके दरवाज़े तक पहुँचने से पहले कॉलबेल एक बार फिर बजी।


अनंतिका ने दरवाज़ा खोला, सामने वही लड़का था जिसे उसने बगल वाली कॉटिज की खिड़की पर देखा था। अनंतिका ने उसके वहां होने की कल्पना नहीं की थी।


“हाय। आय एम अंश। अंश राजपूत,” लड़के ने एक सहज मुस्कान के साथ बोला।

उसे देखकर बुरी तरह चौंक गई अनंतिका वस्तुस्थिति अब भी समझ नहीं पा रही थी।


“आय एम सॉरी, मैंने शायद गलत टाइम पर आपको डिस्टर्ब किया,”

अनंतिका को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या कहे, वो बस बेदिंग गाउन पहने हुए बेवकूफों की तरह उसके सामने खड़ी उसका चेहरा देख रही थी।


“आप लोग यहाँ नए शिफ्ट हुए हैं, आई एम द बॉय नेक्स्ट डोर…लिटरली,”

लड़के ने बगल की कॉटिज की तरफ इशारा करते हुए कहा। 


अनंतिका अभी भी क्लूलेस थी, वो सिर्फ उस लड़के को ही देख रही थी। उसकी मुस्कान वाकई आकर्षक थी, पिछली रात तो उसने उसे दूर से और कुछ अँधेरे में देखा था अभी दिन के उजाले में सामने से देखने पर वो और भी नौजवान और खूबसूरत नजर आ रहा था। 


लड़के ने अनंतिका की ओर देखा।

“लुक…आय एम सॉरी, मैं बस आपको इनवाईट करने आया था,”


“इनवाईट?”


“जी। आप लोग हमारे पड़ोस में नए रहने आए हैं, इसलिए मेरी मॉम ने आज रात आप लोगों को डिनर पर इनवाईट किया है। उन्हें आर्थराइटिस है इसलिए खुद नहीं आ सकीं,”

अंश ने बगल वाले कॉटिज की तरफ इशारा किया। 


अनंतिका ने कॉटिज की तरफ देखा, एक लगभग साठ वर्ष की उम्र की महिला उसे कॉटिज के दरवाज़े पर व्हीलचेयर पर बैठी नजर आई। अनंतिका को अपनी तरफ देखता पा कर महिला के चेहरे पर एक सहज मुस्कान उभरी, उसने अनंतिका की तरफ हाथ हिलाया। अनंतिका ने सर हिला कर महिला का अभिवादन किया।


“सो, आर यू गाइज़ कमिंग टुनाइट फॉर डिनर?” अंश ने आशापूर्ण ढंग से पूछा।

उस समय वो अनंतिका को किसी बच्चे जैसा प्यारा नजर आ रहा था। अंश की आँखों में वो अजीब सी चमक, वो तीक्ष्णता नहीं थी जो पिछली रात अनंतिका ने खिड़की पर देखी थी। क्या वो उसकी नज़रों का धोखा था? उसके दिमाग का वहम?


“एक्सक्यूज मी, आर यू देयर?” 

अपने ही विचारों में उलझी अनंतिका के चेहरे के सामने अंश ने अपना हाथ हिलाया।


“अ…आय एम सॉरी…” अनंतिका हडबडाई,  “हम लोग आ जाएँगे डिनर के लिए,” 

अनंतिका झेंप में मुस्कुराते हुए बोली।


“दैट्स ग्रेट! ओके देन, सी यू टुनाइट।” अंश ने मुस्कुराते हुए कहा और अपनी कॉटिज की तरफ बढ़ गया। 


अनंतिका की नज़रें अंश से हट नहीं रही थीं। अंश अपनी कॉटिज पहुँच कर दरवाज़े पर खड़ी अपनी माँ से कुछ कह रहा था। उसी समय डिलीवरी बॉय अनंतिका का लंच ऑर्डर ले आया। 


***


“डिनर इज़ ऑसम!” 


“आप बहुत अच्छा खाना बनाती हैं आंटी,”

अनंतिका ने फिश फिलेट और स्टर फ्राइड मशरूम्स टेस्ट करते हुए कहा।


अनंतिका उस समय एक मरून कलर का डिज़ाइनर गाउन पहना हुआ था जिसमें वो बेहद खूबसूरत नजर आ रही थी। उसने बहुत ही लाइट मेक-अप किया था जो उसे बहुत सूट कर रहा था। 


अनंतिका की पर्सनालिटी में एक गजब का आकर्षण था जो उसके सेल्फ़-कॉन्फिडेंस और पॉजिटिव एटीट्यूड की वजह से किसी को भी उसका मुरीद बना देता था। निखिल ने रॉयल ब्लू कलर का फिटेड सिल्युट सूट जैकेट पहना हुआ था, हल्का स्ट्बल उसके तराशे हुए चेहरे और मज़बूत जॉ-लाइन को निखार रहा था साथ ही लेटेस्ट फैशन के क्रू-कट स्टाइल में कटे बाल जो हेयर वैक्स से करीने से सेट किये हुए थे उसपर बहुत फब रहे थे।


“बिलकुल! मेरे ख्याल से तुम्हें आंटी से कुकिंग लेसन्स लेने चाहिए,” निखिल मंत्रमुग्ध सा मटन चॉप खाता हुआ बोला। 

ये विडंबना ही थी कि निखिल खाने का शौक़ीन था और अनंतिका को कुकिंग करना बिलकुल पसंद नहीं था।


“बेटा, अगर कुकिंग लेसन्स लेने हैं तो अंश से लेने होंगे| खाना अंश ने बनाया है,” महिला के स्वर में गर्व का पुट था। डाइनिंग टेबल पर अपनी माँ के बगल वाली कुर्सी पर बैठे अंश के चेहरे पर एक शर्मीली सी मुस्कान आई। अनंतिका ने देखा कि शर्म से अंश के कान और गाल लाल हो गए|


“यार अंश! आय सैल्यूट यू डूड, क्या खाना बनाते हो यार। आजकल तो लड़कियाँ भी इतना लज़ीज़ खाना नहीं बनाती,” निखिल ने अनंतिका पर कटाक्ष करते हुए अंश से कहा।


“खाना बनाने में अब ये लड़का-लड़की वाला फैक्टर कहाँ से आ गया?” अनंतिका चिढ़ कर बोली।


“ऐसी कोई बात नहीं है। आर्थराइटिस की वजह से मॉम को खड़े रहने में प्रॉब्लम होती है इसलिए कुकिंग और घर के सारे काम मैं ही करता हूँ,” अंश बात पलटते हुए बोला।


“आप दोनों यहाँ अकेले रहते हैं? आय मीन अंश के फादर…?” निखिल ने मिसेज़ राजपूत से सवाल किया।


“हिज़ फादर पास्ड अवे लास्ट इयर। रोड एक्सीडेंट में अंश के फादर की गाड़ी पहाड़ी दर्रे में गिर गई थी,” मिसेज़ राजपूत की आवाज़ एकाएक सर्द हो गई।


“अ..आय एम एक्सट्रीमली सॉरी टू हियर दैट,”  निखिल खेद व्यक्त करते हुए बोला।


“इसके बाद ही अंश ने मेरे लाख मना करने पर भी अपना कॉलेज ड्रॉप कर दिया और दिल्ली से वापस मेरी देखभाल करने यहाँ आ गया,”


“आर्टिस्ट बनने के लिए फॉर्मल डिग्री की ज़रूरत नहीं होती मॉम। लेओनार्दो-द-विन्ची और रफेल जैसे आर्टिस्ट किसी आर्ट कॉलेज से नहीं निकले थे," अंश सहज भाव से मुस्कुराते हुए बोला।


“तुम पेंटिंग करते हो?” अनंतिका ने चौंक कर पूछा।


“कोशिश करता हूँ,” अंश ने मुस्कुराते हुए दीवारों की तरफ इशारा किया, अनंतिका की नज़रें चारों तरफ दीवारों पर लगी हुई पेटिंग्स पर पड़ी।


“ये सभी पेंटिंग्स मेरे बेटे ने बनाई हैं,” मिसेज़ राजपूत गर्व से बोलीं।

पेंटिंग्स वाकई अच्छी बनी हुई थीं, टेक्निकल डिटेल्स की कमी थी परन्तु ये स्पष्ट था कि अच्छी ट्रेनिंग मिलने पर अंश बेहतरीन आर्टिस्ट बन सकता था।


“भई वाह, ये तो कमाल की बात हो गई। यार अंश तुम अनंतिका तो कुकिंग सिखा दो और अनंतिका तुम्हें पेंटिंग की बारीकियां सिखा देगी,” निखिल जो अपना मटन चॉप खत्म कर चुका था अपनी उंगलियाँ चटकारते हुए बोला।


“आप भी आर्टिस्ट हैं?” अंश ने चौंक कर अनंतिका को देखा। 

अनंतिका ने मुस्कुराते हुए सहमति में सर हिलाया। 


खाने के बाद काफी देर तक अंश और अनंतिका वैन गॉग की पेंटिंग ‘स्टारी नाइट्स’ से लेकर माइकल एंजलो के स्कल्पचर ‘पिएत्ता’ पर चर्चा-परिचर्चा करते रहे। 

अनंतिका को एहसास हुआ कि अंश के बारे में उसका बनाया हुआ फर्स्ट इम्प्रैशन गलत था। वास्तव में अंश अपने समय के यंग्सटर्स से काफी अलग एक धीर-गंभीर और ज़िम्मेदार नौजवान था। 


जब अनंतिका ने पहली बार अंश को उसके कॉटिज की खिड़की पर देखा था तब वो उसे कोई साइको-क्रीप लगा था और दूसरी बार पिछली रात अँधेरे में अनंतिका के जिस्म को अपनी नज़रों से टटोलता हुआ एक पर्वर्टेड पीपिंग टॉम लेकिन अब उसे एहसास हो रहा था कि क्योंकि सुबह वाली घटना से ही अनंतिका के मन ने अंश के लिए गलत अवधारणा बना ली थी इसीलिए रात वाली घटना के समय अंश उसे खुद को घूरता हुआ सा लगा होगा। भला इतने घुप्प अन्धकार में और इतने फासले से वो उसे कैसे देख सकता था? शायद अंश भी रात के एन उसी समय उठ कर अपनी खिड़की पर आया हो जिस समय अनंतिका अपने कमरे की खिड़की बंद करने के उठी थी।


“काफी देर हो चुकी है, अब हमें चलना चाहिए,” निखिल एकाएक घड़ी देखते हुए बोला। रात के ग्यारह बज रहे थे।


“ओह! बातों में समय का पता ही नहीं चला। थैंक्स फॉर द लवली इवनिंग एंड डिनर, वी हैड ए ग्रेट टाइम।,”अनंतिका मुस्कुराते हुए बोली।

निखिल ने महसूस किया कि ये बात अनंतिका ने मिसेज़ राजपूत से अधिक अंश को कॉम्प्लीमेंट करने के लिए कही है।


“इसे अपना ही घर समझो बेटा, तुम जब चाहों यहाँ आ सकती हो,” मिसेज़ राजपूत ने अनंतिका के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।


“इन-फ़ैक्ट आप लोग हमारे यहाँ क्यों नहीं आते। कल सैटरडे है और हम एक हाउस वॉर्मिंग पार्टी प्लान कर रहे हैं। बहुत छोटी सी ही पार्टी होगी, यहाँ चकराता में जिस कम्पनी के लिए काम कर रहा हूँ उसके ही कुछ लोगों को बुलाया है, बाकी तो हम लोग यहाँ किसी को जानते नहीं। इट विल रियली बी ग्रेट…अगर आप लोग पार्टी में आएं,” निखिल उत्साहित भाव से बोला।


“मैं घर से बाहर कहीं जाती-आती नहीं बेटा, अंश ज़रूरत जा सकता है,” मिसेज़ राजपूत की नज़रें जैसे निखिल और अनंतिका से गुजरते हुए अंश पर आकर ठहर गईं। 

उनकी नज़रों में कुछ ऐसे भाव थे जैसे अंश के मनोभाव पढ़ने की कोशिश कर रही हों। 


अंश दो क्षण खामोश रहा फिर उसने हौले से सहमति में सर हिलाया।

“ग्रेट…फिर कल शाम मिलते हैं” निखिल ने कहा फिर उसने और अनंतिका ने वहाँ से विदा ली।


“नाइस पीपल," निखिल ने चेंज करते हुए कहा।


“हम्म,”


बैड पर लेटी अनंतिका अपने ही विचारों में डूबी हुई थी| 


उसने अपना गाउन उतार दिया था। कमरे में जल रहे शैन्डलियर की मद्धिम पीली रौशनी उसके सुडौल जिस्म पर पड़ रही थी, उसकी त्वचा यूं दीप्तिमान थी जैसे सुबह उगते सूरज की पहली सुनहरी किरण हो।


निखिल ने एक भरपूर नजर उसपर डाली, ब्लैक लॉन्जरी में अनंतिका का दमकता जिस्म और अधिक आकर्षक और उत्तेजक लग रहा था।


“अच्छा सुनो, तुम्हारा स्टूडियो सेट-अप हो गया?”


“हाँ। नीचे बड़े हॉल में स्टूडियो सेट कर लिया है। सोच रही हूँ कल से पेंटिंग्स पर काम शुरू करूँ,”


“दैट्स ग्रेट! माय लेडी पिकासो इस ऑल सेट फॉर एक्शन,”


निखिल बैड की ओर बढ़ते हुए बोला, उस समय वो सिर्फ बॉक्सर्स में था और उसकी आँखों में शरारती भाव थे।


“एण्ड मिस्टर कासनोवा लुक्स डेस्पिरेट फॉर सम एक्शन राइट नाउ,” अनंतिका खिलखिलाते हुए बोली। 


निखिल ने अनंतिका के ऊपर बैड पर जम्प लगा दी। दोनों कुश्ती लड़ने का खेल करते बच्चों की तरह एक-दूसरे से गुत्थम-गुत्था हो गए। 


अनंतिका ने पिलो उठा कर निखिल के सर पर दे मारा, निखिल ने भी दूसरा पिलो उठा कर जवाबी हमला किया। दोनों की पिलो फाइट में तकियों की सिलाई उधड़ गई। फर पिलोज़ से फर निकल कर हवा में बिखरने लगे। निखिल ने अनंतिका को अपनी बाहों में जकड़ कर बैड पर गिरा दिया। अनंतिका ने प्रतिवाद ना किया, सिर्फ उसकी निगाहें कमरे की खिड़की की तरफ उठीं। 


आज कमरे की खिड़कियाँ लगी हुई थीं और उनपर पर्दे भी खिंचे हुए थे। निश्चिन्त अनंतिका ने अपनी बाहें निखिल की गर्दन में डाल दीं, निखिल उसकी गहरी आँखों में एकटक देख रहा था। अनंतिका ने किसी रेस्लर की तरह एक झटके से निखिल को पलटी देकर नीचे गिरा दिया और उसपर सवार हो गई। उसका एक हाथ पीठ के पीछे गया और उसकी ब्रा अनहुक होकर एफ़र्टलेसली बाहों से सरकते हुए अनंतिका के नीचे लेते निखिल के सीने पर जा गिरी। 


निखिल का हाथ ब्रा अपने ऊपर से हटाने को बढ़ा। अनंतिका ने उसकी दोनों कलाइयाँ पकड़ लीं और उसके हाथ अपने सीने पर रख लिए। उसने अपनी ब्रा निखिल की गर्दन में लपेटी और स्ट्रैप लगाम की तरह थाम ली। निखिल पर सवार अनंतिका का जिस्म लयबद्ध तरीक़े से आगे-पीछे होने लगा। कभी वो निखिल के गले में लिपटी ‘लगाम’ का कसाव बढ़ा देती तो कभी ढीला छोड़ देती। 


दोनों की सिसकारियाँ कमरे से बाहर कॉटिज में गूंज रही थीं। रात कितनी देर तक दोनों एक दूसरे से यूं ही जूझते रहे और कब थक कर एक दूसरे की बाहों में सो गए उन्हें पता भी ना चला।


अनंतिका को एहसास हुआ कि उसके जिस्म पर से क्विल्ट बहुत ही धीरे-धीरे सरक रहा है, जैसे कोई उसके कपड़े उतार रहा हो। उसे महसूस हुआ कि बैड के करीब कोई खड़ा हुआ है जिसकी दो जोड़ी आँखें उसे घूर रही हैं। 


अनंतिका ने चौंक कर आँखें खोली। 


सामने कोई ना था, हालांकि क्विल्ट उसके जिस्म से सरका हुआ था। उसके ठीक बगल में निखिल बेखबर सो रहा था। 


अनंतिका को कमरे में ठंड का एहसास हुआ तो स्वतः ही उसकी नज़रें रूम की खिड़की की ओर उठ गईं। 


खिड़की खुली हुई थी और उसपर से पर्दा भी सरका हुआ था जिससे बाहर की सर्द हवा अंदर आ रही थी। अनंतिका अवाक थी, खिड़की तेज़ हवा के झोंके से खुल गई हो सकती थी लेकिन उसपर से पर्दा हवा से हट जाना मुमकिन नहीं था। 


अनंतिका बैड पर से उठी। बैड के पास ही हैंगंर पर से उसने नाईट गाउन उतार कर अपने ऊपर डाला और खिड़की की तरफ बढ़ी। अनंतिका ने खिड़की बंद करने के लिए हाथ बढ़ाया, उसकी नज़रें स्वतः ही सामने उठ गईं। सामने कॉटिज की खिड़की पर अंश खड़ा नजर आया। ठीक पिछली रात की तरह उसे घूरता हुआ। उसकी आँखें एक-बार फिर रात के अंधेरे में चमक रही थीं।

अंश की तीक्ष्ण आँखें रात के अंधेरे में सामने वाली कॉटिज से यूँ चमकती दिखाई दे रही थीं जैसे रात के अंधेरे में भी अनंतिका के जिस्म का रोम-रोम टटोल रही हों। 

अनंतिका हैरान थी, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। 


शाम जब वो उसके घर पर अंश से मिली थी तब वो उसे एक बिल्कुल ही नॉर्मल लड़का लगा था। रात होते ही आख़िर अंश के बच्चों जैसे चेहरे पर वो सख़्त दरिंदों जैसे भाव क्यों आ जाते हैं? शाम उसकी आँखों की गहराई में जो मासूमियत अनंतिका ने देखी और महसूस की थी वो रात के अंधेरे में उस तीक्ष्ण चमक में क्यों बदल जाती है? आख़िर क्यों अंश अनंतिका की कॉटिज और उसे इस तरह घूरता रहता है? 


अनंतिका के पास अपने सवालों के कोई माकूल जवाब फ़िलहाल ना थे लेकिन उसने फ़ैसला किया कि वो इस बाबत अंश से बात ज़रूर करेगी। अपने सवालों में उलझी अनंतिका की नज़रें सामने कॉटिज की तरफ़ एक बार फिर उठीं। अंश अब भी वैसे ही खड़ा हुआ था और ऐसा लग रहा था जैसे अनंतिका को ही घूर रहा हो। हड़बड़ा कर अनंतिका ने खिड़की बंद कर दी और वापस आ कर बेख़बर सो रहे निखिल के पहलू में उससे लग कर सो गयी।


अगले दिन सुबह से ही निखिल और अनंतिका शाम की पार्टी की तैयारी में जुट गए। 


सैटरडे होने के कारण निखिल को ऑफिस नहीं जाना था इसलिए तैयारी में वो भी अनंतिका का पूरा-पूरा साथ दे रहा था। 


पार्टी एरिया के रूप में उन्होंने कॉटिज के लॉन को यूज़ करने का निश्चय किया परन्तु सही रख-रखाव ना होने की वजह से लॉन पूरी तरह जंगल में बदला हुआ था। निखिल अपने 1400W के जैपनीज़ लॉन मोअर के साथ बाहर पहुंचा। लॉन की हालत देखकर निखिल ने अपने माथे का पसीना पोंछा और मन ही मन बड़बड़ाया।


“इसे ठीक करने में तो तू भी लॉन जैसा ही उजड़ा नज़र आने लगेगा बेटा निखिल,”

निखिल का दिल किया कि अन्दर जा कर अनंतिका से बोले कि पार्टी की व्यवस्था उन्हें कॉटिज के हॉल में कर लेनी चाहिए, लेकिन फिर उसे ध्यान आया कि अनंतिका पहले ही हॉल में अपना स्टूडियो सेट-अप कर चुकी है।


“मैं कुछ हेल्प करूँ?”

निखिल की निगाहें आवाज़ की दिशा में उठीं। अपनी कॉटिज के बाहर खड़ा अंश उसे देखकर मुस्कुरा रहा था।


“नहीं यार, आय’ल्ल मैनेज,” निखिल ने चेहरे पर औपचारिक मुस्कान लाते हुए कहा और अपना लॉन मोअर स्टार्ट किया।


जिन लोगों की जिंदगी का ज़्यादातर हिस्सा बड़े शहर और अपार्टमेंट में जीते हुए गुज़रा हो उन्हें गार्डनिंग का अनुभव कम ही होता है। गमलों में महंगे और फ़ैन्सी पेड़-पौधे लगाना एक बात है लेकिन लॉन सँभालने के लिए मोअर से अधिक स्किल की ज़रूरत होती है। अगले दो मिनट में ही निखिल को ये बात समझ में आ गई, वो पसीने से तर हुआ बुरी तरह हांफ रहा था और लॉन की बेतरतीब झाड़ियाँ जैसे उसे देखकर मुँह चिढ़ा रही थीं।


“मैं वाकई ये काम जल्दी कर सकता हूँ, अपनी कॉटिज का लॉन मैं खुद ही मैंटेन करता हूँ,” अंश अब भी वहीं खड़ा हुआ निखिल को देखकर मुस्कुरा रहा था। निखिल ने सहमति में अपना सर हिला दिया।


अनंतिका शाम की पार्टी के लिए स्नैक्स ऑर्गनाइज कर रही थी। हांफता और पसीना पोंछता निखिल किचेन में उसके पास आया और एक रोस्टेड पनीर का टुकड़ा उठा कर मुँह में डाल लिया।


“लॉन हो भी गया? इतनी जल्दी?” अनंतिका ने चौंक कर निखिल की तरफ़ देखते हुए पूछा।

निखिल ने मुँह में एक और रोस्टेड पनीर का टुकड़ा डालते हुए एक फ़्लाइइंग किस उसकी तरफ उछाली और किचेन की खिड़की की और इशारा किया। अनंतिका ने खिड़की से बाहर झाँका, लॉन में उसे अंश नजर आया। 


अनंतिका ने प्रश्नवाचक नज़रों से निखिल की ओर देखा। निखिल ने लापरवाही से अपने कंधे उचकाए।


“उसने खुद सामने से आकर हेल्प ऑफर की यार, मैं क्या करता!” निखिल के चेहरे पर आयी शीपिश स्माइल के पीछे के इम्पिश एक्स्प्रेशन अनंतिका से छुपे नहीं थे। 


“मैं क्या करता!!’ अनंतिका ने निखिल के बोलने के अन्दाज़ को मॉक किया। ‘नॉट कूल निखिल, नॉट कूल एट ऑल!!” अनंतिका बिफरते हुए बोली।


निखिल ने अनंतिका से उस घड़ी ना उलझने में ही अपनी भलाई समझी। ड्रिंक्स काउंटर के लिए ड्रिंक की व्यवस्था करने का एक्सक्यूज़ देकर निखिल किचेन से सरक लिया। 

अनंतिका को वाकई निखिल की इस हरकत पर अत्यधिक क्रोध आ रहा था। 


रात फिर से अंश के साथ घटी घटना के बाद वो जब तक क्लीयर कट उससे बात नहीं कर लेती तब तक उसे अंश से कैसा भी फ़ेवर लेना सही नहीं लग रहा था। रात वाली घटना के बारे में क्योंकि उसने निखिल को कुछ भी नहीं बताया था इसलिए वो अब फ़िलहाल खुल कर निखिल पर भी ग़ुस्सा नहीं कर सकती थी।


उसने एक उड़ती हुई नज़र खिड़की के बाहर डाली। इतनी ही देर में अंश ने लॉन की ज़्यादातर बड़ी झाड़ियाँ और खर-पतवार लगभग साफ़ कर दिए थे। उसकी स्वेट-शर्ट पसीने से पूर्णतः तर-बतर थी और उसके जिस्म से चिपकी हुई थी और उस घड़ी वो बॉगेनवेलिया के एक बेतरतीब झाड़ को ट्रिम कर कर रहा था। बोगनविलिया की तीखी टहनियाँ उसकी स्वेट-शर्ट की बाहों में फंस कर उसे उधेड़ रही थीं। उन टहनियों से परेशान अंश ने पसीने से शरीर पर चिपकी हुई स्वेट-शर्ट को उतार कर नीचे घास पर फेंक दिया।


अनंतिका अंश पर से अपनी नज़रें नहीं हटा पा रही थी। 


माइकल एंजलो के रेनेसां स्कल्पचर डेविड के सामान अंश का तराशे हुए मार्बल जैसा जिस्म अनंतिका की नज़रों के सामने था। पसीने की बूँदें शरीर पर पड़ती सूर्य की किरणों से कांतिमान हुई चमक रही थीं। 


अंश के चिकने शरीर पर एक भी बाल नहीं था, देख कर पता चलता था कि उसने बॉडी शेविंग की हुई है। उसके रिप्ड चेस्ट और फ़्लैट वॉशबोर्ड ऐब्स से फिसलती हुई पसीने की बूँदें उसकी एक्स्ट्रीम्ली लो-वेस्ट जींस के अंदर कहीं गुम हो रही थीं। जाने कितनी ही देर मंत्रमुग्ध सी अनंतिका अंश को यूं ही घूरती रहती, उसका दिमाग़ बार-बार अंश की लो-वेस्ट जींस के अंदर घूम रहा था। क्या उसने वहाँ भी खुद को शेव किया है? अनंतिका ने अपने सर को झटक कर इस थॉट को दिमाग़ से निकालने की कोशिश की। 


आख़िर क्या सोच रही थी वो! अनंतिका की साँसें तेज चल रही थीं, इस विचार को जितना ही वो अपने दिमाग़ से निकालने की कोशिश कर रही थी उतना ही ये विचार उसे उत्तेजित और आंदोलित कर रहा था। अनंतिका को एहसास ही नहीं हुआ कब उसके हाथ अपने ही जिस्म पर फिसलने लगे थे। उसके हाथ यूँ ही खुद पर फिसलते रहते अगर अंश की नज़रें अचानक उस किचेन विंडो की ओर ना उठ जातीं। एक पल के लिए अंश और अनंतिका की नज़रें एक-दूसरे से मिलीं। अगले ही पल अनंतिका ने अपने हाथ अपने जिस्म से हटाए और झेंपते हुए अंश पर से अपनी नज़रें हटा लीं।


***


शाम के सात बज रहे थे, लॉन स्ट्रिंग लाइट्स से बेहतरीन रूप से सुसज्जित था जहां एक ओर बार काउंटर और एक ओर वेज एंड नॉन-वेज स्नैक्स सर्विंग टेबल पर सजे हुए थे। इस व्यवस्था का बड़ा श्रेय अंश को जाता था जिसने ना सिर्फ लॉन साफ़-सुथरा किया बल्कि वहां की पूरी व्यवस्था अनंतिका के निर्देशानुसार चाक-चौबंद की थी। 


पार्टी में गेस्ट वाकई गिनती के थे, बामुश्किल 8-10 लोग। उस वक्त निखिल अनंतिका को कम्पनी की हेड प्रेरणा से इंट्रोड्यूस करा रहा था। 


प्रेरणा की कंपनी ‘पी। डी। कॉर्प्स’ चकराता में रीसॉर्ट्स, टूरिज़म के अलावा टिम्बर एंड लैंड माइनिंग में कार्यरत थी। यूं तो पी.डी. कॉर्प्स का खुद का काफी बड़ा पर्सनल एकाउंट्स डिपार्टमेंट था फिर भी कंपनी हेड प्रेरणा का अंदेशा था कि लम्बे समय से कंपनी के एकाउंट्स में धांधली चल रही है जिसमें कम्पनी के टॉप लेवल एग्जीक्यूटिव्स का भी हाथ है। इसीलिए प्रेरणा ने पर्सनल लेवल पर दिल्ली की सबसे टॉप चार्टेड एकाउंटिंग फर्म से निखिल को कंपनी के एकाउंट्स रिव्यू करने के लिए बुलाया था।


प्रेरणा की नज़रें लगातार अनंतिका का जायज़ा ऊपर से नीचे तक ले रही थीं। अनंतिका के चेहरे पर एक फेक फॉर्मल प्लास्टिक स्माइल चिपकी हुई थी जबकि अंदर से वो बुरी तरह बोर हो रही थी।


“एक्स्क्यूज़ मी, हैव मी मेट बिफ़ॉर? यू लुक फ़ैमिल्यर…लाइक ए घोस्ट फ़्रॉम समवेयर आय फ़र्गॉट,” अनंतिका के मुँह से जैसे स्वतः ही निकला। प्रेरणा का इस तरह घूरना उसे क़तई पसंद नहीं आ रहा था। 


“वाउ…दैट्स सम क्रीएटिव फ़्रेज़िंग देयर, बट आय एम प्रिटी श्योर दिस इज़ आर फ़र्स्ट एंकाउंटर,”

प्रेरणा ठंडे स्वर में बोली। उसके चहरे पर भी एक फ़ेक स्माइल थी। 


“अनी क्या कर रही है…ये उस कम्पनी की हेड है जिसके अकाउंट्स हैंडल करने मैं आया हूँ,” निखिल अनंतिका के कान में फुसफुसाते हुए बोला। 


वो सिचूएशन निखिल के लिए काफ़ी ऑक्वर्ड थी और वो भरसक कोशिश कर रहा था स्थिति को सम्भालने की। अनंतिका ने मुस्कुराते हुए खुद को वहाँ से ‘एक्स्क्यूज़’ कर लिया।

 

इस तरह की सो-कॉल्ड पार्टीज़ से अनंतिका को सख्त चिढ़ थी जहां अजीबोगरीब और स्नॉब अजनबियों के बीच ज़बरदस्ती औपचारिकता निभाने की नौटंकी करनी पड़े। अनंतिका के लिए पार्टी करने का मतलब बहुत अलग था। पार्टी मतलब कोई सीमाएँ और बंदिशें नहीं। मदमस्त और मदहोश हो जाने की हद तक बेफिक्र हो जाना, खुद को भुला देना, सामाजिकता और झूठे अहम का नकाब हटा कर खुद से रूबरू होना, चंद पलों में जिंदगी भर की परेशानियों को दफन कर देना।अनंतिका की पार्टी ऐसी ही होती थी। 


अनंतिका की नज़रें अंश को खोज रही थीं, वो उसे कहीं नजर नहीं आ रहा था। दिन भर अनंतिका के साथ पार्टी की अरेंजमेंट करवाने के बाद शाम को अंश वापस अपने घर गया था ताकि अपनी माँ के लिए डिनर तैयार कर सके और फिर नहा-धो कर पार्टी में वापस आए। 


दिन भर निखिल ने उससे जिस तरह कोल्हू के बैल जैसे काम लिया था उसके बाद अनंतिका को उम्मीद नहीं थी कि अंश शाम की पार्टी में वापस आने वाला था। ठीक उसी पल वातावरण में अकूस्टिक गिटार की धुनें गूंजी। अनंतिका की नज़रें स्वतः ही उन मधुर, कर्ण प्रीय स्वर ध्वनियों के स्रोत की दिशा में घूम गईं। 


Bm…G…Em…A…Bm…G…Em गिटार कॉर्ड्स बज रही थीं। 


अनंतिका की नज़रें गिटार बजाने वाले पर पड़ी। अंश लॉन के एक कोने में बैठा गिटार बजा रहा था। निखिल और अंश दोनों के चेहरों पर हल्की मुस्कान आई, दोनों ने अपनी आँख दबा कर एक-दूसरे को इशारा किया। अनंतिका समझ गई कि ये सेटिंग निखिल और अंश ने पहले ही एक-दूसरे के कर ली थी कि अंश शाम को पार्टी में गिटार बजाएगा, बस इसके बारे में दोनों में से किसी ने भी अनंतिका को नहीं बताया था।


अंश के संगीत में ओरिजिनैलिटी के साथ-साथ एक कशिश, एक रूहानियत थी जो अनंतिका के दिलो दिमाग पर सुरूर बनकर चढ़ रही थी। अनंतिका एकटक अंश को देख रही थी, उसे पता भी नहीं चला कब अंश का संगीत खत्म हो गया। 


अनंतिका की तंत्रा तालियों की आवाज़ से भंग हुई। पार्टी में मौजूद लोग अंश की पीठ थपथपा कर उसे शाबाशी दे रहे थे। अंश की नज़रें अनंतिका पर टिकी हुई थीं। लोगों से पीछा छुड़ाकर वो दूर खड़ी, उसे देखकर मुस्कुराती अनंतिका के पास पहुंचा।


“तो तुम म्यूज़िशियन भी हो…इम्प्रेसिव,” अनंतिका मुस्कुराते हुए बोली।


“वो आपके हस्बैंड से सुबह बात हो रही थी तो बात-बात में बात निकल आई। ये उनका ही आईडिया था,” अंश सहज भाव से मुस्कुराते हुए बोला।


“एक्स्क्यूज़ मी!…निखिल इज़ नॉट माई हस्बैंड!” अनंतिका थोड़ा चिढ़ कर बोली।


“ओह…फ़ियाँसे?”


“नो…वी आर इन ए लिव-इन रिलेशनशिप,” अनंतिका ने ज़बरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा हालाँकि उसके चेहरे से साफ़ ज़ाहिर था कि इस विषय पर बात करना उसे पसंद नहीं था। अनंतिका ने महसूस किया कि ये बात सुनते ही अंश का चेहरा यूं चमक उठा था जैसे उसे कोई मन चाही मुराद मिल रही हो। 


अनंतिका असमंजस में थी।


क्या वो अंश के मनोभाव का सही अर्थ समझ रही थी? 


उससे भी बड़ी उलझन ये थी कि वो खुद अपने मनोभावों से परेशान थी जो उसके दिल में अंश को ले कर उमड़ रहे थे। वो अंश से पिछली रात के बारे में बात करना चाहती थी लेकिन ये सही समय या माहौल नहीं था। 


ठीक उसी समय अनंतिका की नज़रें अपनी कॉटिज में पहली मंजिल की उस खिड़की पर पड़ी जो उसके और निखिल के बेडरूम की थी। वहाँ उसे एक साया खड़ा नजर आ रहा था। अँधेरे में खड़ा एक काला साया जिसकी चमकती आँखें अनंतिका को ही घूर रहीं थीं।


***


“तुमने खिड़की पर किसी गेस्ट को देखा होगा जो पार्टी से निकल कर घूमते हुए ऊपर जा पहुंचा होगा,” निखिल कुछ सोचते हुए बोला, परन्तु उसकी आवाज़ में संशय स्पष्ट झलक रहा था।


“सभी गेस्ट्स नीचे लॉन में थे निखिल, कोई भी कॉटिज के अंदर नहीं आया,”

उस समय पार्टी खत्म हो चुकी थी और सभी मेहमान वापस जा चुके थे। 


निखिल और अनंतिका कमरे में अकेले थे जिसकी खिड़की पर पार्टी के दौरान अनंतिका को एक रहस्यमयी साया नज़र आया था। अनंतिका की नज़रें अब भी उसी खिड़की पर टिकी हुई थीं।


“रिलैक्स अनी , ज़रूरी तो नहीं कि पार्टी के दौरान हर समय तुम्हारी नज़रें हर एक गेस्ट पर रही हो। इट्स क्वाइट पॉसिबल कि जब तुम मोमेंट्रिली कहीं और ऑक्युपाइड हो उस दौरान कोई गेस्ट वॉशरूम जाने के इरादे से अंदर दाखिल हुआ हो जिसपर तुम्हारी नजर नहीं पड़ी,”


“यू आर नॉट गेटिंग माय पॉइंट निखिल,” अनंतिका ने अपना चेहरा निखिल की ओर घुमाया, निखिल उसके चेहरे पर असहमति और रोष के भाव साफ़ देख सकता था। 


“कोई गेस्ट अगर कॉटिज में आता भी तो वो इस कमरे में दाखिल नहीं हो सकता था क्योंकि मैंने इस कमरे को बाहर से लॉक किया था जिसकी चाभी सिर्फ मेरे ही पास है," अनंतिका ने एक की-चेन निखिल के चेहरे के सामने झुलाई जिसमें एक इकलौती चाभी लटक रही थी।


“फिर तो सिर्फ एक ही बात हो सकती है…तुम्हें नज़र का धोखा हुआ होगा," निखिल फिर से गंभीर भाव से सोचते हुए बोला। 

अनंतिका ने असहाय भाव से अपने कंधे उचकाए और उस कन्वर्सेशन को वहीं ड्रॉप कर दिया। वो जानती थी कि उस मुद्दे पर निखिल से और अधिक बहस कर के कोई निष्कर्ष नहीं निकलने वाला। 


निखिल वैसा ही था। 


जिन चीज़ों के बारे में वो एक बार अपना ओपिन्यन बना लेता था उससे उसे डिगाना या फिर अपनी बात समझा पाना लगभग असंभव कार्य था। शायद ये एक प्रोफेशनल ट्रेट था जो धीरे-धीरे उसके स्वभाव पर हावी हो रहा था। अनंतिका ने एक बार फिर कमरे की खिड़की पर नजर डाली। कॉटिज की नीची दिवार और बॉगेनवेलिया पेड़ों के उस पार बगल वाली कॉटिज में अंश के कमरे की लाइट जल रही थी। 


अनंतिका ने उठकर खिड़की के पर्दे खींच दिए और निखिल से कुछ कहे बिना उसकी ओर पीठ घुमा कर बेड पर लेट गई। निखिल ने हौले से कमरे की लाइट्स ऑफ कर दीं और वो भी अनंतिका के बगल में लेट गया। 


निखिल ने अँधेरे में अनंतिका की ओर देखा, वो जानता था कि अनंतिका सोई नहीं है सिर्फ उसके साथ हुई असहमति और नोक झोंक के कारण उससे बात नहीं कर रही है। 


निखिल ने हौले से अपना हाथ अनंतिका की कमर पर रखा। निखिल का हाथ अनंतिका की कमर से फिसलते हुए उसकी जाँघों के बीच जा पहुँचा।


“नॉट टुनाइट निखिल!” अँधेरे में अनंतिका की भावहीन और सर्द आवाज़ आई।


“अनंतिका प्लीज़…लेट्स डू इट,” निखिल ने अपना हाथ अनंतिका की पैंटी से बाहर नहीं निकाला। निखिल की साँसें गर्म और तेज चल रही थीं, वो अनंतिका को सहलाते हुए बोला। 


“निखिल डोंट!!” अनंतिका ने निखिल का हाथ अपनी पैंटी से निकाल कर यूं अपने जिस्म से परे झटक दिया जैसे वो कोई ज़हरीला सांप या बिच्छु हो।


निखिल ने अपमान का घूँट पीते हुए अपना हाथ वापस खींच लिया और अनंतिका से परे करवट ले ली। उसके अंदर बहुत कुछ उबल रहा था। निखिल का जी चाहा कि अनंतिका की बांह अपनी गिरफ़्त में लेकर उसे अपनी ओर घुमाए और उसे झँझोड़ कर पूछे कि शाम को पार्टी के दौरान उसने अनंतिका और अंश को जो करते देखा था उसका मतलब क्या था! 


लेकिन निखिल ने फ़ौरन ही अपने आवेग और भावनाओं पर काबू पाया। निखिल का हाथ अपनी अंडरवेयर में गया, अनंतिका के नग्न जिस्म को फ़ैंटसाइज़ कर के निखिल काफ़ी देर तक जर्क-ऑफ़ करता रहा फिर थक कर सो गया। 


निखिल की तरफ़ पीठ कर के सोने का नाटक कर रही अनंतिका जानती थी कि निखिल क्या कर रहा है, उसने ऐसा प्रिटेंड किया जैसे वो सो रही है और निखिल की हरकत से बेख़बर है। अनंतिका के दिमाग में अब भी उथल-पुथल मची हुई थी। अनंतिका को यकीन था कि उसे कोई वहम नहीं हुआ था और वाकई ही उसने पार्टी के दौरान कमरे में खिड़की के पास एक साया खड़ा देखा था। 


कुछ घंटे पहले घटी घटनाएँ उसके दिमाग़ में फ़िल्म रील की तरह रीप्ले हो रही थीं।


“वहाँ कोई है…रूम में कोई है!!” अनंतिका पैनिक में चिल्लाई।


“कहाँ?” अंश की नज़रें उस दिशा में उठी जिधर अनंतिका की आँखें टिकी हुई थीं।


अनंतिका देखने की भरसक कोशिश कर रही थी कि खिड़की पर नजर आ रहा साया किसका था लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे हर गुजरते क्षण के साथ वो साया धुंधला और धूमिल होता जा रहा हो। 


अनंतिका ने नज़रें अंश की ओर घुमाई, अंश भी खिड़की की ओर देख रहा था। उस घड़ी अंश के चेहरे पर सैकड़ों भाव कुछ ही पलों में आ और जा रहे थे। 


“तुमने देखा ना उसे?”


“नहीं, खिड़की पर तो कोई भी नहीं है!” अंश जैसे खुद को संयमित करते हुए बोला।


अनंतिका ने नज़रें अंश की ओर से वापस खिड़की की तरफ घुमाई, खिड़की पर जहां दो पल पूर्व ही उसने वो चमकती आँखों वाला साया देखा था वहां कुछ भी नहीं था। 

“खिड़की का पर्दा हिला होगा,” अंश कंधे उचकाते हुए बोला। 


“बकवास मत करो! तुमने भी उसे देखा था,”


“मैंने कुछ भी नहीं देखा, मैं सिर्फ देखने की कोशिश कर रहा था कि तुम क्या देख कर इतना डर रही हो,” 


“वो जो कोई भी था अब भी कॉटिज के अंदर ही होगा,” अनंतिका तेज़ क़दमों से चलते हुए कॉटिज के मुख्य द्वार की ओर बढ़ गई।


“रुको मैं भी साथ आता हूँ,” अंश ने अनंतिका को पीछे से आवाज़ दी, लेकिन अपनी धुन में बढ़ी चली जा रही अनंतिका पर कोई प्रभाव ना पड़ा।


कॉटिज के ग्राउंड फ्लोर पर सेंट्रल हॉल में एक बड़ा सा झूमर था जिसपर लगी लाइट्स उस घड़ी जल रही थीं और अन्दर पूरे एरिया में उसका मद्धिम प्रकाश फैला था। इसके अलावा वहां कोई बड़ी लाइट नहीं जल रही थी। किचेन छोड़ कर बाकी दरवाज़े बंद थे। घुमावदार स्पाइरल स्टेयर्स से ऊपर जाती पहली, दूसरी और तीसरी मंजिल पर भी पुराने ज़माने की बनी कॉटिज की ऊंची छत से लटकते विशाल झूमर की लाइट्स का हल्का प्रकाश पड़ रहा था अन्यथा वहां घोर अन्धकार विद्यमान था।


“देखा। कोई नहीं है यहाँ,”

अनंतिका अपने पीछे से आई आवाज़ से चौंक कर पलटी। दरवाज़े पर अंश खड़ा मुस्कुरा रहा था।


“दरवाज़ा बंद कर दो और अंदर से ताला लगा दो,” अनंतिका उसे कमांड देने के अन्दाज़ में बोली। 


“वॉट?”


“डू एज़ आइ से!,”

अंश ने यूं अनंतिका के आदेश का पालन किया जैसे कोई आज्ञाकारी बच्चा अपनी टीचर के आदेश का करता है। 


उस घड़ी निखिल लॉन में बनाए गए बार के पास खड़ा था और प्रेरणा दीवान से बात करने में मशगूल था। 


निखिल की उड़ती हुई नज़र कॉटिज के बंद होते दरवाज़े पर आकर टिक गई। उसने दरवाज़े की घटती झिर्री के पीछे अंश और अंश के पीछे खड़ी अनंतिका को साफ़ देखा। अनंतिका अंश के साथ कॉटिज के अन्दर क्यों जा रही थी?


“प्लीज़ एक्सक्यूज़ मी फॉर ए मिनट,” निखिल शालीनतापूर्वक प्रेरणा से बोला और अपने हाथ में थमा बियर मग बार काउंटर पर रख कर कॉटिज के दरवाज़े की ओर बढ़ा।


प्रेरणा की नज़रें निखिल का ही अनुसरण कर रही थीं। निखिल कॉटिज के बंद फ्रंट डोर पर जा कर रुका, प्रेरणा ने रात के अँधेरे में किसी विशाल पहाड़ी के मानिंद तन कर खड़े कॉटिज पर नज़र डाली। ना जाने क्यों प्रेरणा के चेहरे पर ऐसे भाव उभरे जैसे वो किसी गहन पशोपेश में पड़ गई हो।


निखिल ने कॉटिज के दरवाज़े पर हाथ रखकर उसे हौले से धकेला, लेकिन दरवाज़ा अंदर से बंद था। क्यों? कॉटिज का दरवाज़ा अन्दर से बंद करने की ज़रूरत क्यों पड़ गई अनंतिका और अंश को? वो भी चलती पार्टी के बीच! दो क्षण असमंजस और विरोधाभास के दो पाटन के बीच झूलता निखिल ये सोचता रहा कि उसे क्या करना चाहिए, फिर उसकी नज़रें लॉन में चल रही पार्टी और मेहमानों पर गई। ज़्यादातर एक-दूसरे से बातों में और खाने-पीने में मशगूल थे। फिर उसकी नजर प्रेरणा पर गई, प्रेरणा उसे ही देख रही थी। निखिल ने निश्चय किया कि उस बाबत वो अनंतिका से बाद में बात करेगा और वो वापस प्रेरणा के पास आ गया।


“एवरीथिंग ऑलराईट?” प्रेरणा ने चेहरे पर मुस्कान बिखेरते हुए पूछा।


“येप! ऑल गुड,” निखिल मुस्कुराते हुए बोला। 


उसने एक नजर प्रेरणा पर डाली, प्रेरणा ने हल्का मेक-अप किया हुआ था जिसमें वो हद से ज्यादा खूबसूरत नजर आ रही थी। आम-तौर पर उसने प्रेरणा को मेक-अप का इस्तेमाल करते हुए नहीं देखा था लेकिन सच्चाई तो ये थी कि प्रेरणा दीवान की ख़ूबसूरती किसी भी कृत्रिम सौन्दर्य प्रसाधन की मोहताज नहीं थी। छब्बीस वर्षीय प्रेरणा दीवान चकराता की दीवान रियासत की इकलौती वारिस थी। पीढ़ियों से चली आ रही दीवान खानदान की ज़मींदारी भले ही समय के साथ खत्म हो गई हो लेकिन पुश्तैनी रौब और रुतबा पहले की भाँति बरकरार था। उसके पिता रोमेश दीवान का अपने जीवनकाल में चकराता में काफी नाम और दबदबा था फिर भी दबी आवाज़ में लोग उनकी रंगीन मिजाजी और खुले हाथ से पैसा उड़ाने की फितरत पर बातें किया करते थे। 


अपनी मृत्यु के समय तक रोमेश दीवान करोड़ों की पुश्तैनी दौलत पानी कर चुके थे। जब रोमेश दीवान की मृत्यु हुई उस समय प्रेरणा दीवान डिपार्टमेंट ऑफ़ फ़ाइनैन्शियल स्टडीज़ एंड बिज़्नेस एकनॉमिक्स, यूनिवर्सिटी ऑफ़ देल्ही, साउथ कैम्पस से एम.बी.ए. कर रही थी। 


पिता की मृत्यु के बाद जब प्रेरणा ने प्रॉपर्टी एंड ऐसेट्स इवैल्यूएशन कराया तो उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। उसके पिता लगभग सारी पुश्तैनी दौलत अपनी ऐयाशी में उड़ा चुके थे। 


प्रेरणा ने हार नहीं मानी और अपनी सूझ-बूझ से बची हुई सारी पूँजी लगा कर पी.डी. कॉर्प्स की स्थापना की। ये प्रेरणा की सूझ-बूझ और दूरदृष्टि का ही नतीजा था कि पी.डी. कॉर्प्स इतने कम समय में इतनी बड़ी कंपनी बन गई थी।


“आइ होप इस कॉटिज में आपको कोई दिक्कत नहीं हो रही होगी,” प्रेरणा भावपूर्ण ढंग से बोली। जिस कॉटिज में निखिल और अनंतिका रह रहे थे वो भी प्रेरणा की ही मिलकियत थी।


“नॉट एट ऑल! दिस प्लेस इज़ डोप,”


“ग्लैड यू लाइक इट। बहुत लम्बे समय से इस जगह की मेंटेनेस नहीं हुई है। आप लोगों के आने से पहले भी सिर्फ ऊपरी तौर पर साफ़-सफाई करवा दी गई थी। लेकिन मैं देख रही हूँ कि आपने इस जगह का नक्शा आते ही बदल दिया है,” प्रेरणा प्रशंसनीय भाव से नज़रें लॉन में घुमाते हुए बोली।


निखिल मुस्कुराया, उसने वापस अपना बीयर मग उठा कर प्रेरणा का अभिवादन किया और एक बड़ा घूँट भरा। प्रेरणा ने भी अपनी शैरी की एक छोटी सी चुस्की ली।


 

“मैं कल ही यहाँ के केयरटेकर को भेजती हूँ, वो इस जगह को बिलकुल दुरुस्त कर देगा,”


“इसकी ज़रूरत नहीं है। हमें रहने के लिए जितनी जगह चाहिए वो बिलकुल दुरुस्त है,” निखिल मुस्कुराते हुए बोला, उसकी उड़ती नज़रें एक बार फिर कॉटिज के दरवाज़े पर पड़ी। दरवाज़ा अब भी बंद था।


अनंतिका पदचापों को दबाते हुए बिना आवाज़ सीढ़ियों की ओर बढ़ी। अंश उसके पीछे ही था।

“लगता है आप जासूसी नॉवेल्स ज्यादा पढ़ती हो,” अंश ने सार्कास्टिक टोन में कहा।


“शशशशssss…।आवाज़ मत करो, जो भी यहाँ है वो चौकन्ना हो जाएगा," अनंतिका ने लगभग फुसफुसाते हुए कहा। 

अब तक वो घुमावदार स्पाइरल स्टेयर्स चढ़ना शुरू कर चुकी थी।


“कोई होगा तब तो चौकन्ना होगा," अंश भी अनंतिका की नक़ल करते हुए फुसफुसा कर बोला। 

ठीक उसकी समय पहली मंजिल पर सीढ़ियों के सामने से एक साया बिजली की गति से एक ओर अँधेरे से निकल कर दूसरी ओर अँधेरे में समा गया। ये सब कुछ इतना क्षणिक हुआ कि अनंतिका और अंश में से कोई भी उस साये को सही तौर पर देख नहीं पाया फिर भी उसकी उपस्थिति और उस हरकत की क्षणिक झलक दोनों को ही मिली। एक पल के लिए दोनों ही सन्न हो गए।


“अब क्या कहते हो?” अनंतिका फुसफुसाई। 


“मुझे देखने दो।,” अंश ने गंभीर भाव से कहा और सीढ़ियों पर अनंतिका की ओर बढ़ा।


उसी समय सीढ़ियों के ऊपर, अँधेरे कोने से एक साये ने अनंतिका के ऊपर छलांग लगाईं। अनंतिका के गले से चीख उबली। सीढ़ियों पर खड़ी अनंतिका इस अप्रत्याशित हमले से अपना संतुलन बनाए ना रख सकी, उसके पैर सीढ़ियों पर पीछे की ओर फिसले और उसका जिस्म कटे पेड़ की भाँति लड़खड़ाते हुए नीचे भहराया। 


अनंतिका अब भी चीख रही थी और उसने भय के कारण अपनी दोनों आँखें किसी छोटी बच्ची की भाँति भींच कर बंद कर रखी थीं। नीचे गिरती अनंतिका की तीन-चार हड्डियां चिटक जाना निश्चित थीं यदि उन दो मज़बूत बाहों के घेरे ने उसे सम्भाल ना लिया होता। सीढ़ियों के गिर कर पथरीले फर्श से टकराने के बजाए उसका सर अंश के कंधे से जा लगा। 


अनंतिका के उभार अंश के पुष्ट सीने की कसी मांसपेशियों पर दबाव बनाने की नाकाम कोशिश कर रहे थे, अंश की मज़बूत बाहें बरगद की टहनियों की तरह अनंतिका की सुडौल कमर के गिर्द लिपट गईं। अनंतिका और अंश के अधरों के बीच महज़ कुछ मिलीमीटर का फासला था। अंश की गर्म सासें अनंतिका महसूस कर सकती थी, वो चीखना बंद करके शांत हो चुकी थी और धीरे-धीरे अपनी आँखें खोल रही थी। 


अनंतिका के चेहरे पर अब भी भय व्याप्त था। 


अपनी उस अवस्था में अनंतिका अंश को संसार की सबसे मासूम लड़की दिखाई दे रही थी। अंश का जी चाहा कि वो सभी वर्जनाओं को तोड़ दे और अपने और अनंतिका के लबों के बीच का वो नागवार फासला फ़ौरन मिटा दे लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। सिर्फ अंश ही जानता था कि उस घड़ी, उस स्थिति में उसने किस तरह अपने पर काबू रखा था। उस अवस्था में भी अनंतिका के चेहरे के भाव देखकर अंश खुद को मुस्कुराने से नहीं रोक पाया। 


अनंतिका बड़ी-बड़ी आँखों से अंश को घूर रही थी जो उसके पूरे वजूद का भार उठाए सीढ़ियों के मुहाने पर खड़ा उसे एकटक देखे जा रहा था और मुस्कुरा रहा था। अनंतिका ने अपनी दोनों भावें उठा कर अंश से रहस्यमयी साये के बारे में मूक प्रश्न किया। अंश ने मुस्कुराते हुए अपनी आँखों की पुतलियाँ एक तरफ नचाई। अनंतिका की नज़रें उस दिशा में उठीं, जिधर अंश इशारा कर रहा था। एक काली बिल्ली उसे तेज़ी से हॉल की ओर भागती नजर आई। 


अंश ने अनंतिका को यूं आहिस्ता से नीचे फर्श पर उतारा जैसे वो कोई कांच की बनी हुई नाज़ुक गुड़िया हो जो हल्की सी ठेस लगने से भी टूट जाएगी। अनंतिका के जिस्म को खुद से अलग करना अंश को बहुत ही नागवार लग रहा था। जबकि अनंतिका का चेहरा झेंप में कानों तक सुर्ख लाल हो गया था। 


“वो रहा आपका रहस्यमयी साया,” अंश मुस्कुराते हुए बोला। अनंतिका कुछ पल असमंजस के भाव चेहरे पर लिए बिल्ली को देखती रही। हॉल में पहुँच चुकी बिल्ली अनंतिका की तरफ पलटी, उसकी कंजी आँखें मद्धिम प्रकाश में हीरों की मानिंद चमक रही थीं।


“आपने कमरे में इसे ही देखा होगा,”


“नहीं, वो साया आदम कद था,”


“नीचे और इतनी दूरी से क्या पता चलता है! वैसे अब खतरा टल चुका है, अगर हम फ़ौरन बाहर नहीं निकले तो लोग हमारे इस बंद कॉटिज में अकेले होने का कुछ और ही मतलब निकालना शुरू कर देंगे,”


अनंतिका आश्वस्त तो नहीं हुई कि उसने खिड़की पर जो साया देखा था वो बिल्ली का था लेकिन उस घड़ी उसने कन्वर्सेशन ड्रॉप कर दी। अंश ठीक कह रहा था। अनंतिका ने मन ही मन निश्चय किया कि अभी कॉटिज में घटित घटनाओं के बारे में वो निखिल को कुछ भी नहीं बताएगी। वो निखिल से सिर्फ खिड़की पर दिखे साये के बारे में ही बात करेगी। बाहर निकलने से पहले उसने अंश से सवाल किया।


“सुनो! तुम देर रात को हमारे कॉटिज की तरफ़ अंधेरे में क्या देखते रहते हो?” अनंतिका को खुद से इतना ब्लंट्ली सवाल करने की उम्मीद नहीं थी लेकिन उसे दूसरा कोई तरीक़ा समझ ना आया अपना सवाल रखने का।


अंश उसके सवाल पर थोड़ा झेंपते हुए बोला।

“ऐक्चूअली, मुझे स्लीप वॉकिंग की आदत है। रात को नींद में उठ कर चलता हूँ। कमरे से बाहर ना निकल जाऊँ इसलिए मम्मा रूम बाहर से लॉक कर देती हैं। हो सकता है आपने मुझे स्लीप वॉकिंग करते देखा होगा…आय..आय एम रीयली सॉरी,”


“इट्स ओके। मुझे नहीं पता था तुम्हें स्लीप वॉकिंग सिंड्रोम है,” अनंतिका अंश के जवाब से पूरी तरह आश्वस्त नहीं थी, उसे ऐसा लगा जैसे अंश खुद को बचाने के लिए झूठ बोल रहा है। फिर भी उसने ये कॉन्वर्सेशन वहीं ड्रॉप कर दिया। 


कॉटिज का दरवाज़ा खुला और अनंतिका बाहर निकली, अंश उसके पीछे था। अनंतिका ने देखा कि लॉन में खड़े निखिल की नज़रें उसपर ही थीं। पार्टी के दौरान दोनों में कोई इंटरेक्शन नहीं हुआ। 


***


रात के तकरीबन तीन बज रहे थे, अनंतिका की नज़रों से नींद अब भी कोसों दूर थी। 


उसका दिमाग किसी फिल्म के टेप की तरह शाम की घटनाओं को बार-बार रिवाइंड करके चला रहा था। हर बार घटनाएँ पहले से अधिक अनरियलिस्टिक प्रतीत होने लगती थीं। ये एक सामान्य प्रक्रिया है कि जब भी किसी घटना को बार-बार दिमाग में चलचित्रों के रूप में चलाने की कोशिश की जाती है इंसानी मस्तिष्क हर बार घटनाओं का अलग प्रारूप प्रस्तुत करता है। घटनाएँ बेशक वही होती हैं लेकिन इंसानी मस्तिष्क उन्हें अपने अनुरूप गढ़ता है और हर प्रारूप में दूसरे से छोटी ही सही लेकिन असमानता अवश्य होती है। 


ये तब भी होता है जब हम नींद के दौरान देखे गए किसी सपने को अपने दिमाग में बार-बार दोहराते हैं, हर बार दिमाग उस स्वप्न का भिन्न प्रारूप हमारे समक्ष प्रस्तुत करता है और हर दोहराव के बाद स्वप्न की स्पष्टता धूमिल पड़ती जाती है और धीरे-धीरे स्वप्न हमारे स्मृति पटल पर एक धुंधली सरीयलिस्ट पेंटिंग के स्वरूप में रह जाता है। 


मस्तिष्क पटल पर बार-बार चल रहे फ़्लैशबैक में जो घटना अनंतिका के ज़हन में सबसे स्पष्ट थी वो थी अंश के उसे बाहों में पकड़ कर गिरने से बचाने की। 


अनंतिका बार-बार अंश के जिस्म की ख़ुशबू, उसकी साँसों की ताप अपनी त्वचा पर पड़ने की कल्पना कर रही थी और उत्तेजना से उसके रौंगटे खड़े हो जा रहे थे। उस पल अनंतिका अंश के आगोश की कल्पना कर रही थी। जिस तरह उसके उभार अंश के सीने से रगड़ खा रहे थे वो उस एहसास को फिर से महसूस करना चाहती थी। क्यों? क्यों कर रही थी वो अंश के आगोश की कल्पना? अनंतिका के अंतर्मन जैसे उससे ही ये सवाल सा दाग दिया। क्या इसीलिए उसे निखिल का स्पर्श इतना नागवार लग रहा था? 


अनंतिका आम लड़कियों से काफी अलग थी और इसका सबसे बड़ा कारण उसके गुज़रे हुए अतीत, उसके बचपन का एक भयावह सच था जिसने अनंतिका की जिंदगी और उसकी सोच की दिशा पूरी तरह बदल दी थी। निखिल अनंतिका की जिंदगी में पहला लड़का नहीं था, उससे पहले भी अनंतिका कई रिलेशनशिप्स में रह चुकी थी। उसका कोई भी रिलेशनशिप एक-डेढ़ साल से अधिक नहीं चल पाता था जिसकी एक बड़ी वजह अनंतिका का डॉमिनेंट नेचर था। 


एक आम लड़की से अलग, अनंतिका को कभी भी शर्म का एहसास नहीं हुआ था। अपने इतने पार्टनर्स में से किसी एक के स्पर्श ने भी उसके चेहरे को सुर्ख लाल कभी नहीं किया था। किसी भी लड़के के स्पर्श ने उसके अंदर उन भावनाओं का आवेग जागृत नहीं किया था जिन्हें उसने जीवन में पहली बार तब महसूस किया जब अंश ने उसे छुआ था। अंश के स्पर्श की कल्पना मात्र से ही उसे अपनी सासें तेज़ होती प्रतीत हुई। उसका जिस्म द्रवित हो रहा था। उसने अपना सर झटका जैसे इस घटना और अंश के ख्याल को अपने दिमाग से निकाल फेंकना चाहती हो। 


अनंतिका ने फर पिलो को कस कर अपने सीने से भींच लिया और आँखें बंद करके ज़बरदस्ती सोने की कोशिश करने लगी। लेकिन ये कोशिश नाकाम ही साबित हुई, उसकी बंद आँखों के सामने बार-बार अंश का मुस्कुराता हुआ चेहरा आ रहा था। झुंझलाकर अनंतिका ने अपनी आँखें खोल लीं।


“इन्फेट्यूएशन की शिकार किसी सोलह साल की टीनएजर जैसे बिहेव करना बंद कर अनंतिका!!”


अनंतिका ने मन ही मन खुद को डांट लगाईं। 


कसमसा कर उसने बगल करवट ली। उसकी बगल में लेटे निखिल की गहरी साँसों की हल्की आवाज़ कमरे में सुनाई दे रही थी, जो उसके गहरी नींद में डूबे होने की चुगली कर रही थी। अनंतिका ने एक नज़र निखिल पर डाली, उस घड़ी निखिल का चेहरा बिलकुल शांत नजर आ रहा था। 


अंश के प्रति अनंतिका के मन में जिन भावों का बीजारोपण हो चुका था उसके लिए वो खुद को निखिल की गुनाहगार समझ रही थी। उसने प्यार से सोते हुए निखिल के बालों में उंगलियाँ फिराई। निखिल किसी छोटे बच्चे की तरह कुनमुनाया और फिर सो गया। अनंतिका उसकी इस अदा पर मुस्कुरा दी। आज निखिल पर वो कुछ ज्यादा ही हार्श हो गई थी, उसने फैसला किया कि सुबह उठते ही वो निखिल की सारी शिकायतें दूर कर देगी। निखिल को चैन से सोता हुआ देखकर अनंतिका ने एक बार फिर सोने के लिए आँखें बंद की ही थीं कि निखिल की साँसों के साथ एक और आवाज़ ने उसके कानों पर चोट की। ये बहुत ही हल्की पदचापों की आवाज़ थी। 


उसकी पलकों के पट फ़टाक करके खुल गए। किसी स्प्रिंग लगी गुड़िया के जैसे बेड पर उठ बैठी अनंतिका।


क्या उसके कान बज रहे थे? कहीं उसका दिमाग कोई खेल तो नहीं खेल रहा था। अनंतिका ने अपनी ऊपर-नीचे होती साँसों को रोक कर कान पर जोर डाला। नहीं, ये उसका भ्रम नहीं था। रात के उस सन्नाटे में वाकई किसी के चलने की आवाज़ आ रही थी और कम से कम ये बात निश्चित थी कि वो पदचाप बिल्ली के नहीं बल्कि किसी इंसान के थे। 


अनंतिका ने एक नजर सोते हुए निखिल पर डाली। अनंतिका के चेहरे पर असमंजस के भाव थे, वो समझ नहीं पा रही थी कि उसे इस परिस्थिति में निखिल को उठाना चाहिए या नहीं। कुछ पल अनिश्चितता से वो सोते हुए निखिल को देखती रही। उसने अपना हाथ निखिल के कंधे की ओर बढ़ाया लेकिन लगभग फ़ौरन ही वापस खींच लिया। अनंतिका फैसला ले चुकी थी, उसने अकेले ही बेड से उतर कर दरवाज़े की ओर कदम बढ़ाए। 


कमरे में शेन्डलियर का हल्का पीला प्रकाश था जबकि कमरे से बाहर बिलकुल ही घुप्प अन्धकार छाया हुआ था। अनंतिका ने रौशनी के लिए अपना मोबाइल फोन साथ ले लिया था लेकिन उसकी लाइट ऑन नहीं की थी। लाइट जलाने से वहां मौजूद घुसपैठिया सावधान हो सकता था या फिर बौखलाकर उसपर हमला भी कर सकता था। 


अनंतिका ने पूरी कोशिश की कि कमरे का दरवाज़ा बिना आवाज़ के खुले लेकिन पुरानी इमारत के भारी दरवाज़े का बोझ उठाती चूलें और क़ब्ज़े एक हलकी कराह लेने से बाज़ ना आए। दरवाज़ा खुलने की आवाज़ कुछ वैसी ही थी जैसी 80 के दशक की हिंदी हॉरर फिल्मों में होती थी। अनंतिका ने कमरें से बाहर कदम रखा। उस घड़ी वैसे भी उसे यही प्रतीत हो रहा था कि वो किसी भूतिया हवेली में खड़ी है। चारों ओर घुप्प अन्धकार के साथ वहां के वातावरण में एक अजीब सी मनहूसियत भी व्याप्त थी, एकाएक ऐसा लग रहा था जैसे उस जगह का तापमान काफी गिर गया हो। 


डर और उत्तेजना के अलावा वातावरण में बढ़ गई ठंड भी कारण थी कि अनंतिका के जिस्म के रौंगटे खड़े हो गए थे और रह-रह कर उसे कंपकंपी छूट रही थी। उस घड़ी उसने सिर्फ अपना झीना नाईट गाउन ही पहना हुआ था और उसे अफ़सोस हो रहा था कि उसने अपने जिस्म पर वुलन स्टोल क्यों ना लपेट लिया। वो दोबारा कमरे में लौटने का रिस्क नहीं लेना चाहती थी, बार-बार खुल-बंद होते दरवाज़े की आवाज़ उसके प्लान को फेल कर देती। 


कमरे से बाहर निकल कर अनंतिका कुछ देर तक वहीं खड़ी रही। अपने कानों पर जोर देकर वो सुनने की कोशिश करने लगी कि आखिर पदचापों की आवाज़ किस दिशा से आ रही थी। इसके अलावा कुछ देर तक अँधेरे में खड़े रहने के कारण उसकी आँखें इतनी अभ्यस्त हो गईं कि अपने आस-पास का क्षेत्र वो अनुमानित रूप से देख समझ सकती थी। 


अँधेरे सन्नाटे में उस घड़ी अनंतिका की उखड़ी हुई साँसों का शोर गूँज रहा था। अनंतिका ने अपनी सांस रोक ली ताकि पदचापों की आवाज़ सुन सके। कुछ देर तक कोशिश करने के बाद उसके कानों में पदचापों की बहुत हल्की सी ध्वनि ने चोट की। अनंतिका की नज़रें स्वतः ही ऊपर छत की ओर उठ गई। पदचापों की आवाज़ ऊपर दूसरी मंजिल से आ रही थी। अनंतिका का दिल जैसे धक करके रह गया। ऐसा कैसे हो सकता था? दूसरी और तीसरी मंजिल को जाती हुई सीढ़ियों पर एक दरवाज़ा था जिसपर बहुत ही मज़बूत ताला जड़ा हुआ था। दूसरी मंजिल तक जाने का रास्ता बंद था फिर भला पदचापों की आवाज़ ऊपर से कैसे आ सकती थी? 


“नहीं, मुझे शायद वहम हो रहा है। वैसे भी इतनी बड़ी कॉटिज में और इस घुप्प सन्नाटे में आवाज़ एको हो सकती है। निश्चित तौर पर आवाज़ एको ही हो रही है इसलिए ऊपर से आती लग रही है,”अनंतिका यह सोचते हुए मन ही मन खुद को ढाढ़स बंधाने की कोशिश कर रही थी। 


ठीक उसी समय उसके सर के ऊपर छत पर किसी चीज़ के गिरने की आवाज़ हुई, अनंतिका के होंठों से एक दबी हुई सिसकारी निकली। अब शक की कोई गुंजाइश नहीं थी, हवा से पदचापों की आवाज़ एको नहीं हो रही थी बल्कि वाकई वो पदचाप उसके सर के ऊपर छत पर यानी दूसरी मंजिल के फर्श पर ही पड़ रहे थे।


सबसे पहला विचार जो अनंतिका के मन में उस घड़ी आया वो यही था कि ऊपर दूसरी मंजिल पर कोई प्रेतात्मा भटक रही है। वैसे भी पुरानी इमारतों और कॉटिज को लेकर लोगों की ऐसी धारणा बहुत ही आम बात है। अनंतिका भूत-प्रेत या अंधविश्वास में यकीन करने वाली लड़की बिलकुल नहीं थी। उसने अपने जीवन में इंसानों को हैवानियत की उन सीमाओं को लांघते देखा था जो कोई अस्तित्वहीन शक्ति नहीं कर सकती थी। 


अनंतिका के चेहरे के भाव सख्त हो गए। पदचापों के साथ एक और बहुत ही हल्की सी आवाज़ अब उसे हवा की सरसराहट में सुनाई दे रही थी। अनंतिका अपनी सांस रोके उस आवाज़ पर ध्यान केन्द्रित करने की कोशिश कर रही थी। आवाज़ अब पहले से साफ़ सुनाई दे रही थी। ये आवाज़ थी…गाने की! कोई गुनगुना रहा था। 


अनंतिका को धुन बहुत ही जानी-पहचानी लगी। क्या थी वो धुन? कहाँ सुनी थी उसने? वो हल्की गुनगुनाहट अनंतिका के मन-मस्तिष्क में उन गाने की तरह गूँज रही थी जिसके बोल दिमाग में तो होते हैं पर ज़बान पर नहीं आ रहे होते हैं। 


अनंतिका को झुँझलाहट हो रही थी अब। क्यों नहीं याद आ रही थी उसे वो धुन, उसे ऐसा लग रहा था जैसे इस धुन से उसका कोई बहुत ही गहरा और पुराना रिश्ता है। अनंतिका ने झुँझलाहट से अपना सर हाथों में पकड़ लिया। उसके लम्बे बाल उसके चेहरे पर बिखर रहे थे। वो अपना सर अगल-बगल झटकते हुए सिर्फ उस धुन को याद करने की कोशिश कर रही थी। 


अचानक वहां पर उस पदचाप और उस लगभग नहीं सुनाई पड़ती धुन के अलावा एक तीसरी आवाज़ भी गूंजी जो उन दोनों से साफ़ और तीखी थी। ये किसी बच्ची की खिलखिलाने की आवाज़ थी। अनंतिका को अपनी रीढ़ में सिहरन की सर्द लहर दौड़ती प्रतीत हुई। उस खिलखिलाहट को उसने साफ़-साफ़ पहचाना। अब उसे दिमाग में गूंजती उस हल्की धुन के बोल भी ज़ुबान पर साफ़ होते प्रतीत हो रहे थे। आख़िर वो भूल कैसे गयी। अभी एक दिन पहले ही तो उसने सपने में सुनी थी वो नर्सरी राइम। 


खिलखिलाती हुई उस लाल वेल्वेट फ़्रॉक वाली बच्ची का अक्स उसके ज़हन में उभरा, कोहरे से भरे एक धूमिल पड़ते गलियारे में वो छोटी बच्ची खिलखिलाते हुए यूं भाग रही थी जैसे छुप्पन-छुपाई के खेल में किसी छुपे हुए साथी को ढूंढ रही हो। भागते-भागते वो नर्सरी राइम गुनगुना रही थी।


“रिंग अराउंड द रोज़ीस, 

पॉकेट फुल ऑफ़ पोजिज़

हशा-बुशा, वी ऑल फॉल डाउन”


अनंतिका का पूरा शरीर किसी हिस्टेरीया के मरीज़ की मानिंद कांपने लगा। उसे ठंड लग रही थी, बहुत ही ज्यादा ठंड। उसके दांत किटकिटा रहे थे, उसके होंठ थर्रा रहे थे, जिस्म के रौंगटे खड़े था। अपने शरीर को वो अपनी ही बाहों में समेटने की कोशिश कर रही थी, गर्माहट पाने की नाकाम कोशिश। 


“रिंग अराउंड द रोज़ीस, 

पॉकेट फुल ऑफ़ पोजिज़

हशा-बुशा, वी ऑल फॉल डाउन”


अनंतिका के कानों में छोटी बच्ची की पतली, खनकती आवाज़ में नर्सरी राइम की धुन पड़ी। उसने चौंक कर अपना चेहरा उठाया। अनंतिका की आँखें मानो अपने सामने का दृश्य देखकर पथरा सी रही थीं। अपनी आँखों के सामने उसे वो बच्ची खड़ी दिखाई दे रही थी जिसे अनंतिका अच्छी तरह जानती थी। 


हाथ में टेडी बेयर झुलाते हुए वो बच्ची एकटक अनंतिका को ही देख रही थी और राइम गा रही थी। वो बच्ची उस घड़ी ठीक अनंतिका की आँखों के सामने उस गलियारे में खड़ी हुई थी जिसका रास्ता आगे दूसरी मंजिल की सीढ़ियों की ओर जाता था। 


ताज्जुब की बात ये थी कि वहां घुप्प अंधियारा होने के बावजूद अनंतिका को वो बच्ची साफ़-साफ़ नज़र आ रही थी।


अनंतिका ठंड से कांपती हुई, अपने स्थान पर स्तब्ध खड़ी उस बच्ची को एक-टक देख रही थी। अनायास ही अनंतिका को अपनी आँखों से आंसू बहने का एहसास हुआ। उसके बर्फ़ जैसे सर्द गालों पर आंसुओं की गर्म पतली लकीर खिंच रही थी। 


बच्ची अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से, मासूमियत से पलकें झपकाते हुए, अनंतिका को देख रही थी। अनंतिका ने कुछ कहने के लिए अपना मुँह खोला लेकिन उसके गले से आवाज़ ना निकली। भौंचक्की अनंतिका ने अपने हलक पर जोर डाला, आवाज़ फिर भी बाहर ना निकली। उस घड़ी अनंतिका को ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे किसी रिमोट का म्यूट बटन दबा कर उसकी आवाज़ बंद कर दी गई हो। अनंतिका बुरी तरह हांफ रही थी। 


बच्ची अनंतिका को देखकर खिलखिला कर हंस दी और अगले ही पल किसी छोटे से खरगोश की तरह कुलाँचे भरती हुई गलियारे में दूसरी मंजिल की सीढ़ियों को जाते रास्ते की ओर आगे बढ़ गई।


“रिंग अराउंड द रोज़ीस, 

पॉकेट फुल ऑफ़ पोजिज़

हशा-बुशा, वी ऑल फॉल डाउन”


अनंतिका को बच्ची के गाने की आवाज़ सुनाई दे रही थी जो कि बच्ची के साथ-साथ ही उससे दूर होती जा रही थी। अनंतिका ने बच्ची के पीछे अपने कदम बढ़ाए। उसे यूं लग रहा था जैसे आइस बकेट चैलेंज में उसने बर्फीले पानी से भरी बाल्टी खुद पर पलट ली हो उसके बाद जाकर डीप फ़्रीज़र में बैठ गई हो। उसके गले से आवाज़ अब भी नहीं निकल रही थी लेकिन अपनी पूरी इच्छाशक्ति का जोर लगा कर अनंतिका अपनी मौजूदा स्थिति में भी उस बच्ची के पीछे जाने में कामयाब हो गई थी। ठंड से थरथराते-कांपते अनंतिका के पैर सीधे नहीं पड़कर किसी शराबी की तरह आड़े-तिरछे पड़ रहे थे फिर भी लड़खड़ाते क़दमों से वो बच्ची के पीछे जा रही थी।


उसे समझ नहीं आ रहा था कि भला वो बच्ची वहां आई कहाँ से थी और आगे जा कहाँ रही थी। जिन दूसरी मंजिल की सीढ़ियों की ओर वो बढ़ रही थी उनके सीढ़ी घर पर तो ताला लगा हुआ… 

अनंतिका अवाक रह गई। 


सामने दूसरी मंजिल को जाती सीढ़ियों का दरवाज़ा खुला हुआ था। 


वो बच्ची दरवाज़े के मुहाने पर खड़ी थी और पीछे पलट कर अनंतिका को ही देख रही थी। अनंतिका को अपनी ओर देखता पा कर बच्ची एक बार फिर से खिलखिला कर हंसी और खरगोश की भाँति कुलाँचे मारती हुई दूसरी मंजिल को जाती घुमावदार सीढ़ियों पर गायब हो गई। 


अनंतिका भी यूं उस खुले हुए दरवाज़े की ओर बढ़ी जैसे उस बच्ची के सम्मोहन में बंधी हुई हो। घुमावदार सीढ़ियों पर आगे बच्ची भले ही अनंतिका की नज़रों से ओझल हो गई थी लेकिन उसकी खनखनाती आवाज़ में वो नर्सरी राइम अब भी दूर से सुनाई दे रही थी।


“रिंग अराउंड द रोज़ीस,

पॉकेट फुल ऑफ़ पोजिज़

हशा-बुशा, वी ऑल फॉल डाउन”


उस आवाज़ पर खिंची चली जाती अनंतिका दूसरी मंजिल को जाते दरवाज़े की ओर बढ़ रही थी, उसके जिस्म में अब ठंड से अकड़न पैदा हो रही थी। बहुत हिम्मत जुटा कर वो अपना एक-एक कदम आगे बढ़ा रही थी कि अचानक ही किसी ने पीछे से उसका हाथ थाम लिया। अगले ही पल अनंतिका के जिस्म को एक ज़ोरदार झटका लगा और वो भहराते हुए पीछे गिरने लगी। 


अनंतिका ने चीखने की कोशिश की लेकिन उसके हलक से अब भी आवाज़ नहीं निकल रही थी। अनंतिका का बर्फ़ की सिल्ली जैसा सर्द हो चला जिस्म दो बाहों के आगोश में समा गया। उस जिस्म की गर्मी, उसकी खुशबू जानी पहचानी थी। अनंतिका ने अपनी नज़रें उठाई, अंश उसे अपनी बाहों में भरे हुए था। अंश का पूरा चेहरा तमतमाया हुआ था, उसकी आँखें अंगारों के समान जल रही थीं और वो दूसरी मंजिल की सीढ़ियों को जाते उस खुले दरवाज़े को देख रहा था जो स्वतः ही धीरे-धीरे बंद हो रहा था।


अंश की नज़रों का अनुसरण करती हुई अनंतिका की निगाहें भी बंद होते दरवाज़े पर गईं। अनंतिका अंश की बाहों से छूटने के लिए छटपटाई, अंश की बाहों का कसाव अनंतिका के जिस्म पर और ज्यादा कस गया। अनंतिका चिल्लाना चाहती थी, अंश की बाहों से छूटकर उस बंद होते दरवाज़े के पार दूसरी मंजिल को जाती छोटी बच्ची तक पहुंचना चाहती थी लेकिन वो बेबस थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अंश अचानक वहां कैसे पहुँच गया, उसने अंश के चेहरे की ओर देखा और जैसे आँखों से ही उसे छोड़ देने का अनुरोध किया। अंश के चेहरे के तमतमाए भावों में कोई परिवर्तन नहीं आया। अनंतिका को छोड़ने के बजाए अंश ने अपने अंगारों के सामान जलते हुए होंठ सर्द पड़ती अनंतिका की गर्दन पर चुम्बन के रूप में रख दिए। अनंतिका के पूरे जिस्म में जैसे करेंट की लहर दौड़ गई। उसकी सांस उखड़े लगी, जिस्म जैसे एंठने लगा हो। अंश ने उसे अपनी तरफ घुमाया और उसके थरथराहट से कांपते होंठों को अपने होंठों की गिरफ़्त में ले लिया। अनंतिका का प्रतिरोध अब कमज़ोर पड़ रहा था, अंश के हाथ अनंतिका के जिस्म के कोने-कोने पर फिसलने लगे। अनंतिका ने अपनी आँखें बंद कर लीं, उसने अंश की गिरफ़्त से छूटने की अपनी कोशिश भी बंद कर दी। 


अंश के हाथ उसके जिस्म पर फिर रहे थे और वो जैसे उसके हाथों की हरकतों से बचने के लिए उसके ही आगोश में समा रही थी। उस घड़ी अनंतिका को ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वो किसी आक्रामक बर्फीले तूफ़ान के बीच घिरी हुई थी और उसके जिस्म पर सिर्फ वो झीना नाईट गाउन था और अंश ने किसी गर्म मोटे लबादे के मानिंद उसके पूरे जिस्म को ढंक लिया था ताकि वो बर्फीला तूफ़ान अनंतिका को नुक्सान ना पहुंचा सके। अंश के होंठों ने अनंतिका के होंठों को अपनी गिरफ़्त से आज़ादी दी लेकिन अंश वहीं नहीं रुका। अनंतिका की आँखें अब भी बंद थीं, अंश के होंठ अनंतिका की सुराहीदार गर्दन और उसके कंधों को चूमते हुए नीचे बढ़ गए। एक तीखी सिसकारी के साथ अनंतिका ने अपनी आँखें खोली। उसकी सांस उखड़ी हुई थी, वो बुरी तरह हांफ रही थी और उसका पूरा जिस्म पसीने से नहाया हुआ था। 


अनंतिका ने चौंक कर चारों ओर देखा।


वो कमरे में अपने बेड पर थी, खिड़की से सुबह की धूप छन कर अंदर आ रही थी। अनंतिका को अपना सर यूं घूमता प्रतीत हुआ जैसे उसे अपनी जिंदगी का सबसे बुरा हैंगओवर हुआ हो। उसने एक हाथ से अपना सर पकड़ लिया और आस-पास नज़र घुमाई। बेड पर अपने तकिये के बगल में उसे एक नोट रखा दिखाई दिया।


नोट निखिल का लिखा हुआ था-


“मैंने तुम्हें सुबह उठाने की बहुत कोशिश की लेकिन तुम काफी गहरा सोई हुई थी। मुझे ऑफिस के लिए निकलना था इसलिए ये नोट छोड़ रहा हूँ, ब्रेकफास्ट बना कर माइक्रोवेव में रख दिया है गर्म करके खा लेना।”


“इसका मतलब पिछली रात जो कुछ भी हुआ वो सपना था?” अनंतिका के मन ने उसके ही चकराए हुए दिमाग से सवाल किया।


“लेकिन ये सपना कैसे हो सकता है। वो सब कुछ मेरे सामने हुआ था। उस बच्ची को मैंने अपनी आँखों के सामने दूसरी मंजिल की सीढ़ियों पर भागते देखा था। वो बर्दाश्त से बाहर ठंड जो सिर्फ जिस्म को ही नहीं बल्कि मेरी आत्मा को भी जैसे जमा रही थी उसकी तड़प को हर पल जिया था मैंने…और…और…अंश का एक-एक स्पर्श, मेरे जिस्म पर फिसलते उसके गर्म होंठों को खुद महसूस किया था मैंने, इतना सजीव भला कोई सपना कैसे हो सकता है?” अनंतिका ने जैसे खुद से ही जिरह लगाईं।


वो अब भी असमंजस में थी।


“दूसरी मंजिल का दरवाज़ा!!” अनंतिका के दिमाग में विचार कौंधा। 


वो बेड से उतर कर गिरते-पड़ते कमरे का दरवाज़ा खोल कर सीढ़ियों को जाते गलियारे में पहुंची। उसने गलियारे में दौड़ लगा दी, लेकिन उसे थोडा ही आगे बढ़कर अपने कदम थाम लेने पड़े। वो भौंचक्की सामने देख रही थी। दूसरी मंजिल को जाती सीढ़ियों का दरवाज़ा यथावत बंद था, उसपर लटकता मोटा ताला जैसे शान से झूलते हुए अनंतिका को मुँह चिढ़ा रहा था। अनंतिका को यूं लगा जैसे वो चक्कर खा कर वहीं गिर पड़ेगी। 


बहुत ही मुश्किल से वो वापस कमरे में लौटी, ठीक उसी समय कॉटिज के मुख्य द्वार की कॉलबेल बजी। अनंतिका ने रूम की खिड़की से नीचे बाहर झाँका, दरवाज़े पर अंश खड़ा हुआ था।


“अंश। तुम यहाँ, सुबह-सुबह?”

अनंतिका अपने बिखरे हुए बालों को समेत कर पोनी टेल के रूप में बांधते हुए बोली। नाईट गाउन में खड़ी अनंतिका को ऐसा करते हुए अंश एकटक देख रहा था। 


अंश के चेहरे पर एक आकर्षक मुस्कान उभरी, उसके गालों पर पड़ने वाले डिंपल और उसकी गोरी त्वचा धूप पड़ने से चमक रहे थे। अंश को जैसे अनंतिका की बात सुनाई ही नहीं दी, वो तो उसे अपने बालों से उलझते-खेलते देखने में मशगूल था। 


अपने बालों से उलझी हुई अनंतिका की नज़र अचानक खुद को घूरते अंश पर पड़ी। अंश को यूं अपनी छातियों की तरफ़ घूरता देख कर अनंतिका को एहसास हुआ कि वो सिर्फ सेमी-ट्रैन्स्पेरेंट नाईट गाउन पहने हुए ही नीचे चली आई है, वो बुरी तरह झेंप गई। उसने अपने हाथ नीचे कर के सीने पर बाँध लिए।


“बताओ, सुबह-सुबह यहाँ क्या कर रहे हो?”


“लगता है आपके घर की घड़ी खराब है,” अंश अपनी रिस्ट वॉच अनंतिका की नज़रों के सामने करती हुई बोला।


“बारह बज गए हैं!” अनंतिका हैरान होते हुए बोली।


उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वो इतनी देर तक सोती रही। पिछली रात का सपना अब भी उसकी आँखों के आगे घूम रहा था। कितना सजीव था सब कुछ। अंश के स्पर्श को याद करते ही अनंतिका के जिस्म ने एक झुरझुरी ली। अंश उसे ही देख रहा था जैसे उसके विचार पढ़ने की कोशिश कर रहा हो।


अनंतिका की नज़रें एक बार फिर अंश की कलाई घड़ी पर पड़ी। वो एक रोमन डायल और खाकी रंग के रग स्ट्रैप वाली बहुत ही पुरानी हैंड वाइंडिंग रिस्ट वॉच थी। जैसी कभी अनंतिका ने अपने बचपन में अपने नाना को पहने देखा था, जिसकी धुंधली सी याद उसे अब भी थी।


“मेरी खानदानी घड़ी है ये, दादा जी को उनके पिता ने दी थी, तब से ये पीढ़ी दर पीढ़ी होते हुए मेरे पिता जी से मुझे मिली है,” घड़ी की ओर गौर से देखती अनंतिका से अंश ने कहा। 


अनंतिका उसे असमंजस के भाव से देख रही थी। उस घड़ी अनंतिका के दिलो दिमाग में एकसाथ इतने विचार कौंध रहे थे कि वो ये भूल ही गई कि अंश दरवाज़े पर खड़ा है और उसने अभी तक अंश को अंदर आने को नहीं कहा है। अंश कुछ देर तक अनंतिका को देखता रहा।

 

“आय एम सॉरी, मैंने शायद गलत टाइम पर आपको डिस्टर्ब कर दिया। आपने कहा था कि मैं आपकी पेंटिंग्स देखने कभी भी आ सकता हूँ, बस इसी लिए चला आया था। मैं फिर कभी आ जाऊँगा,” अंश मुस्कुराते हुए बोला और मुड़कर वापस कॉटिज के गार्डन को क्रॉस करते हुए फ्रंट गेट की ओर बढ़ गया।


“अंश!” 

अनंतिका ने पीछे से आवाज़ दी। 


अंश ने पीछे पलट कर अनंतिका की ओर देखा। 


“कम इनसाइड,” अनंतिका अंश को अंदर आने का इशारा करते हुए बोली।

अंश के चेहरे पर मुस्कान खिल गई। अनंतिका अंश को ही देख रही थी, उसका चेहरा यूं चमक रहा था जैसे किसी बच्चे की अम्युज़मेंट पार्क जाने की जिद मान ली गई हो। अंश के चेहरे पर आए उत्सुकता के भाव देखकर अनंतिका मुस्कुराए बिना ना रह पाई। 

 

अनंतिका अंश को लेकर कॉटिज के ग्राउंड फ्लोर पर बने उस हॉल में पहुंची जिसे उसने अपना आर्ट स्टूडियो बनाया था। वहां कई सारे ईज़ल(पेंटिंग कैनवास रखने के स्टैंड) रखे हुए थे। टेर्पेंटाईन ऑइल, टेक्सचर वाइट, और ऑइल पेन्ट्स की गंध पूरे कमरे में भरी हुई थी जो कि वहां रखे विभिन्न छोटे-बड़े, रंग-बिरंगे डिब्बों से आ रही थी। कुछ कैनवास पर पेंसिल से लाइन आर्ट स्केच की हुई थी, कुछ पर बेस कलर लगाए गए थे लेकिन ज़्यादातर कैनवास खाली थे।


“एग्जिबिशन के लिए नई पेंटिंग सीरीज बना रही हूँ, अभी इसपर काम आगे नहीं बढ़ा है,” अनंतिका कोरे कैनवास की ओर देखते हुए बोली।


“आपके पेंसिल स्ट्रोक्स काफी कॉंफिडेंट और फोर्सफुल हैं। किसी भी आर्टिस्ट के स्ट्रोक्स उसकी पर्सनालिटी के बारे में काफी कुछ बताते हैं,” अंश मुस्कुराते हुए बोला, वो एक कैनवास को गौर से देख रहा था जिसपर एक मेल न्यूड फिगर पेंसिल स्केच किया हुआ था।


“अच्छा! मेरे स्ट्रोक्स क्या बताते हैं मेरे बारे में?” अनंतिका ने मुस्कुराते हुए पूछा। 


अंश ने अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कुराते हुए अनंतिका को देखा लेकिन उसके सवाल का कोई जवाब ना दिया।


“मेरी बनाई कम्पलीट पेंटिंग्स इधर हैं,” अनंतिका एक ओर रखे कई फिनिश्ड कैनवास की ओर इशारा करते हुए बोली। 

अंश उन पेंटिंग्स की ओर बढ़ गया। 

 

फर्श पर रखे कैनवास करीब से देखने के लिए वो घुटनों के बल नीचे फर्श पर बैठ गया और एक-एक कैनवास उठा कर करीब से देखने लगा। ज़्यादातर पेंटिंग्स कंटेम्पररी स्टाइल में बनी हुई थीं, ज़्यादातर फिगरेटिव और न्यूड्स थे।


“आपकी फिगर स्टडी काफी अच्छी है अनंतिका, वर्ना आजकल तो ज़्यादातर आर्टिस्ट फ्री-स्टाइल और एब्सट्रैक्ट आर्ट का बहाना बना कर सिर्फ आड़ी-तिरछी लाइंस खींचते हैं और उसे अपने विचारों की अभिव्यक्ति साबित करने पर तुले रहते हैं जबकि वास्तविकता में उनसे एक ह्यूमन फिगर ड्राइंग भी ढंग से नहीं बन सकती,” अंश प्रशंसात्मक भाव से बोला।


“थैंक यू अंश,” अनंतिका ने मुस्कुराते हुए कहा। 


अनंतिका ने ध्यान दिया कि फर्श पर बैठे अंश की निगाहें बार बार उसके नाईट गाउन ने निचले हिस्से पर जा रही थी जो कि अनंतिका की जाँघों पर आकर खत्म हो रहा था। अनंतिका झेंप गई।


“तुम पेंटिंग्स देखो मैं अभी आती हूँ,” 

 

अनंतिका ने अंश से कहा और वहां से निकल कर सीढ़ियों की ओर बढ़ गई। अनंतिका पहली मंजिल पर अपने बेडरूम में पहुंची। उसने कमरे का दरवाज़ा बंद किया और वार्डरॉब से कपडे निकालने लगी। अपनी पसंद के कपडे निकाल कर उसने बेड पर रखे और नाईट गाउन अपने जिस्म से उतारा। अनंतिका ने अपने हाथ बेड पर रखे अंडरगारमेंट्स की ओर बढ़ाए ही थे कि उसे महसूस हुआ कि उसके ठीक पीछे बेडरूम के दरवाज़े पर कोई उसे खड़ा घूर रहा है। 


 अनंतिका चौंक कर पीछे पलटी। दरवाज़े पर कोई नहीं था लेकिन बेडरूम का दरवाज़ा खुला हुआ था जैसे वहां कोई हो जबकि अनंतिका ने बेडरूम में आते ही सबसे पहले दरवाज़ा बंद किया था। उसे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था कि उसने बेडरूम का दरवाज़ा बंद करके अन्दर से चिटकनी क्यों ना लगाईं। उसे ऐसा करना चाहिए था, वो भी तब जब वो जानती थी कि उसके अलावा कॉटिज में अंश उपस्थित है। अंश! क्या ये अंश की हरकत थी? क्या अंश उसके पीछे ऊपर बेडरूम तक आया था? 


 अनंतिका को बहुत ज्यादा गुस्सा आ रहा था। उसने दरवाज़ा बंद करके ऊपर से चिटकनी लगाईं और जल्दी से कपडे पहने। फिर वो आंधी-तूफ़ान की तरह सीढ़ियों को रौंदती हुई नीचे स्टूडियो हॉल में पहुंची। 

“आप बहुत टैलेंटेड हैं अनंतिका, क्या आप मुझे पेंटिंग टेक्निक्स में गाइड करेंगी?” अनंतिका को वापस आया देखकर अंश निश्छल भाव से मुस्कुराते हुए बोला।


“अंश, क्या तुम मेरे पीछे ऊपर आए थे?” अनंतिका का स्वर भावहीन था।


“नहीं, मैं तो यहीं बैठा पेंटिंग्स देख रहा था,” अंश कंधे उचकाते हुए निर्विकार भाव से बोला।


अनंतिका तय नहीं कर पा रही थी कि अंश सच बोल रहा है या झूठ। ऐसा भी हो सकता था कि अंश सच बोल रहा हो, दरवाज़ा हवा से खुल गया हो। लेकिन बंद कॉटिज के अंदर इतनी तेज़ हवा कहाँ से आएगी जो लगे हुए दरवाज़े को खोल दे?


“वैसे आपको आर्ट स्टूडियो के लिए कॉटिज की दूसरी मंजिल का हॉल इस्तेमाल करना चाहिए था, वो इस हॉल से ज्यादा बड़ा है। आपको ज्यादा स्पेस मिलता और वहां से आपको इस एरिया के पीछे वाले जंगल का भी अच्छा व्यू मिलता,” अंश अपनी जगह से उठते हुए बोला।


“तुमने इस कॉटिज की दूसरी मंजिल देखी है?” अनंतिका ने चौंकते हुए कहा।


“आपने शायद ध्यान नहीं दिया, इस कॉटिज और मेरी कॉटिज का एक्सटीरियर आर्किटेक्चरल डिज़ाइन ही नहीं बल्कि इंटीरियर भी हूबहू एक जैसा है,” अंश अनंतिका के पास आते हुए बोला।


अनंतिका ने वाकई इस बात पर ध्यान नहीं दिया था।


“लेकिन ऐसा क्यों?”


“रोमेश दीवान, जिनकी ये कॉटिज है वो और मेरे पिता बहुत गहरे दोस्त थे। उनकी दोस्ती के किस्से पूरे चकराता में मशहूर थे,” अंश मुस्कुराते हुए बोला, “दोनों के ही पास पुश्तैनी हवेली थी लेकिन फिर भी दोनों दोस्तों ने एक ही जगह पर अगल-बगल हूबहू कॉटिज बनवाए,”


“कमाल की बात है,” अनंतिका कुछ सोचते हुए बोली।


“अब आप किस सोच में पड़ गयीं?” अंश ने अनंतिका की तरफ देखकर पूछा। 


“क…कुछ नहीं।” अनंतिका के माथे पर उलझन बल बनकर बिखरी हुई थी। 


“बताओ भी!”


“म…मुझे कभी-कभी लगता है कि…कि…मेरे अलावा भी इस कॉटिज में कोई है,”


“सही लगता है आपको। आपके अलावा भी इस कॉटिज में कोई है,” अंश के चेहरे पर बेहद गंभीर भाव थे। 


“क..कौन?” अनंतिका का चेहरा सफ़ेद पड़ रहा था। 


अंश अपना चेहरा हौले से अनंतिका के करीब लाया, ‘निखिल…आपके बॉयफ्रेंड, वो रहते हैं ना यहाँ आपके अलावा,” अंश यूं अनंतिका के कान में फुसफुसाते हुए बोला जैसे उसे बहुत ही राज़ की बात बता रहा हो।


“स्टॉप इट अंश!” खिलखिलाते हुए अनंतिका ने एक हल्की चपत अंश के सर पर लगा दी।


“वेट।।वेट…कोई और भी है,” अंश उसे रोकते हुए बोला। अंश का चेहरा इस बार सच में गंभीर था। अनंतिका भी ठिठक गई।


“वो काली बिल्ली जो कल शाम दिखी थी,” अंश अपनी हंसी और नहीं रोक पाया। पेट पकड़ कर हँसते हुए बोला।


“रुक जा तुझे बताती हूँ,” अनंतिका भी खिलखिलाते हुए बोली और अंश को मारने के लिए उसके पीछे भागी। 


अंश उससे बचते हुए वहां रखे ईज़्ल्स के पीछे छुपने लगा। अंश और अनंतिका में लुका-छुपी का खेल शुरू हो गया था। कुछ देर के लिए अंश के साथ अनंतिका सब कुछ भूल गई। अपना डर, पिछली रात का ख़ौफ़, उसका दुस्वप्न और…निखिल!


***


ऑफिस में बैठे निखिल को चैन नहीं पड़ रहा था। 


उसने पांचवीं बार अनंतिका के मोबाइल पर कॉल लगाया। इस बार भी पूरी रिंग जाने के बाद कॉल मिस्ड हो गई। ऐसा कभी नहीं होता था कि अनंतिका निखिल का कॉल ना उठाए। सुबह इम्पॉर्टेन्ट मीटिंग की वजह से निखिल अनंतिका को सोते हुए ही उसके लिए नोट छोड़ कर आया था, अब उसे अनंतिका की चिंता बुरी तरह सता रही थी। कहीं अनंतिका की तबियत तो खराब नहीं हो गई थी? 


पिछली रात अनंतिका से बहस करने के लिए भी अब निखिल को बुरा लग रहा था। उसने जैसे-तैसे सुबह की मीटिंग तो निपटा ली थी लेकिन अब एक पल भी उसे ऑफिस में रुकना दुश्वार लग रहा था। निखिल अपने ऑफिस केबिन से बाहर निकला। 


प्रेरणा ने ख़ास तौर पर अपने ऑफिस केबिन के बगल वाले केबिन को निखिल के लिए व्यवस्थित करवाया था। निखिल डायरेक्टली प्रेरणा दीवान को आंसरेबल था, ऑफिस में किसी भी अन्य एम्प्लॉई को अनुमति नहीं थी कि वो निखिल से सवाल-जवाब करें।


“प्रेरणा , कैन आय हैव ए वर्ड विद यू,” हड़बड़ाए हुए निखिल ने प्रेरणा के ऑफिस केबिन में प्रवेश किया।


“श्योर निखिल। क्या बात है तुम परेशान लग रहे हो?” प्रेरणा ने अपने लैपटॉप से नज़रें उठाते हुए कहा।


“इट्स अबाउट अनंतिका। वो फोन नहीं उठा रही है। आइ होप शी’ज़ फाइन, पर मैं वापस कॉटिज जाकर चेक करना चाहता हूँ कि वो ठीक तो है,”


“ऑफ़ कोर्स निखिल। तुम जाओ, और जैसी भी स्थिति होगी मुझे इन्फ़ॉर्म करना। आय’म श्योर अनंतिका ठीक होगी, कहीं बिजी होने की वजह से वो तुम्हारे कॉल्स नहीं ले पा रही होगी,”


निखिल ने एक फीकी सी मुस्कान के साथ प्रेरणा का अभिवादन किया और फिर आंधी-तूफ़ान की तरह वहां से बाहर निकल गया। अपनी एग्जीक्यूटिव चेयर पर बैठी प्रेरणा विचारों के भंवर में फंसी हुई थी। उसने अपने मोबाइल फोन की गैलरी खोली, कुछ पुरानी यादें जो अब भी उसने अपने साथ संजोयी थी मोबाइल स्क्रीन पर सजीव हो उठी। 


प्रेरणा के चेहरे पर एक के बाद एक कई भाव आए और गए। ठीक उसी समय उसका मोबाइल बजा। मोबाइल पर फ़्लैश हो रहे नाम को देखकर प्रेरणा की आँखें जैसे अविश्वास से फैलीं। वो इस कॉल की अपेक्षा नहीं कर रही थी।


***


“ओके-ओके, आइ गिव अप!” अंश ने हँसते हुए अपने दोनों हाथ ऊपर उठाए और सरेंडर करने की मुद्रा में कहा।


अनंतिका भी हंसती हुई अंश की ओर बढ़ रही थी, ठीक उसी समय स्टूडियो में कुछ हलचल ही। एक खाली ईज़ल के पीछे छुपी हुई काली बिल्ली अपनी जगह से निकल कर अंश व अनंतिका के बीच का रास्ता काटते हुए तेज़ी से भागी। 


बिल्ली से टकराकर फर्श पर रखा एक कैन गिर गया जिसमें भरा हुआ टरपेंटाइन ऑइल फर्श पर बिखर गया। इससे पहले कि आगे बढती अनंतिका कुछ समझ पाती वो बुरी तरह नीचे फैले टरपेंटाइन ऑइल पर फिसल कर सामने खड़े अंश से टकराई। अंश भी अपना संतुलन कायम ना रख सका और अनंतिका को लिए हुए नीचे फर्श पर जा गिरा। नीचे गिरते हुए अंश और अनंतिका टरपेंटाइन ऑइल के पास ही रखे कलर कैन्स से टकराए, नतीजतन एक-एक कर के गिरते कैन्स से तरल रंग अंश और अनंतिका को सराबोर करते चले गए। 


अंश फर्श पर पीठ के बल चित्त गिरा हुआ था और अनंतिका उसके सीने पर थी। दोनों टरपेंटाइन ऑइल और विभिन्न रंगों से यों सने हुए थे जैसे अभी-अभी होली खेली हो। रंगों की गंध उनके जिस्म की एक होती खुशबू के साथ घुल रही थी। कुछ पलों के लिए उनकी सासें जैसे रंगों की चिपचिपाहट में ही फंस कर रह गईं। अब वो हंस नहीं रहे थे, सिर्फ एक-दूसरे की आँखों में अपने आपको निहार रहे थे। 


अनंतिका के कपोलों के ऊपर लाल रंग के कुछ छींटे बिखरे हुए थे। अंश ने हौले से अपनी उंगलियाँ अनंतिका के नाज़ुक कपोलों पर फिराई, अनंतिका के होंठ रंग की और चेहरा शर्म की लालिमा से सुर्ख हो उठे। 


अनंतिका के होंठ और उसकी सासें अंश के स्पर्श से थर्रा रहे थे। नियति बार-बार अनंतिका और अंश को करीब ला रही थी, बहुत ज्यादा करीब। अंश को लेकर अनंतिका बहुत ज्यादा पशोपेश में थी। जब अंश उसके सामने नहीं होता था तब अंश को लेकर उसके मन में अनेकों संशय होते थे और जब अंश उसके सामने होता था तब वो सारे संशय जैसे जिस्मों के ताप में वाष्पित हो जाते। अनंतिका ने अंश की उँगलियों को आगे बढ़ने से थाम लिया और उसका सहारा लेकर खड़ी हुई, अंश ने भी खुद को सम्भाला और अनंतिका के पीछे खड़ा हुआ।


आंधी-तूफ़ान की तरह गाड़ी उड़ाता हुआ निखिल कॉटिज तक पहुंचा। कॉटिज के फ्रंट गेट से कॉटिज के मेन डोर तक का फासला भी उसने लगभग उड़ते हुए ही तय किया। उसने कॉटिज की ‘पुल रोप बेल’ खींची, कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। 


निखिल का दिल बैठने लगा, वो पागलों की तरह लगातार बेल को खींचने लगा। थोड़ी देर में दरवाज़ा खुला, हांफती हुई अनंतिका उसके सामने खड़ी थी।


“न…निखिल! तुम ठीक तो हो? तुम इस समय यहाँ क्या कर रहे…” अनंतिका अपनी बात पूरी भी ना कर पाई, निखिल ने उसे अपने पास खींच लिया और यूं अपनी बाहों में लपेट लिया जैसे उसे डर हो कि अगर उसने अनंतिका को छोड़ा तो वो उसे कभी मिलेगी ही नहीं।


“अ…आइ एम सॉरी अनी…कल रात के लिए… त…तुम फ़ोन क्यों नहीं उठा रही थी…कितना डर गया था मैं तुम्हारे लिए," अनंतिका को खुद से भींचते हुए निखिल एक ही सांस में बोल गया।


“इट्स ऑल राइट निखिल…म…मैं बहुत लेट से सो कर उठी, अभी मैं शावर लेने चली गई थी। मैंने रात शायद मोबाइल वाइब्रेशन पर लगाया था और उसे चेक करना ही भूल गई," अनंतिका प्यार से निखिल के बालों में उंगलियाँ फिराते हुए बोली।


उस घड़ी उसके दिमाग में एक ही बात चल रही थी, अगर निखिल मात्र दस मिनट पहले वहां आ गया होता तो उसके लिए रंगों में सराबोर, एक-दूसरे से उलझे हुए अंश और अपनी स्थिति उसे समझा पाना बेहद मुश्किल हो जाता। ग़नीमत थी कि अंश दस मिनट पहले ही वहां से निकल गया था और अनंतिका खुद को साफ़ करने के लिए शावर लेने चली गई थी। उस दिन वाकई उसे जगने के बाद से ना ही अपना फोन चेक करने का मौका मिला ना ख्याल आया।


“मैं बता नहीं सकता मेरे दिमाग में कैसे-कैसे ख्याल आ रहे थे,” निखिल चैन की सांस लेते हुए बोला।


“अच्छा! जरा मैं भी तो सुनूँ, कैसे-कैसे ख्याल आ रहे थे?” अनंतिका शरारत भरी नज़रों से निखिल की आँखों में झांकते हुए बोली। 


निखिल ने जवाब देने की बजाए अनंतिका को गोद में उठा लिया और कॉटिज के अंदर जाकर दरवाज़ा बंद कर लिया। 


अन्दर आते ही आते ही निखिल के होंठ अनंतिका के होंठों से उलझ गए और उसकी ज़बान अनंतिका की ज़बान का आलिंगन करने लगी। रात की तरह इस समय अनंतिका ने उसे रोकने की कोशिश ना की। इसकी एक बड़ी वजह शायद यह भी थी कि आज जिंदगी में पहली बार अनंतिका अपराध बोध से ग्रस्त थी। अंश को लेकर उसके मन में जन्म ले रही भावनाएँ उसे निखिल के प्रति विश्वासघात करने का बोध करा रही थीं। 


अनंतिका हमेशा से ही उन्मुक्त और स्वच्छंद विचारधारा वाली लड़की थी, अनगिनत लड़कों के साथ उसके अन्तरंग रिश्ते रहे लेकिन अनंतिका ने एक ही समय पर कभी भी दो लोगों से रिश्ता नहीं रखा। अनंतिका जानती थी कि वो ‘सीरियल मोनोगमिस्ट’ है। वो जब भी किसी के साथ एक रिश्ते में रहती थी उस व्यक्ति और रिश्ते के प्रति बेहद वफादार और ईमानदार रहती थी। कभी भी अपने एक रिश्ते के दौरान वो किसी अन्य से रिश्ता स्थापित नहीं करती थी। ये अलग बात है कि उसकी स्वतंत्र सोच, स्वच्छंद विचारधारा और उन्मुक्त जीवनशैली के कारण उसका कोई भी रिश्ता अधिक लम्बा नहीं चलता था। 


उसके रिश्तों के ना चल पाने की बड़ी वजह यह भी थी कि अनंतिका शादी के लिए कभी भी कमिट नहीं कर सकती थी। उसे शादी की प्रथा से ही दिक्कत थी, रिश्ते के साथ बोझ के रूप में आई जिम्मेदारियों और जवाबदेहियों से दिक्कत थी। उसने अपने पिछले संबंधों और उनके टूटने के कारणों को लेकर निखिल को कभी भी अँधेरे में नहीं रखा, अपनी तरफ से वो अब तक निखिल के साथ अपने सम्बन्ध में बिलकुल पारदर्शी थी लेकिन आज उस रिश्ते की पारदर्शिता धूमिल पड़ रही थी और इसके लिए अनंतिका खुद को ज़िम्मेदार मान रही थी।


निखिल ने अनंतिका के कपडे उसके जिस्म से अलग कर वहीं हॉल में ही फेंक दिए, अनंतिका ने प्रतिवाद ना किया। निखिल के होंठ पुनः अनंतिका के होंठों से उलझ गए, वो उसे गोद में उठा कर सीढ़ियों की ओर बढ़ गया। सीढ़ियाँ चढ़ते-चढ़ते अनंतिका निखिल की शर्ट के बटन खोल चुकी थी। बेडरूम तक पहुँचते-पहुँचते निखिल की शर्ट उसके जिस्म से अलग होकर पहली मंजिल से उड़ते हुए नीचे हॉल के फर्श की ओर बढ़ रही थी।


अंश शावर के नीचे खड़ा हुआ था, उसकी पीठ पर गिरती पानी की फुहार रंगों को उसके जिस्म से कतरा-कतरा कर धो रही थीं। वॉशरूम के फर्श के सफ़ेद टाइल पर पाने के साथ धुलते हुए वो रंग एक लकीर खींच रहे थे, अंश उन धुलते हुए रंगों को देख रहा था। वो उसे अनंतिका के स्पर्श, उसके जिस्म की गर्माहट, उसकी खुशबू का एहसास अब भी दे रहे थे। अंश ने अपनी आँखें बंद कर लीं, उसकी बंद आँखों के सामने अनंतिका का ही अक्स उभरा। अंश उस घड़ी अनंतिका के अपने साथ वहां शावर में होने की कल्पना करने लगा, उससे अब ये बेचैनी बर्दाश्त नहीं हो रही थी। उसके हाथ अपनी जाँघों के बीच बढ़ गए।


“आज शाम कहीं बाहर घूमने चलते हैं। हम जबसे यहाँ आए हैं कहीं बाहर नहीं निकले,” निखिल अनंतिका की पीठ सहलाते हुए बोला। निखिल इत्मीनान से पीठ के बल बेड पर लेटा था, अनंतिका उसके सीने पर अपना सर टिकाए उसके ऊपर लेटी थी। दोनों के जिस्म पर मात्र एक चादर थी जो कि दोनों को कमर से नीचे ढकी हुई थी। 


“दैट्स ए ग्रेट आईडिया,” अनंतिका चहकते हुए बोली। वाकई उसे बाहर खुली हवा में सांस लेने की सख्त ज़रूरत महसूस हो रही थी।


शाम को अनंतिका और निखिल अपनी एस.यू.वी. में चकराता भ्रमण पर निकले। चकराता वाकई खूबसूरत जगह थी, छोटे-बड़े जंगली इलाकों, पहाड़ों और झीलों से घिरी हुई। वहां कई पुराने खँडहर थे, पुरानी इमारतें थीं तो अर्बन टाउनशिप भी थी। पूरी शाम घूमने के बाद निखिल और अनंतिका डिनर करने के लिए चकराता हाई-वे पर बने एक पुराने से दिखने वाले फ़ूड जॉइंट पर पहुंचे।


‘करीम’स कबाब्स’ नामक उस फ़ूड जॉइंट को एक वृद्ध दम्पति चला रहे थे जिनकी आयु लगभग 60-65 के फेरे में होगी। जगह छोटी और थोड़ी पुरानी सी दिखने वाली ज़रूर थी लेकिन थी बेहद आराम व सुकून दायक। इसके साथ ही कबाब की इतनी वराइयटी और ऐसा लज़ीज़ स्वाद निखिल और अनंतिका ने अपने पूरे जीवन में नहीं चखा था। फ़ूड जॉइंट में कोई वेटर नहीं था, वृद्ध दम्पति स्वयं ही कुक करने और सर्व करने का काम कर रहे थे। उस छोटे से फ़ूड जॉइंट में एक हिस्से की दिवार पर बुक शेल्फ लगे हुए थे जिनपर इंग्लिश, हिंदी लिटरेचर, मैगज़ीन और बच्चों के लिए कॉमिक बुक्स करीने से सजी हुई थीं। वहां आने वाले व्यंजनों के साथ साहित्य का लुत्फ़ भी उठा सकते थे। एक दिवार पर लाइन से कई फ्रेम्स में ब्लैक एंड वाइट तस्वीरें लगी हुई थीं जो कि देखने में वृद्ध दम्पति के युवावस्था की लग रही थीं। 


“बहुत ही सुन्दर तस्वीरें हैं,” अनंतिका करीब से तस्वीरों को देखते हुए बोली।


“यूसुफ़ बहुत हैण्डसम लगते थे ना तब। मैंने जब पहली बार इन्हें देखा था तब ये मुझे क्लिन्ट ईस्टवुड जैसे नजर आए थे, डैशिंग, फुल ऑफ़ चार्म,” वृद्धा अनंतिका के पास आते हुए बोलीं, उनके हाथ में एक सर्विंग ट्रे थी जिसमें रखी ग्लास प्लेट पर दुम्बे के कबाब सजाए हुए थे जिन पर जिंजर जूलिंस के साथ बारीक कटी प्याज़ और धनिया पत्ती गार्निश किए हुए थे, साथ में दही और पुदीने की चटनी थी। 


अनंतिका ने मुस्कुराते हुए वृद्धा के हाथ से सर्विंग ट्रे ले ली।


“फातिमा भी अपनी जवानी के दिनों में बिलकुल जर्मन एक्ट्रेस कैरिन डॉर जैसी नज़र आती थीं। तभी तो इन्हें देखते ही दिल दे बैठा था मैं। उस ज़माने में लव मैरिज आज जितनी आसान क़तई ना थी। इनसे ज्यादा तो इनके अब्बा को निकाह के लिए मनाने में वक्त लग गया,” ओपन किचेन से वृद्ध यूसुफ़ तवे पर गलौटी कबाब पलटते हुए बोले।


अनंतिका और निखिल मुस्कुराए बिना ना रह पाए। निखिल ने अनंतिका के हाथ में थमी ट्रे से कबाब का पीस उठाया और खाने लगा।


“मम्म…इतने लज़ीज़ कबाब मैंने आजतक नहीं खाए,” निखिल ने कबाब चट करते हुए अपना हाथ दूसरे कबाब की ओर बढ़ाया, अनंतिका ने पूरी ट्रे ही उसे थमा दी। 


निखिल उसे देखकर बेशर्मी से मुस्कुराया और ट्रे लेकर अपनी टेबल पर जा बैठा। कुछ ही पलों में निखिल खाने में व्यस्त था, अनंतिका दिवार पर लगी बाकी फोटोग्राफ्स देख रही थी। आगे फोटोग्राफ्स रंगीन हो गई थीं जिनमें दम्पति के साथ एक छोटा बच्चा भी नजर आ रहा था।


“करीम, हमारा इकलौता बेटा,” फातिमा फोटो को देखकर मुस्कुराते हुए बोलीं।


अनंतिका ने फातिमा की आवाज़ में आई थर्राहट में छुपे अपार स्नेह के साथ असीम वेदना को स्पष्ट महसूस किया। आगे की फोटोग्राफ्स करीम के बचपन से युवावस्था तक की थीं जिन में करीम अंश की उम्र के आस-पास नजर आ रहा था। उसके आगे की कोई फोटोग्राफ्स वहां नहीं थी। अनंतिका ने फातिमा की ओर देखा, फातिमा की आँखें भर गईं थीं।


“एकदम अपने अब्बा पे गया था करीम। डैशिंग, हैंडसम एंड ए फाइन जेंटलमैन,” वृद्ध फातिमा की आवाज़ में दर्द के साथ गर्व के भाव भी झलक रहे थे।


“आपका बेटा…”


“दो साल पहले एक हादसे में करीम हम दोनो को अकेला छोड़ कर चला गया,” फातिमा करीम की युवावस्था की एक फोटो पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोलीं।


“आइ एम सॉरी,” अनंतिका उनके कंधे पर हाथ रखते हुए बोली।


“ऊपर वाले के आगे किसी कि नहीं चलती बेटा, जवान लड़के का जनाजा बाप के कंधों पर दुनिया का सबसे भारी बोझ होता है…बट लाइफ मूव्स ऑन। जिंदगी चलती रहती है, वो जाने वाले के लिए नहीं रूकती,” ओपन किचेन से बहार आते यूसुफ़ ने कहा। उनके हाथ में गलौटी कबाब की ट्रे थी, अनंतिका ने आगे बढ़कर ट्रे उनसे ले ली और निखिल के सामने ही टेबल पर रख दी।


“करीम’स कबाब्स के रूप में हम अपने बच्चे की यादों को जिंदा रखे हुए हैं, जिन्हें यहाँ आने वाले लोगों के साथ बांटते हैं,” यूसुफ़ और फातिमा भी अनंतिका और निखिल के पास की टेबल पर बैठ गए। उस घड़ी फ़ूड जॉइंट में दूसरा कोई कस्टमर नहीं था, काफी देर तक उन चारों में बात-चीत का सिलसिला चलता रहा।


“आप दोनों से मिलकर बहुत ज्यादा अच्छा लगा। इस उम्र में भी आप दोनो प्यार और जिंदा दिली की जीती-जागती मिसाल हैं,” अनंतिका मुस्कुराते हुए बोली।


“आप लोग भी बहुत प्यारे बच्चे हैं। अच्छा लगता है जब कोई आप लोगों सा बाहर से आता है और कुछ पल यूं ही बांटता है,” फातिमा के चेहरे पर भी सहज मुस्कान उभरी।


“वैसे आप दोनों यहाँ चकराता में रह कहाँ रहे हैं?”  यूसुफ़ ने निखिल से पूछा।


“प्रेरणा दीवान की कॉटिज में। मैं यहाँ पी.डी. कॉर्प्स के एकाउंट्स हैंडल करने के सिलसिले में आया हूँ,”


“दीवान कॉटिज,” वृद्ध दम्पति के चेहरे पर एकाएक कई भाव आए और गए। 

अनंतिका ने महसूस किया कि वृद्ध दम्पति दीवान कॉटिज का नाम सुनते ही कुछ तनाव में आ गए थे। फातिमा कुछ बोलना ही चाह रही थीं लेकिन यूसुफ़ ने जैसे उन्हें आँखों के इशारे से ही बोलने से मना कर दिया। 


“क्या बात है? आप लोग दीवान कॉटिज के नाम से इस तरह चौंक क्यों गए?” अनंतिका से पूछे बिना रहा नहीं गया।


“क…कुछ नहीं बेटा। बस उस पुराने हादसे की याद आ गई थी…” फातिमा कुछ बोल ही रहीं थीं जब यूसुफ़ ने उनकी बात बीच में ही काट दी। 


“फातिमा, वो सब पुरानी बातें हैं। उन्हें बेवजह दोहरा कर इन बच्चों को क्यों परेशान करना,”

अनंतिका ने महसूस किया कि यूसुफ़ ने यद्यपि यह बात कठोरता पूर्वक नहीं कही थी लेकिन उनकी आवाज़ आदेशात्मक थी, फातिमा चुप हो गईं।


“कैसा हादसा?” इस बार सवाल निखिल ने पूछा। 

निखिल अपने कबाब खत्म कर चुका था और उसकी भंगिमाओं से स्पष्ट था कि वो अनंतिका, यूसुफ़ व फातिमा की बातें भी सुन चुका था। 


“ये बात काफी साल पहले की है जब रोमेश दीवान जिंदा थे। एक परिवार को ये कॉटिज किराए पर रहने के लिए दिया गया था। उस परिवार के साथ एक…एक हादसा हो गया था,” फातिमा ने एक नज़र यूसुफ़ पर डाली, इससे पहले कि यूसुफ़ कुछ कहते फातिमा ने बोलना शुरू कर दिया।


“कैसा हादसा?”


“वहां रहने वाले पूरे परिवार ने आत्महत्या कर ली थी। हस्बैंड और वाइफ की लाश दूसरी मंजिल पर बरामद हुई थी जबकि उनकी आठ साल की बच्ची की लाश तीसरी मंजिल पर पाई गई थी,”


फातिमा एक ही सांस में बोल गईं।


अनंतिका के चेहरे का रंग पीला पड़ गया था। वो पागलों की तरह आँखें फाड़े हुए फातिमा को देख रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या बोले। क्या उसे पिछली रात और उस छोटी बच्ची के बारे में बताना चाहिए जिसे उसने कॉटिज में दूसरी मंजिल की ओर जाते देखा था? लेकिन निखिल को तो उसकी इस बात पर ही यकीन नहीं हो रहा था कि उसने पार्टी के दौरान पहली मंजिल की खिड़की पर किसी को देखा था। नहीं, निखिल उसकी बात पर किसी हाल में यकीन नहीं करने वाला था उल्टा उन दोनों में फिर से पिछली रात की तरह बहस शुरू हो जाती। अनंतिका ने निखिल की ओर देखा, निखिल भी कॉटिज के बारे में हुए ताज़ा रहस्योद्घाटन से थोडा विचलित नजर आ रहा था।


“लेकिन उस परिवार ने सुसाइड क्यों किया?” निखिल ने गंभीर भाव से सवाल किया।


“कोई नहीं जानता, इस बात को हो भी तो काफी साल गए हैं। फातिमा ने बेकार ही आप लोगों को इस बदमज़ा किस्से के बारे में बता दिया, मैं इसीलिए इसे मना कर रहा था,” यूसुफ़ ने बात ख़ारिज करने के अन्दाज़ में कहा।


इसके बाद वो लोग कुछ देर तक इधर-उधर की बातें करते रहे, अनंतिका ने ध्यान दिया कि कॉटिज के बारे में कोई भी बात करने से अब वृद्ध दम्पति बच रहा था। 

जब अनंतिका और निखिल ‘करीम’स कबाब्स’ से निकले तब रात के लगभग आठ बज रहे थे। 


पूरे रास्ते उनमें कोई विशेष बातचीत नहीं हुई। अनंतिका के दिमाग में वृद्ध दम्पति की बातें घूम रही थीं। आठ साल की बच्ची! उसने भी लगभग उसी उम्र की बच्ची देखी थी। लेकिन दीवान कॉटिज के बारे में अंश और उसकी माँ ने उन्हें कुछ भी क्यों ना बताया? अनंतिका ने मन ही मन निश्चय किया कि वो अगली बार मिलने पर अंश से इस विषय में अवश्य बात करेगी।


गाड़ी कॉटिज के बाहरी गेट पर आकर रुकी।


“निखिल, मुझे ठीक नहीं लग रहा…म…मैं इस कॉटिज में नहीं जाना चाहती,” अनंतिका गाड़ी में बैठे हुए ही बोली।


“डोंट बी सिली अनी, तुमने सुना ना मिस्टर यूसुफ़ ने क्या कहा था। वो इंसिडेंट कई सालों पहले हुआ था। अब उसके बारे में क्या डरना,”


“मुझे इस जगह से अच्छी वाइब्स नहीं आती निखिल,”


“तुम यहाँ आने पर कितनी एक्साइटेड थी अनी, तुम्हें यही तो चाहिए था, एक ऐसी जगह जहां तुम शान्ति से कन्सेंट्रेट करके अपनी पेंटिंग्स पर काम कर सको। अब तुम्हें ये ऑपरट्यूनिटी मिली है तो स्टुपिड कंट्रीसाइड रुमर्स और स्पूक स्टोरीज के पीछे उसे क्यों गंवाना चाहती हो” निखिल उसे समझाते हुए बोला।


अनंतिका चुप हो गई, वो जानती थी कि निखिल से बहस करने का कोई फायदा नहीं था। उसकी नज़रें अनायास ही बगल वाली कॉटिज के फर्स्ट फ्लोर की खिड़की पर चली गई। अंश वहां खड़ा हुआ था और उनकी गाड़ी की दिशा में ही देख रहा था। अंश शायद वो इकलौती वजह था जिसके लिए अनंतिका को उस मनहूस कॉटिज में रहना मंज़ूर था।


सच यही था कि जितनी देर वो निखिल के साथ बाहर थी अंश की यादों से दूर थी, वहां वापस आते ही जैसे अंश की कशिश उसे खींच रही थी। उसने निखिल की ओर देखा, अपराध बोध एक बार फिर से उसपर हावी होने लगा। 


अनंतिका ने अपना सर झटका, जैसे वो अंश के विचार को ही खुद से दूर कर देना चाहती हो। अनंतिका ने मन ही मन फैसला किया कि वो अंश के प्रति बेलगाम हो रहे अपने आकर्षण को अंकुश लगाएगी। निखिल ने आहिस्ता से अनंतिका के पैर पर हाथ रखा।


“अनी...अनी, आर यू ओके?”


अनंतिका ने उसकी ओर देखा, निखिल को उसकी आँखों में गुलाबीपन झलकता नज़र आया। इससे पहले कि निखिल कुछ समझ पाता अनंतिका उसके ऊपर झपट पड़ी, अनंतिका के होंठ निखिल के होंठों से उलझ गए। निखिल ने उसे अपनी बाहों में भर लिया, अनंतिका ने अपने दांतों के बीच निखिल का निचला होंठ भींच लिया। निखिल के मुँह से हल्की सी सिसकारी निकल गई। अनंतिका निखिल का चेहरा बेतहाशा चूम रही थी।


“होल्ड योर हॉर्सेज स्वीटहार्ट। गाड़ी अन्दर तो पार्क कर लेने दो,” निखिल अपना चेहरा अनंतिका से अलग करते हुए बोला।


“नो! आइ वान्ना डू इट राइट हियर, राइट नाओ!!” अनंतिका ने दृढ़ भाव से कहा, इससे पहले कि निखिल उसका प्रतिवाद कर पाता उसने अपना टॉप उतार कर पीछे की सीट पर फेंक दिया। निखिल ने मुस्कुराते हुए सीट का लैच खींचा, सीट पीछे सरक गई। निखिल और अनंतिका की दहकती साँसों की तपिश से एस.यू.वी. के बंद शीशे वाष्पित होने लगे। निखिल की आँखें बंद थीं, वो अनंतिका के जिस्म को अपने जिस्म पर फिसलते महसूस कर रहा था। अनंतिका ने एक चोर दृष्टि बगल वाली कॉटिज के फर्स्ट फ्लोर की खिड़की पर डाली, अंश अब भी वहीं खड़ा था और एकटक उसे ही देख रहा था।


“लेट्स गो इनसाइड,” अनंतिका निखिल के कान में फुसफुसाई। 


“अब क्या हो गया? अभी तो तुम्हें यहीं करना था?” निखिल अचरज से बोला।


“स्पेस कम है मूव्स के लिए, अकाउंटेंट साहब,” अनंतिका खिलखिलाते हुए शरारती भाव से बोली।


निखिल ने जैसे-तैसे गाड़ी अंदर पार्क की। अनंतिका और निखिल किसी हनीमून पर आए नवविवाहित जोड़े की तरह एक-दूसरे से उलझते-जूझते किसी तरह कॉटिज के अंदर अपने बेडरूम तक पहुंचे। उस पूरी रात उन दोनों ने एक दूसरे को सोने ना दिया। भोर होने तक पूरे कॉटिज में दोनों की सिसकारियाँ गूंजती रही। जब अंततः दोनों एक-दूसरे की बाहों में थक कर ढेर हुए तब उन्हें पता भी ना चली कि किस क्षण वो दोनों गहरी नींद के आगोश में डूब गए।


अनंतिका की आँखें खुलीं। चारों तरफ गहन अन्धकार था। उसने उठने की कोशिश की पर उसे ऐसा लगा जैसे उसके पूरे शरीर को लकवा मार गया हो। उसके जिस्म ने हिलने से इनकार कर दिया। अनंतिका की सासें उखड़ने लगीं, वो चिल्ला कर निखिल को बुलाना चाहती थी लेकिन उसके गले से भी कोई आवाज़ ना निकली। 


अनंतिका ने गर्दन और चेहरा अगल-बगल घुमाने की कोशिश की लेकिन कर ना पाई। पीठ के बल सीधी लेटी अनंतिका ने अपनी आँखों की पुतलियों को बगल में घुमाया। उसके बगल में बेड खाली था, निखिल वहां नहीं था। निखिल को वहां ना पा कर अनंतिका ने अपनी नज़रें चारों तरफ घुमाई। उसकी नज़रों की परिधि कमरे की खिड़की के पास खड़े एक साये पर आकर रुक गई। वो साया अँधेरे में था, अनंतिका उसका चेहरा नहीं देख पा रही थी, उसे सिर्फ उसकी चमकती हुई आँखें नज़र आ रही थीं जो उसे ही घूर रही थीं। अनंतिका का चेहरा, उसका जिस्म पसीने से नहा उठा। उसकी आँखें भय से पथराने लगी, होंठ कांपने लगे परन्तु वो खुद को एक इंच भी हिला पाने में असमर्थ थी। साया धीरे-धीरे बेड पर लेटी अनंतिका की ओर बढ़ रहा था यदि अनंतिका के बस में होता तो वो गला फाड़ कर चिल्लाती, लेकिन अभी वो बेबसी से उस साये को देखने के अलावा और कुछ भी नहीं कर सकती थी। साया बेड के किनारे उसके पैरों के पास आकर रुक गया, अनंतिका उसका चेहरा अब देख सकती थी। 


वो अंश था। अंश की आँखें वैसी ही जल रही थीं जैसी उसने पहली रात खिड़की पर सामने की कॉटिज में देखी थी। अंश को वहां देखकर अनंतिका अवाक थी। अनंतिका के नग्न जिस्म पर पड़े इकलौते आवरण, उस चादर को अंश धीरे-धीरे कर के उसके जिस्म से अलग कर रहा था। अनंतिका की आँखों के पोरों से आंसू टपक गए। वो चीखना चाहती थी, खुद को छुपाना चाहती थी लेकिन बिलकुल बेबस थी। अंश बेहद आहिस्ता-आहिस्ता उसके जिस्म को चूम रहा था, अपने दांतों से चुभलाते हुए उसके जिस्म पर हिकीज़ बनाता हुआ अंश नीचे की तरफ़ बढ़ा। अंश ने अपना पथराया और तमतमाया हुआ चेहरा उठा कर अनंतिका को देखा, इसके बाद उसका चेहरा अनंतिका की दोनों जाँघों के बीच कहीं खो गया। अनंतिका ने अपनी आँखें बंद कर लीं, दूर कहीं से आती नर्सरी राइम की आवाज़ अनंतिका के कानों में पड़ रही थी।


“रिंग अराउंड द रोज़ीस, 

पॉकेट फुल ऑफ़ पोजिज़

हशा-बुशा, वी ऑल फॉल डाउन”

“रिंग अराउंड द रोज़ीस, 

पॉकेट फुल ऑफ़ पोजिज़

हशा-बुशा, वी ऑल फॉल डाउन”


“स्टॉप इट अंश! स्टॉप फ़ॉर गॉड’स सेक!”

अनंतिका की आँखें बंद थीं, उसकी आँखों के पोरों से गालों पर ढलकी आँसू की बूँदों को अंश ने अपने होंठों में जज़्ब कर लिया। 


“अंशssss…”

अनंतिका के लबों से निकलते अल्फ़ाज़ सिसकारी में बदल गए। 


उसके होंठ और अंश के होंठों की गिरफ़्त में थे। अनंतिका के निचले होंठ पर अंश के दांतों की चुभन उसके जिस्म में तीव्र ज्वार भाटा उत्पन्न कर रही थी। 


अनंतिका का बदन बिस्तर पर ऐंठ रहा था, उसके मुँह से अब भी सिसकारी और कराहें निकल रही थीं।अंश बेहद आहिस्ता-आहिस्ता अनंतिका के ऐंठते जिस्म को चूम रहा था, अपने दांतों से चुभलाते हुए उसके जिस्म पर हिकीज़ बनाता हुआ अंश नीचे की तरफ़ बढ़ा। अंश ने अपना पथराया और तमतमाया हुआ चेहरा उठा कर अनंतिका को देखा, अनंतिका की आँखें अब भी बंद थीं। चुम्बनों को जारी रखते हुए अंश का चेहरा अनंतिका की दोनों जाँघों के बीच कहीं खो गया। 


“अहहssss…” अनंतिका का जिस्म ऐंठा, उसकी कमर कमान की भाँति तन गई। 


“अनंतिका!।।अनंतिका??” 

अनंतिका के जिस्म को कोई ज़ोर-ज़ोर से झँझोड़ रहा था।


हाँफते हुए अनंतिका ने अपनी आँखें खोलीं, उसके फेफड़े फटने पर उतारू थे। 


ऐसा लग रहा था जैसे मुद्दतों से वो सांस लेने की कोशिश कर रही हो लेकिन ना ही उसे सांस आ रही है ना ही उसकी जान निकल रही है। जैसे नर्क की ये सज़ा उसे जन्मों तक भुगतने के लिए मुक़र्रर की गई हो। 


“अनी!! क्या हुआ है तुम्हें?”

निखिल अनंतिका की पसीने से ठंडी पड़ी पीठ पर अपनी हथेली रगड़ कर उसे तपिश देने की कोशिश कर रहा था, अनंतिका का पूरा जिस्म सूखे पत्ते की तरह काँप रहा था। उसकी सासें उखड़ी हुई थीं, मुँह खोल कर वो किसी दमे के मरीज़ की तरह गहरी सासें लेने की कोशिश कर रही थी। दिल यूं धड़क रहा था जैसे किसी भी पल सीने का पिंजर फाड़ कर बाहर निकल जाएगा, अनंतिका अब भी समझने की कोशिश कर रही थी कि उसके साथ हो क्या रहा है।


“स्लीप परैलिसस! तुम्हें स्लीप परैलिसस हो रहा था अनंतिका,” निखिल अनंतिका को पानी का ग्लास देते हुए बोला।

उसने बेडशीट उठा कर अनंतिका के नग्न जिस्म पर लपेटी और उसे अपने आग़ोश में भर लिया।


“हमें किसी साइकोलॉजिस्ट से कन्सल्ट करना चाहिए..म…मुझे लगता है हमें वापस दिल्ली लौट चलना चाहिए अनी,” निखिल कुछ सोचते हुए बोला। उसकी आवाज़ में चिंता साफ़ झलक रही थी।


अनंतिका ने इनकार में सर हिलाया।

“नो निखिल! आय एम फ़ाइन नाउ।”


अनंतिका अब काफी हद तक संभल चुकी थी, खुद के ही ख़्यालों और सवालों में उलझी हुई अनंतिका बोली। उसे यक़ीन नहीं आ रहा था कि एक बार फिर से उसने अपने जिस्म के साथ होते बर्ताव को सिर्फ़ स्वप्न में महसूस किया था। अंश की जलती हुई निगाहें, उसका स्पर्श, उसके चुम्बन, इस बार भी उसने जो कुछ भी अपने साथ घटित होता महसूस किया वो सब कुछ एक सपना मात्र था?


पिछली बार अनंतिका को यही सोच कर थोड़ी राहत मिली थी कि अंश का वो भयावह रूप उसके सोच, उसके सपनों की ही उपज था लेकिन इस बार उसका जिस्म उसे गवाही दे रहा था कि ये सपना नहीं हो सकता और अगर ये वाक़ई सपना था तो इसका मतलब साफ़ था कि उसके अंतर्मन में अंश के लिए सप्रेस्ड सेक्शूअल डिज़ायर थी। 


पानी का एक घूँट भर कर अनंतिका ने अपनी आँखें बंद की, आँखें बंद करते ही अंश की गर्म साँसों की अनुभूति उसे अपनी जाँघों पर हुई…अनंतिका के शरीर ने एक बार फिर से झुरझुरी ली।


“तुम ठीक नहीं हो अनंतिका। मुझे लगा था यहाँ आना तुम्हारे और तुम्हारे काम के लिए अच्छा होगा लेकिन अब मुझे लग रहा है कि इस जगह का तुम पर काफ़ी नेगेटिव इम्पैक्ट पड़ रहा है,”


“नहीं, अब मैं ठीक हूँ निखिल।”


“तुम रात खुद मुझसे कह रही थी कि तुम्हें ये जगह सही नहीं लगती। ज़रा याद कर के बताओ कि ये स्लीप परैलिसस कब से एक्स्पिरीयन्स कर रही हो?”


“जब से यहाँ चकराता आए हैं तब से,”


“क्या इससे पहले कभी नहीं हुआ? मैंने दिल्ली में इतने सालों में तुम्हें एक बार भी ऐसे अटैक आते नहीं देखे!”


“इससे पहले?” निखिल के प्रश्न ने अनंतिका के ज़हन पर जैसे एक तीव्र चोट की। वो कुछ याद करने की कोशिश करने लगी।


“हाँ…शायद पहले भी हुआ है…बहुत पहले, बचपन में। ठीक से याद नहीं मुझे। मुझे मेरे बचपन के बारे में कुछ याद नहीं,”

अनंतिका जैसे खुद में ही बड़बड़ाते हुए बोली। उसने दोनों हाथों से अपना सर पकड़ लिया, उसके सर में तेज दर्द की लहर उठ रही थी। अनंतिका को अपना शरीर दोबारा काँपता महसूस हुआ। निखिल अब भी उसे अपनी बाहों में भरे हुए था।


“इट्स ऑल राइट! वी’ल्ल टॉक अबाउट इट लेटर,”

पिछली रात के उनके वाइल्ड मेक-आउट सेशन के बाद जब अनंतिका सोई उसके बाद उसे समय और यथार्थ का ध्यान ही नहीं रहा। पिछले कुछ दिनों में उसके साथ ये दूसरी बार हुआ था जब अपने साथ सपने में घटित घटना उसे वास्तविक लग रही हो। अनंतिका को यूँ महसूस हुआ कि उसके दिल, दिमाग़ और जिस्म, तीनों के बीच जंग छिड़ी हुई हो।


निखिल ऑफिस जाने को रेडी हो चुका था। अनंतिका ने घड़ी पर नज़र डाली, सुबह के 10 बज चुके थे। उसने उठने की कोशिश की।


“उठो मत! यू नीड रेस्ट, मैं प्रेरणा को कॉल कर देता हूँ कि आज मैं ऑफिस नहीं आऊंगा।”


“नहीं, इसकी ज़रूरत नहीं है निखिल। मैंने कहा ना मैं ठीक हूँ…तुम ऑफ़िस जाओ। कल भी मेरे चक्कर में तुम बीच ऑफ़िस से ही वापस आ गए थे।”

निखिल दो पल अनंतिका को देखता रहा लेकिन उसने अनंतिका से बहस नहीं की, उसे ख्याल रखने की और फ़ोन पास में रखने की हिदायत दे कर वो ऑफिस के लिए निकल गया।


“ब्रेकफ़ास्ट में टोस्ट और स्क्रैम्बल्ड एग्ज़ माइक्रोवेव में रख दिए हैं, कॉफ़ी भी बनी रखी है। गर्म कर के खा लेना।”


अपनी गाड़ी कॉटिज से निकालते हुए निखिल ने अनंतिका को वॉइस मैसेज भेजा। एस.यू.वी. रोड की तरफ घुमाते हुए उसकी नज़रें बगल की कॉटिज की और अनायास ही उठ गईं। अंश उसे अपने रूम की खिड़की पर खड़ा नज़र आया। वो निखिल के बेडरूम की खिड़की की और एकटक देख रहा था।


निखिल की आँखों में जैसे ग़ुस्से और घृणा की ज्वाला धधक उठी। दांत जबड़ों पर भिंच गए, उसके हाथ स्टेयरिंग व्हील पर यूँ कस गए जैसे वो अंश की गर्दन हो। निखिल के कानों में अनंतिका की उत्तेजना से भरी हुई मादक सिसकारियाँ जैसे फिर से गूंज उठीं।


‘अंशssss…’


निखिल की जलती आँखों से सामने बिस्तर पर अनंतिका का अंश का नाम पुकारते हुए मचलता हुआ नग्न जिस्म घूम गया। आँखें तब तक जलती रहीं जब तक पलकें भीग ना गयीं। अंश की नज़रें अनंतिका के बेडरूम से होती हुई बाहर रुकी हुई निखिल की गाड़ी की तरफ़ गयीं। निखिल ने पूरे रफ़्तार से गाड़ी आगे बढ़ा दी।


बेडरूम विंडो के पर्दे की ओट से अनंतिका ने सामने खड़े अंश और गाड़ी बाहर निकालते समय ठिठक कर रुके निखिल को देखा। निखिल आज सुबह काफ़ी ऑफ़ साउंड कर रहा था। क्या वो सिर्फ़ अनंतिका के स्लीप परैलिसस को लेकर परेशान था या फिर बात कुछ और थी? कहीं उसने अनंतिका को उत्तेजना में अंश का नाम पुकारते तो नहीं सुन लिया था? अनंतिका भारी कदमों से चलते हुए वापस बेड पर आ गयी। 


वो जाने कितनी ही देर वैसे ही किसी मूर्ति की तरह जड़वत बैठी रही। उसका शरीर बेशक किसी मूर्तिके समान निष्क्रीय था लेकिन उसके दिमाग में विचारों की आंधी कौंध रही थी। अंश के यथार्थ रूप और उस रूप जो अनंतिका के अंतर्मन में था, से लेकर कॉटिज की बंद मंजिलों और वहां उस बच्ची के ख्याल उसके दिलो दिमाग को चैन नहीं लेने दे रहे थे। 


उसपर से इन मनहूस विचारों में उसके बचपन के वो भयानक अध्याय भी अब जुड़ रहा था जिसे अनंतिका याद भी नहीं करना चाहती थी। स्लीप परैलिसस उसके जीवन में क्या एक बार फिर किसी आने वाले भयावह मोड़ की आहट लेकर आया था? अनंतिका ने खुद को इन विचारों से बाहर निकालना ही बेहतर समझा। बेडशीट को शाल की तरह अपने जिस्म से लपेटे हुए अनंतिका बेड से नीचे उतरी। उसने फिर पर्दे की ओट से बाहर झांका, उसे सामने की कॉटिज से उधर ही देखता अंश यथावत नज़र आया लेकिन अनंतिका ने कोई प्रतिक्रिया देने के बजाए उसे ऐसे इग्नोर कर दिया जैसे उसने अंश को देखा ही ना हो।


* * * 


ब्रेकफ़ास्ट करने की अनंतिका की ज़रा भी इच्छा नहीं थी। उसने जी भर कर शॉवर लिया और फिर तैयार होकर नीचे अपने पेंटिंग स्टूडियो में आ गयी। अनंतिका ने मन ही मन फ़ैसला किया था कि वो अंश से दूर ही रहेगी और बेकार की बातों में अपना समय और दिमाग़ ख़राब करने के बजाए अपनी पेंटिंग सिरीज़ पर फ़ोकस करेगी।


काफ़ी देर तक अनंतिका अपनी पेंटिंग सिरीज़ के रफ़ लेआउट स्केच करने की कोशिश करती रही लेकिन उसके थॉट और विज़न के अनुरूप एक भी कॉन्सेप्ट तैयार ना हो सका। बहुत जद्दोजहद के बाद भी उसके दिमाग में घुमड़ते विचार काग़ज़ पर निकलने से इनकार कर रहे थे। इसका एक कारण यह भी था कि अनंतिका के विचारों पर अंश बुरी तरह हावी था। 


क्योंकि वो डिलिबरेट्ली अंश को भुलाने और उसके बारे में सोचने से बचने की कोशिश कर रही थी, इस कोशिश में अंश का ख़्याल उसके दिमाग़ पर एक कॉन्स्टंट थॉट बन कर हावी था। अनंतिका ने झुंझला कर अपनी स्केचबुक एक ओर उछाल दी और आँखें बंद कर के अपने दिमाग़ में मची उथल-पुथल शांत करने की कोशिश करने लगी। 


आँखें बंद करते ही उसके सामने अँधेरे में अंश का अक्स उभरता। ग्रीक गॉडेस ऐफ्रोड़ाईटी के प्रेमी ऐडोनिस सा खूबसूरत, यौवन और पुरुषत्व से भरा हुआ उसका कसा बदन पसीने की चमकीली बूंदों से अलंकृत अनंतिका की परिकल्पना को चकाचौंध कर रहा था। प्रेम की देवी ऐफ्रोड़ाईटी की तरह वो अपने सर्वस्व को अंश के आगे बिछा देना चाहती थी…पर क्यों? उसकी स्वछंदता का क्या होगा? क्या वो अंश के साथ अपना भविष्य देख रही थी या फिर ये क्षुधा, ये तपस सिर्फ उसकी कामाग्नि की थी? वो निखिल के साथ खुश थी, निखिल उसके लिए हर तरह से परिपूर्ण था…बिस्तर में भी। फिर आखिर उसे अंश द्वारा स्पर्श किए जाने, चखे जाने, रौंदे जाने की दमित अभिलाषा क्यों थी? अनंतिका ने खिज कर अपनी आँखें खोल लीं। मस्तिष्क और मर्यादा पर बार-बार चोट करते इन उद्दंड प्रश्नों से डर के ही तो स्टूडियो में आई थी अब यहाँ भी वे पीछा नहीं छोड़ रहे थे। 


निखिल को ऑफ़िस गए हुए काफी समय बीत चुका था। अनंतिका ने ना तो सुबह से कुछ खाया था और ना ही खाने की इच्छुक थी। उसका जी चाह रहा था कि वापस ऊपर बेडरूम में जाकर सो जाए लेकिन उसके दुस्वप्न भी उसके उन विचारों जितने ही उद्दंड थे जिनसे वो भागना चाहती थी। अनंतिका ने निश्चय किया कि वो समय बर्बाद नहीं करेगी और काम करेगी। वो किचेन के पास ही निखिल के बनाए हुए बार में गई और अपने लिए नीट स्कॉच का एक लार्ज पेग तैयार किया। 


ड्रिंक करने के बाद अनंतिका खुद को थोड़ा बेहतर और ज्यादा कॉन्फ़िडेंट महसूस कर रही थी। उसने एक और लार्ज पेग तैयार किया जिसे लेकर वो स्टूडियो चली गई और दोबारा से स्केच करने पर कॉन्सेंट्रेट करने लगी। 


अनंतिका रेनेसाँ आर्टिस्ट लीयनॉर्डो द विंचि के आर्ट स्टाइल में न्यूड इंडियन मेल पेंटिंग सिरीज़ पर काम कर रही थी। उसने कुछ स्केचेस तैयार किए उनसे अनंतिका संतुष्ट नहीं थी। रियलिस्टिक स्टाइल में फ़िगर आर्ट बनाने के लिए हर आर्टिस्ट को एक लाइव मॉडल, एक म्यूज की ज़रूरत होती है। अनंतिका के लिए भी बिना किसी मॉडल के वो काम संभव ना था। 


यहाँ आने से पहले अनंतिका ने सोचा था कि वो निखिल को अपने लिए न्यूड पोज़ करने को कहेगी लेकिन दिक्कत यह थी कि जिस दैहिक सौन्दर्य को अनंतिका अपने कैन्वस पर उतारना चाहती थी वो निखिल के पास नहीं था। उसने ऑनलाइन इंडियन मेल मॉडल्स के न्यूड गूगल सर्च किए लेकिन उसे कुछ भी ऐसा नहीं मिला जो उसकी आवश्यकता के अनुरूप हो। उसने मेमरी ड्रॉइंग और इमैजिनेशन से कुछ स्केच बनाए, उसके हर स्केच में अंश की झलक साफ़ नज़र आ रही थी। 


अनंतिका स्केचेस में अंश के कसे हुए जिस्म को उकेरने में यूँ खो गयी कि उसे समय का अंदाज़ा ही ना लगा। उसके दिमाग़ में अंश के नग्न जिस्म के अक्स जिस तरह उभर रहे थे वो उन्हें हूबहू स्केचबुक में उकेरती चली जा रही थी। उसका ध्यान डोरबेल बजने से भंग हुआ। अनंतिका ने उठ कर दरवाज़ा खोला। चेहरे पर सहज मुस्कान लिए हुए सामने अंश खड़ा था। अंश को देख कर अनंतिका सकपका गयी। 


अंश ने मुस्कुरा कर अपने हाथ में थमी अपनी स्केचबुक और टूलबॉक्स लहराते हुए कहा।

“आर्टक्लास…रिमेम्बर?”


अनंतिका फिर से भूल गयी थी कि उसने अंश को आर्ट लैसंस देने का वादा किया था। पिछले आर्ट लैसन में सिचूएशन कुछ ऐसी हुई कि दोनों रंगों में सराबोर एक-दूसरे से लिपटे हुए थे। अनंतिका ने मन ही मन खुद को हिदायत दी कि वैसी परिस्थिति में उसे दोबारा नहीं पड़ना है। अनंतिका कोई बहाना बना कर अंश को क्लास के लिए मना कर देना चाहती थी। उसने मन में अंश को इनकार करने की ठान कर मुँह खोला।


“श्योर! कम ऑन इन,” 

अपने मुँह से स्वतः निकले इस निमंत्रण पर अनंतिका खुद हैरान थी। 


उसका इरादा अंश को चलता करने का था लेकिन प्रत्यक्षतः उसकी ज़ुबान उसके दिमाग़ के बजाए उसके दिल के विचार मानने और बोलने पर आमादा थी। अनंतिका ने मुस्कुराने की भरसक कोशिश करते हुए असहाय भाव से अपना सर हिलाया और दरवाज़ा खोल कर एक तरफ़ हो गयी। मुस्कुराते हुए अंश अंदर आया।


“आपकी पेंटिंग सिरीज़ कैसी जा रही है? एनी ब्रेक-थ्रू येट?”

अंश खुद ही उसके स्टूडियो की तरफ़ बढ़ गया। अनंतिका अपने चेहरे पर बिखर आए बाल संवारने की कोशिश करते हुए उसके पीछे-पीछे आयी।


“कुछ ख़ास नहीं। मुझे एक लाइव मॉडल…” अनंतिका बोलते-बोलते कुछ सोच कर रुक गयी और फिर उसने बात बदलते हुए कहा, “नेवरमाइंड! कोशिश कर रही हूँ…आज नहीं तो कल शुरू हो ही जाएगी। तुम बताओ, आजकल क्या पेंट कर रहे हो?”


“क…कुछ भी नहीं। अपनी फ़िगरेटिव ड्रॉइंग और अनैटमी स्टडी सुधारने की कोशिश कर रहा हूँ बस। वैसे भी आज कल टाइम नहीं मिलता,”


“हाँ तुम्हारा ज़्यादातर टाइम तो हमारे कॉटिज की बेडरूम विंडो की तरफ़ घूरने में बीत रहा है,”

अनंतिका और अंश दोनों एक साथ ही उस बात पर सकपकाए। अंश संभलते हुए बोला।


“म…मैंने बताया था आपको कि मुझे स्लीप वॉकिंग सिंड्रोम है।”


“रात के साथ-साथ दिन में भी स्लीप वॉक करते हो? आज सुबह भी तुम अपनी बेडरूम विंडो पर खड़े हमारे बेडरूम में देख रहे थे,”


“मैं आपके बेडरूम में कैसे देख सकता हूँ, पर्दे लगे हुए थे अंदर कुछ नज़र नहीं आ रहा था,”


“आय’ल्ल टेक दैट ऐज़ अड्मिटेन्स,” अनंतिका ने सार्कैस्टिक्ली कहा। 


दोनों स्टूडियो में पहुँच चुके थे। अनंतिका को एहसास हुआ कि उसने स्कॉच कुछ ज़्यादा ही पी ली है, इसीलिए वो इतनी बेबाक़ी से अंश से सवाल कर रही है। स्टूडियो में एक स्टूल पर अब भी अनंतिका का स्कॉच का आधा ख़ाली ग्लास रखा था। उसने वहाँ पहुँचते ही वो आधा ख़ाली ग्लास पूरा ख़ाली करते हुए बोली।


“लेट’स सी, वॉट यू हैव बिन डूइंग,” अनंतिका अपना हाथ बढ़ाते हुए बोली। 

अंश ने झिझकते हुए अपनी स्केचबुक उसे थमा दी।


अनंतिका इत्मिनान से एक-एक पन्ना पलटने लगी। अंश ने अपने रूम विंडो के व्यू से उसकी कॉटिज की कई आर्किटेक्चरल स्केच बनायी थी। हर पेज पलटने के साथ ऐसे लग रहा था जैसे अगले पेज की ड्रॉइंग सिक्वेंश्यल आर्ट फ़ॉर्म में बनायी हुई हो, जैसी फ़्लिप बुक्स में बनायी जाती हैं। हर पेज के साथ कैमरा ज़ूम हो कर अनंतिका के बेडरूम फ़्रेंच विंडो पर फ़ोकस हो रहा था।


स्केचबुक के अगले पेज पर बेडरूम विंडो कर्टेन हटा कर वहाँ चादर ओढ़े खड़ी अनंतिका नज़र आ रही थी। अनंतिका ने अंश की तरफ़ देखा। अंश ईज़ल पर रखे बोर्ड पर पिन किए वो स्केचेस देख रहा था जो कुछ देर पहले अनंतिका बना रही थी। अंश के न्यूड स्केचेस। डोरबेल बजने पर जल्दबाज़ी और स्कॉच के नशे में अनंतिका अपना ड्रॉइंग बोर्ड कवर करना भूल गयी थी। अंश ने मुस्कुराते हुए बोर्ड कर पिन किए एक-एक स्केच को बारीकी से देखा फिर अनंतिका की तरफ़ नज़रें घुमायीं। अनंतिका को लगा कि उसके पैरों के नीचे वुडन फ़्लोर प्लैंक्स पानी में बदल जाएँ और वो शर्म से उसी पानी में डूब मरे। कहाँ तो विंडो पर शीट ओढ़ कर खड़े अपना स्केच बनाने के लिए वो अंश को आड़े हाथों लेने वाली थी और कहाँ अंश अपने कम्प्लीट न्यूड्स, वो भी काफ़ी बोल्ड एंड आउटरेजियस पॉस्चर्स में बनाने के लिए अनंतिका को ही जजमेंटल लुक्स दे रहा था। 


“इमैजिनेटिव ड्रॉइंग वाक़ई बहुत शार्प है आपकी एंड ह्यूमन अनैटमी की स्टडी भी। आपने सिर्फ़ अपनी इमैजिनेशन से इतने सटीक स्केचेस बना लिए, बिल्कुल मेरे जैसे लगते हैं,”


अनंतिका जानती थी कि अंश ने ये लास्ट लाइन जान बूझकर उसका मज़ा लेने के लिए कही थी। वो मन ही मन झेंप कर रह गयी। एम्बैरसमेंट और स्कॉच की गर्मी से अनंतिका के कान लाल हो रहे थे। उसकी इस स्थिति से अंश भी अनभिज्ञ नहीं था। अंश के होंठों पर आयी मुस्कान और अधिक फैल गयी। वो स्केचेस में बनाए गए अपने प्राइवेट पार्ट्स की तरफ़ गौर से देखते हुए बोला।


“फ़ेस एंड बॉडी स्ट्रक्चर तो ठीक है लेकिन बाक़ी चीजों में कुछ कमी रह गयी है,”

अनंतिका को कोई जवाब नहीं सूझा। अंश ने उसके पास आकार, नशे और शर्म से गुलाबी हुई अनंतिका की आँखों में देखते हुए कहा।


“आय कैन पोज़ फ़ॉर यू इफ़ यू लाइक,”

एक पल को अनंतिका को अपने कानों पर यक़ीन नहीं हुआ, उसका दिल जैसे धड़कना ही भूल गया। वो बस अपलक अंश को घूर रही थी। अंश के चेहरे पर अब भी वही बच्चों वाली शरारती मुस्कुराहट थी। वो अपने कंधे उचकाते हुए बोला।


“आय डोंट माइंड पोज़िंग न्यूड फ़ॉर यू। आपको मॉडल मिल जाएगा और मुझे आपका ह्यूमन अनैटमी स्टडी करने का स्टाइल भी सीखने का मौक़ा मिलेगा,”


अनंतिका के दिमाग़ ने उसे झँझोड़ा। उसका नशे में बहकता दिमाग़ जैसे चीख कर उससे कह रहा था, “नहीं अनंतिका, मना कर दे इसे। ये सौदा पक्का महँगा पड़ेगा तुझे,” अनंतिका ने खुद में निर्णय किया कि वो अभी के अभी अंश को ना बोल देगी और उसे वहाँ आने से भी मना कर देगी, उसे किसी ऐसे चक्कर में नहीं पड़ना जो उसके और निखिल के रिश्ते में दरार का कारण बने।


“ऑलराइट। यू कैन पोज़ फ़ॉर मी, बट मेरा कहना मानना पड़ेगा। इट कैन बी रियली हार्ड टू बी माय म्यूज। आय एम वेरी डिमैंडिंग,” अनंतिका ने मुँह तो ना बोलने के लिए खोला था लेकिन जो उसके मुँह से निकला वो अंश से ज़्यादा उसे खुद को हैरान कर गया। उसे ये समझते देर ना लगी कि उसने अपनी पूरी ताक़त लगा कर खुद अपना पैर कुल्हाड़ी पर दे मारा है।


“दैट आय कैन टैल,”


“व्हॉट?”


“दैट यू कैन बी वेरी डिमैंडिंग,”


“अच्छा! हाउ डू यू नो?”


“आपके जितना कीन एंड ऐक्यूरट तो नहीं है, फिर भी इंसानों के बारे में मेरा ऑब्ज़र्वेशन भी काफ़ी स्ट्रॉंग है, दैट्स वाय,”

अनंतिका को एहसास हुआ कि अंश उसके काफ़ी क़रीब आ कर खड़ा है, उसकी गर्म साँसों की तपिश अनंतिका को अपने चेहरे पर महसूस हो रही थी। 


“डू इट,” अनंतिका अंश की आँखों में घूरते हुए बोली।


“व्हॉट?” इस बार अंश सकपकाया।


“टेक ऑफ़ योर क्लोथ्स एंड पोज़,”

अंश और अनंतिका दोनों बिना पलकें झपकाए और बिना एक-दूसरे से नज़रें हटाए, एक-दूसरे की आँखों में घूर रहे थे। दोनों ने जैसे बिना कुछ बोले ही एक दूसरे को ओपन चैलेंज दे दिया था। बिना अपनी पलकें झपकाए, अनंतिका की आँखों में देखते हुए अंश ने अपनी टी-शर्ट उतार कर एक ओर फेंक दी। अंश का कसा हुआ जिस्म अपने इतने क़रीब देख कर अनंतिका ने अपने बदन में सिहरन दौड़ती महसूस की। अंश के जिस्म और कलोन की मिली-जुली ख़ुशबू अनंतिका के पहले से ही नशे में डूबे दिमाग़ पर ऐसे ही असर कर रहा था जैसे वोदका के साथ जिन। दोनों में से किसी की नज़रें एक-दूसरे से नहीं हट रही थी। अंश ने अपनी जींस अनबटन की और अनंतिका की आँखों में देखते हुए जींस का ज़िपर नीचे किया। 


अनंतिका की जैसे साँसें थम गयीं। 


दोनों के चारों तरफ़ वातावरण में निस्तब्ध सन्नाटा था। 


इस सन्नाटे के बीच अब उनकी गर्म साँसों का शोर भी नहीं था, दोनों की साँसें थमी हुई थीं। अनंतिका की आँखें अंश की आँखों से नहीं हटीं, हालाँकि वो हटाना चाहती थी। नशे में बहकती अनंतिका की मदहोश निगाहें अंश के कसे हुए जिस्म पर बेबाक़ फिसलने के लिए बेसब्र हो रही थीं। अंश ने अपनी दोनों इंडेक्स फ़िंगर अपनी लो-वेस्ट स्किन फ़िट ब्लू डेनिम के बेल्ट लूप्स में फँसाई और किसी प्रोफ़ेशनल स्ट्रिप टीज़र की तरह बहुत धीरे-धीरे अपनी जींस नीचे करने लगा। 


ठीक उसे समय उन्हें एक तेज आवाज़ सुनाई दी। 


लकड़ी का कोई भारी पटरा गिरने जैसी आवाज़। 


अनंतिका और अंश दोनों यूँ चौंके जैसे वो एक-दूसरे के सम्मोहन से बंधे हुए थे और आवाज़ से अचानक उनका सम्मोहन टूट गया।


“व्हॉट वज़ दैट?” अनंतिका आवाज़ की दिशा में खिड़की की तरफ़ देखते हुए बोली।


“आय डोंट नो, मस्ट बी द कैट,” अंश ने अपनी जींस ऊपर चढ़ा कर ज़िप करते हुए कहा। 


“नो! दिस वज़ समथिंग…समवन मच बिगर देन ए कैट। बाहर कॉटिज कॉम्पाउंड में कोई है जो अंदर हमें देख रहा था,”


“मैं जा कर देखता हूँ,”


अनंतिका ने नशे में होने के बावजूद भी अंश के फ़ेश्यल एक्स्प्रेशन में आया परिवर्तन साफ़ नोटिस किया। एक पल पहले तक अंश के जिस चेहरे पर बच्चों जैसी शरारती मुस्कान थी वो अब पत्थर जैसा सख़्त और सर्द नज़र आ रहा था। अंश ने नीचे पड़ी अपनी टी-शर्ट उठायी और पहनते हुए बाहर की तरफ़ बढ़ा।


“वेट, मैं भी आती हूँ,”

अनंतिका और अंश दोनों कॉटिज से बाहर निकले। जिस खिड़की के बाहर उन्हें आवाज़ सुनाई दी थी वो कॉटिज की साइड विंडो थी जिसके बाहर लकड़ी के छोटे-बड़े साइज़ के ढेरों पटरे दिवार से टिका कर रखे हुए थे। धूप और बारिश में काफ़ी समय तक रखे रहने से उनमें से कई पटरे सड़ गए थे। उनमें से एक पटरा नीचे गिरा हुआ था। हाउस वॉर्मिंग पार्टी के लिए अंश ने कॉटिज के फ़्रंट लॉन की ट्रिमिंग तो कर दी थी लेकिन कॉटिज के दोनों साइड और बैक कॉम्पाउंड एरिया अब भी घने पेड़ों, झाड़ियों और लताओं से भरे छोटे-मोटे जंगल नज़र आ रहे थे। 


“आय गेस यू वर राइट। शायद वो बिल्ली ही थी,”

अनंतिका और अंश जब खिड़की के बाहर पहुँचे वहाँ कोई भी नहीं था। अंश खिड़की के बाहर रखे लकड़ी के पटरों को गौर से देख रहा था। 


“नहीं, आप सही थीं। यहाँ से अंदर झांकने वाली बिल्ली नहीं कोई इंसान था। इन लकड़ी के पटरों को देखिए। ये काफ़ी समय से यहाँ रखे हैं जिसकी वजह से इन पर धूल-मिट्टी की मोटी परत जमी हुई है। बाहर से खड़े होने पर क्योंकि खिड़की की हाइट सात फ़ीट ऊपर हो जाती है इसलिए हमारे पीपिंग टॉम को अंदर सही ढंग से पीप करने के लिए इन पटरों पर खड़े होकर अंदर झांकने की कोशिश की,” अंश ने दिवार से टिकाए हुए पटरों की तरफ़ इशारा करते हुए कहा। 


अनंतिका का ध्यान उन पटरों की तरफ़ गया।

“ये देखिए, पटरों पर जमी हुई धूल पर फ़ुटप्रिंट्स हैं। जैसे इन पर किसी ने खड़े होने की कोशिश की लेकिन उसका पैर फिसल गया जिससे एक पटरा नीचे गिरा। हमें उसी पटरे के गिरने की आवाज़ सुनाई दी थी लेकिन हमारे बाहर आने से पहले ही वो पीपिंग टॉम भाग गया। उसके पीछे जाने का कोई फ़ायदा नहीं। अब तक तो हवा में ग़ायब हो चुका होगा,”


“स्ट्रेंज। दैट्स रियली स्ट्रेंज। कौन हो सकता है?”


“पता नहीं। यहाँ चकराता में कभी चोरी नहीं होती। इट्स ए सेफ़ नेबरहुड। प्रॉबेब्ली इट वज़ जस्ट सम क्यूरीयस किड ट्राइंग टू गेट योर ग्लिम्प्स,”

अनंतिका अंश की बात से कन्विन्स नज़र नहीं आ रही थी। 


“नो, देयर इज़ समथिंग ऑड गोइंग ऑन हेयर। हम जिस रात यहाँ आए थे तब से ही अजीब-अजीब चीज़ें हो रही हैं,”

अनंतिका ने ध्यान दिया कि अंश की जॉ-लाइन बुरी तरह तनी हुई थी। उसके पूरे शरीर में एक अजीब सा कसाव, उसके मैनरिज़म में एक तनाव था, जैसे वो अपने अंदर उमड़ते आक्रोश को बहुत मुश्किल से कंट्रोल करने की कोशिश कर रहा था।


“कैसी चीज़ें? क्या हुआ था उस रात?”


“फ़ूड जॉइंट से जो डिलीवरी वाला आया था वो दरवाज़े पर ही खाना छोड़ कर भाग गया और भागते हुए पागलों की तरह बड़बड़ा रहा था,”


“क्या बड़बड़ा रहा था?”


“मुझे ठीक से याद नहीं, मेरे बाहर निकलते-निकलते वो दूर जा चुका था,”


“फिर भी, याद करने की कोशिश करिए,”


“वो निखिल से कुछ कह रहा था, ज़िंदा रहना चाहते हो तो चले जाओ यहाँ से काइंड ऑफ़ समथिंग,”


“दिखने में कैसा था वो डिलीवरी वाला?”


“पता नहीं, चेहरा तो मैंने नहीं देखा। बट ही वज़ अराउंड मिडिल एज, ऐव्रेज बिल्ट, दैट्स इट। फिर पार्टी वाली रात मुझे ऊपर के फ़्लोर पर कोई दिखायी दिया, रात को पूरे कॉटिज में अजीब-अजीब आवाज़ें आती हैं जैसे यहाँ लोग चल रहे हों। मुझे अ।।अजीब से सपने आते हैं…ज़…जो बिल्कुल सच्चे लगते हैं जैसे वो सब कुछ मेरे साथ सच में हो रहा हो…अ…और मेरी स्लीप परैलिसस वाली पुरानी बीमारी भी लौट आयी है,”


अनंतिका को एहसास हुआ कि बोलते-बोलते उसका गला रुंध गया है। अंश के फेशियल एक्स्प्रेशन चेंज हुए। उसने धीरे से अपना हाथ अनंतिका की दाहिनी बाँह पर रखते हुए कहा।


“दैट्स ऑलराइट। लेट्स गो इन्साइड,”


“येस, आय नीड अनादर ड्रिंक,”


अनंतिका को लेकर अंश कॉटिज के अंदर बढ़ गया। कॉटिज का दरवाज़ा बंद करने से पहले अंश ने एक बार चारों तरफ़ नज़र घुमाई। सामने अपने कॉटिज के फ़्रंट एरिया में व्हीलचेयर पर उसे मिसेज़ राजपूत बैठी नज़र आयीं। अंश की आँखें दो पल के लिए मिसेज़ राजपूत से मिलीं। दोनों के चेहरों पर पत्थर जैसे ठंडे लेकिन कठोर भाव थे। दोनों की चील जैसी पैनी नज़रें एक दूसरे पर गड़ी हुई थीं। अंश ने एक झटके में कॉटिज का दरवाज़ा बंद कर लिया।


* * * *


आमने-सामने बने दोनों कॉटिज के बीच से गुजरती पगडंडी सड़क का एक छोर आगे जंगल की तरफ़ जाता था और दूसरा टाउन तक जाने वाली मेन रोड से मिलता था। उस रास्ते पर कॉटिज से लगभग आठ सौ मीटर आगे एक पेड़ के नीचे निखिल की एस.यू.वी. खड़ी हुई थी। 


पेड़ से टिक कर खड़ा हुआ निखिल अपनी अब तक उखड़ी हुई साँसों को व्यवस्थित करने की कोशिश कर रहा था। उसकी उखड़ी हुई साँसों की वजह सिर्फ़ उसका तेज़ी से आठ सौ मीटर भागना ही नहीं था। 


कॉटिज में अनंतिका के ठीक सामने अपनी जीन्स अनबटन करते अंश का चेहरा अब भी निखिल की आँखों के सामने घूम रहा था। 


निखिल ने अपने कोट पॉकेट से सिगरेट केस निकाल कर एक सिगरेट होंठों से लगायी। ग़ुस्से से निखिल का पूरा शरीर काँप रहा था। उसने एक कश में ही लगभग आधा सिगरेट राख करते हुए धुआँ फेफड़ों में खींच लिया। वो धुआँ जैसे उसके जलते हुए कलेजे में जज़्ब हो कर रह गया, उसकी एक हल्की सी लकीर भी नथुनों से बाहर नहीं निकली बस अत्यधिक भावावेग को बांधने की कोशिश में आँखों के पोरों में ग़ुस्से की लाल लकीरों के साथ दर्द की नमी आ गयी। सिगरेट ख़त्म करने तक निखिल वहीं खड़ा कुछ सोचता रहा उसके बाद वो आनन-फ़ानन अपनी गाड़ी में सवार होकर टाउन की तरफ़ बढ़ गया।


निखिल निश्चिंत था कि वो बिल्कुल सही समय पर कॉटिज से बाहर निकल गया वरना अंश और अनंतिका उसे ज़रूर देख लेते, बस उसे थोड़ा शक इस बात का था कि शायद मिसेज़ राजपूत ने कॉटिज से बाहर निकलते वक्त उसकी झलक देख ली थी। फिर भी उनके बीच फ़ासला बहुत ज़्यादा था, मिसेज़ राजपूत व्हीलचेयर पर थीं और निखिल ने फ़ौरन ही अपनी पीठ उनकी तरफ़ घुमा ली थी इसलिए इस बात की सम्भावना बहुत कम थी कि उन्हें एहसास हुआ हो कि कॉटिज से निकल कर भागने वाला शख़्स निखिल है। अब निखिल को सोचने-समझने और आगे की प्लानिंग करने के लिए समय चाहिए था। 


उसने टाउन पहुँच कर गाड़ी रोकी और गाड़ी में बैठे-बैठे आगे की पूरी प्लानिंग करने लगा।


अनंतिका बार में अपने लिए एक स्टिफ़ ड्रिंक तैयार कर रही थी, उसने आँखों के इशारे से अंश को ड्रिंक ऑफ़र की, अंश ने इनकार में सर हिलाते हुए कहा,

“आपको भी इतनी नहीं पीनी चाहिए, इट्स नॉट गुड फ़ॉर यू,”


“स्टॉप पेट्रॉनायज़िंग मी। आय डोंट नीड योर मॉरल लेक्चर,” अनंतिका को एहसास हुआ कि उसका टोन एकाएक काफ़ी बिटर हो गया था, हालाँकि वो रूड साउंड नहीं करना चाहती थी लेकिन उससे इतने स्ट्रॉंग और ब्लँट स्टेट्मेंट की अपेक्षा शायद अंश ने नहीं की थी। 


वो एक पल को सकपका गया फिर फ़ौरन ही संभलते हुए बोला,

“अ…आय एम सॉरी, मेरा वो मतलब नहीं था,”


“फिर क्या मतलब था?”

अंश को कोई जवाब ना सूझ, तभी अनंतिका का मोबाइल बजा। कॉल निखिल का था।


“येस निखिल,”


“हाउ आर यू फ़ीलिंग नाउ, अनी?” फ़ोन पर दूसरी तरफ़ से निखिल की आवाज़ आई। 


“आय एम नॉट श्योर हाउ आय शुड फ़ील,”


“क्या हुआ अनी?”


“आज कोई दिन दहाड़े कॉटिज वॉल फाँद कर अंदर कॉम्पाउंड में घुस आया था और कॉटिज में झांकने की कोशिश कर रहा था,”


“व्हॉट! कौन था? तुम ठीक तो हो?”


“आय एम फ़ाइन। शायद कोई चोर था। लकिली अंश अपने आर्ट सेशन के लिए आया हुआ है, उसने इंट्रूडर का पीछा करने की कोशिश की लेकिन वो भाग निकला,”

अनंतिका ने अंश के वहाँ होने की बात निखिल से नहीं छुपायी लेकिन उसने ये भी नहीं बताया कि जिस समय ‘इंट्रूडर’ अंदर झांकने की कोशिश कर रहा था उस घड़ी अंश अनंतिका के सामने खड़ा अपनी पैंट खोल रहा था। यह सोचते हुए निखिल दो पल ख़ामोश रहा।


“पुलिस को इन्फ़ॉर्म किया?”


“क्या फ़ायदा? भागने वाला तो भाग चुका, इसमें पुलिस भला क्या करेगी। तुम कब तक वापस आओगे?”


“मैंने यही बताने के लिए कॉल किया था, मुझे वापस आने में तीन-चार दिन लगेंगे। अर्जेंट्ली वापस दिल्ली जाना पड़ रहा है फ़र्म के काम से,”


“यार अब ऐसा भी क्या ज़रूरी काम है जो तुम्हारे जाए बिना नहीं होगा?” अनंतिका बुरी तरह झल्लाते हुए बोली।


“अकाउंट्स, लेजर्स एंड डेटा शीट्स की बोरिंग टेक्निकल डिटेल्ज़ आपकी समझ में नहीं आएँगी पेंटर मै’म,”


“मुझे बनाने की कोशिश मत करिए मिस्टर अकाउंटेंट,” अनंतिका की आवाज़ में इस बार नशे की कशिश थी। 


“मुझे तो सिर्फ़ लाइफ़ की बैलेन्स शीट में ऐसेट एंड लायअबिलिटीज़ का सीधा-सीधा हिसाब लगाना आता है, बनाने और रचने की कला तुम्हें आती है अनी मुझे नहीं,”

अनंतिका समझ नहीं पायी कि निखिल उससे यह बात मज़ाक़ में कही है या फिर एक टॉंट की तरह। 


“गॉट’टा गो। यू टेक केयर ऑफ़ योरसेल्फ़,”

कॉल डिस्कनेक्ट हो गयी। 


“दैट वज़ स्ट्रेंज,” अनंतिका खुद में बड़बड़ाते हुए बोली। उसे निखिल का कोल्ड एंड इम्पैसिव बिहेव्यर खटक रहा था।


“वॉट’स द डील?”


“नथिंग, निखिल इज़ ऑफ़ टू डेल्ही फ़ॉर ए कपल ऑफ़ डेज़। आय ड’नो वॉट आय’ल्ल ड़ू हेयर अलोन,”


“अलोन! यू आर नेवर अलोन हेयर,” अंश का चेहरा एकाएक बिल्कुल सर्द हो गया। वो अनंतिका की आँखों में देखते हुए खरखराती आवाज़ में बोला। एक पल के लिए अनंतिका सकपका गयी, अंश के चेहरे पर उसे देखते हुए बिल्कुल वैसे ही भाव थे जैसे स्लीप परैलिसस में अनंतिका ने एक्स्पिरीयन्स किए थे।

“अरे मैं हूँ ना यार! आप अकेले क्यों रहोगे? वैसे भी चकराता जैसे कूल टूरिस्ट प्लेस पर हो, लोग कहाँ-कहाँ से यहाँ घूमने नहीं आते और एक आप हो कि यहाँ आकार भी खुद को इस कॉटिज में बंद किए बैठे हो। मेरे साथ चलो मैं आपको चकराता का चप्पा-चप्पा दिखाता हूँ,”


अंश के चेहरे पर फ़ौरन ही उसकी बच्चों वाली शरारती सिग्नेचर स्माइल वापस आ गयी। अनंतिका की जैसे साँस में साँस आयी, वो अंश के सीने पर मुक्का मारते हुए बोली।

“यू आर सच ए पिग!”


“ओईंक-ओईंक” अंश सूअर की आवाज़ की नक़ल कर के अनंतिका को चिढ़ाने लगा। अनंतिका ने बार काउंटर पर रखा अपना स्कॉच ग्लास ख़ाली किया और अंश की तरफ़ बढ़ते हुए बोली।


“यू नॉटी लिटिल पिग, देख अभी मैं कैसे तेरे पॉर्क चॉप्स बनाती हूँ,”


अंश खिलखिलाते हुए अपने पीछे आती अनंतिका की पकड़ से बचते हुए भागा। अनंतिका और अंश में बच्चों की तरह जैसे चोर-पुलिस का गेम शुरू हो गया था। लिविंग एरिया के काउच पर से जम्प करते हुए अंश सीढ़ियों की तरफ़ भागा। नशे में लड़खड़ाते कदमों से अनंतिका भी उसके पीछे आयी। अचानक काउच से टकरा कर अनंतिका का बैलेन्स ऑफ़ हुआ। अगले ही पल अनंतिका मुँह के बल फ़र्श पर जा गिरती अगर अंश उसे बाहों में ना थाम लेता। अनंतिका संभल कर अंश से अलग होते हुए खड़ी हुई। ठीक उसी समय अंश का मोबाइल बजा।


“माँ कॉल कर रही हैं, काफ़ी देर हो गयी उन्हें अकेला छोड़ कर यहाँ आए हुए। मुझे जाना होगा,” 

अनंतिका ने सहमति में सर हिलाया। कॉटिज के दरवाज़े पर पहुँच कर अंश बोला।


“तो कल से चकराता टूर शुरू करें?”


अनंतिका ने मुस्कुराते हुए सहमति में सर हिलाया। अंश से दूर रहने की उसकी डेटर्मिनेशन एक दिन भी टिक ना पायी थी। वैसे भी निखिल की ग़ैर मौजूदगी में वो अकेले कॉटिज में तीन-चार दिन काटने के मूड में बिल्कुल नहीं थी। उसने सोचा कि इसी बहाने शायद उसका दिमाग़ स्लीप परैलिसस और नाइटमेयर्स से डाएवर्ट हो जाए।


अंश के जाने के बाद अनंतिका वापस अपने स्टूडियो में गयी। उसका ध्यान स्टूल पर रखी अंश की स्केचबुक पर गया। जाने की जल्दबाज़ी में अंश अपनी स्केचबुक ले जाना भूल गया था। अनंतिका ने स्केचबुक उठायी और उँगली के स्केचबुक का लेदर माउंट कवर ठकठकाते हुए कुछ सोचने लगी। फिर स्केचबुक लेकर वो ऊपर बेडरूम की तरफ़ बढ़ गयी। अनंतिका का सर नशे से बुरी तरह घूम रहा था और अब उसे भूख भी लग रही थी। उसने रेग्युलर फ़ूड जॉइंट कॉल कर के मेक्सिकन फ़ूड ऑर्डर किया। 


बेडरूम से अटैच्ड वॉशरूम में जा कर अनंतिका ने वॉश बेसिन का फ़ॉसेट खोला और अपना सर व खुले हुए बाल पानी के नीचे सिंक में झुका दिया। बालों से होते हुए चेहरे पर आता ठंडा पानी उसे सुकून का एहसास दे रहा था। कुछ देर तक अनंतिका वैसे ही हेड बाथ लेती रही फिर वापस बेडरूम में आ कर उसने टॉल्ल से अपने बाल सुखाए और बेडरूम के लाइफ़साइज़ बिल्ट-इन क्लॉज़ेट से सिंगल पीस पुल ओवर ड्रेस निकाल कर कपड़े चेंज किए। 


क्लॉज़ेट बंद कर के अनंतिका बेड पर लेट गयी और इत्मिनान से अंश की स्केचबुक के पेजेस पलटने लगी। कॉटिज विंडो पर खड़ी अनंतिका के अलावा आगे के पन्नों पर अंश ने अनंतिका के और भी कई स्केच उकेरे थे। चार्कोल स्टिक से स्मज टेक्नीक में बनाए गए स्केचेज़ में अंश ने अनंतिका के वेरीयस मूड्ज़ एंड एक्स्प्रेशन कैच करने की कोशिश की थी। अनंतिका फ़ुल स्प्रेड में बनाए अपने क्वॉर्टर प्रोफ़ाईल फ़ेस और आँखों पर हौले से उँगलियाँ फिरा रही थी, इस बात का पूरा ध्यान रखते हुए कि वो उसे स्मज ना कर दे। 


उस स्केच में अनंतिका की आँखों में अंश ने जो गहराई और भाव उकेरे थे वो चीख-चीख कर बयान कर रहे थे कि अंश के मन में अनंतिका के लिए फ़ीलिंग्स थीं। अनंतिका अगला पृष्ट पलटती उससे पहले ही कॉटिज की डोरबेल बजी। अब तक अनंतिका नशे से बुरी तरह बोझिल हो चुकी थी, वो अब बस खाना खा कर सोना चाहती थी। उसने डिसाइड किया कि वो डिनर के साथ एक और स्टिफ़ ड्रिंक लेगी ताकि एक बार जो बेड पर गिरे सीधे अगली सुबह ही उसकी आँख खुले। यह सोचती और अपने बहकते कदमों को सम्भालती हुई अनंतिका दरवाज़े तक पहुँची।


दरवाज़ा खोलते ही अनंतिका यूँ चौंकी कि उसका आधा नशा उतर गया।

“त…तुम?” सामने खड़े शख़्स को देख कर अनंतिका की ज़बान लड़खड़ायी। 


“तुम तो वही हो ना जो पहले डिलीवरी के लिए आए थे और दरवाज़े पर खाना फेंक कर बकवास करते हुए भाग गए थे?”


अनंतिका ने पिछली रात उस शख़्स का चेहरा ध्यान से नहीं देखा था और फ़िलहाल वो काफ़ी नशे में थी फिर भी उसे यक़ीन था कि अपने सामने खड़े डिलीवरी वाले को पहचानने में वो गलती नहीं कर रही। चालीस-पैंतालीस साल का, लम्बा और इकहरे बदन वाला वो शख़्स जिसके चेहरे पर अब भी अजीब से भाव थे और अपनी हल्की भूरी आँखों से नज़रें चुरा कर अनंतिका को देख रहा था, उसने हौले से सहमति में सर हिलाया। 


अनंतिका रोष में बोली।


“हमने पिछली बार ही तुम्हें डिलीवरी के लिए भेजने को मना किया था, इन लोगों ने फिर से तुम्हें भेज दिया। नाम क्या है तुम्हारा?”

उस शख़्स ने फ़ूड पार्सल अनंतिका की तरफ़ बढ़ाते हुए विनती की।


“म…मनोहर नाम है मेरा..प…पर प्लीज़ आज मेरी कम्प्लेन मत करना मैडम मेरी नौकरी चली जाएगी। य…ये छोटा क़स्बा है, यहाँ किसी नौकरी से निकाले जाने पर काम मिलना आसान नहीं।म…मेरे जैसे आदमी के लिए तो बिल्कुल भी नहीं। उ…उस दिन की अपनी हरकत के लिए मैं माफ़ी माँगता हूँ।”


“लेकिन तुम ऐसे पागलों की तरह भागे क्यों थे?” अनंतिका ने पार्सल लेते हुए सवाल किया। उसने देखा कि मनोहर उसके सवाल का जवाब देने के बजाए हिचकिचाते हुए इधर-उधर ताक रहा था जैसे जल्द से जल्द वहाँ से भाग निकलना चाहता हो लेकिन फिर से शिकायत किए जाने और नौकरी गँवाने के डर से वैसे कर नहीं पा था। अनंतिका ने सौ रुपए का नोट उसकी तरफ़ बढ़ाते हुए कहा।


“ये टिप रखो, देखो मैं तुम्हारी कम्प्लेन नहीं करूँगी लेकिन एक कंडिशन पर। मुझे सच-सच बताओ तुम यहाँ से क्यों भागे थे, किस बात से डरे हुए हो तुम?”

मनोहर ललचाई हुई चोर नज़रों से कभी उस सौ रुपए को देखता तो कभी अनंतिका को देख कर ये फ़ैसला करने की कोशिश करता कि क्या उसे अनंतिका के सवालों का जवाब देना चाहिए या वहाँ से फ़ौरन भाग निकलना चाहिए। अंततः उसने हौले से अनंतिका के हाथ से सौ रुपए का नोट लेते हुए कहा।


“य…ये जगह बहुत मनहूस है। यहाँ रहने वालों में से हमेशा कोई ना कोई म…मर जाता है…नहीं।मार दिया जाता है। इस अभिशप्त कॉटिज के खूनी इतिहास को दबा दिया गया, बस जो यहाँ के पुराने बाशिंदे हैं वो ही जानते हैं अ…और इस जगह से दूर रहते है,”

अनंतिका को मनोहर की बात सरासर बकवास लगी। उसके चेहरे से उसके आंतरिक मनोभाव साफ़ झलक रहे थे जिन्हें मनोहर भी समझ गया।


“खुद सोचिए मैडम, टूरिस्ट प्लेस पर प्राइम लोकेशन में इतने सालों से इतनी बड़ी कॉटिज ऐसे बंद और उजाड़ क्यों पड़ी हुई है?”


“क्योंकि यहाँ भूत-प्रेत और भटकती आत्माओं का वास है,” अनंतिका आँखें रोल करते हुए सार्कास्टिक टोन में बोली लेकिन उसने ध्यान दिया कि उसके सार्कैज़्म का मनोहर पर कोई असर ना पड़ा। 


“कुछ उससे भी बुरा। यहाँ कुछ है जो बहुत ही बुरा और शैतानी है। इस कॉटिज की हर मंज़िल पर खुद मौत और शैतान का वास है…द..देखिए मैडम अ…आपने पूछा तो मैंने बता दिया, इससे ज़्यादा मुझे कुछ नहीं पता। बस मेरी कम्प्लेन मत करना,” मनोहर ने नोट बेतरतीबी से मोड़-तोड़ कर अपने पैंट के बैक पॉकेट में ठूँसा और एक हाथ से अनंतिका को सलाम करते हुए मशीनी अन्दाज़ में वापस जाने के लिए पलट गया और बहुत ही तेज कदमों से चलते हुए, लगभग भागते हुए, कॉटिज कॉम्पाउंड क्रॉस कर के आयरन गेट खोल कर बाहर निकल गया। 


अनंतिका ने ध्यान दिया कि मनोहर अपना सर नीचे की तरफ़ कर के वहाँ से निकला था और उसने एक बार भी वापस पलट कर अनंतिका या उस कॉटिज की तरफ़ नहीं देखा। 

“क्रीप!” 


खुद में बड़बड़ाते हुए अनंतिका ने दरवाज़ा बंद किया और खाना लेकर बार एरिया के पास रखे डाइनिंग टेबल पर रख दिया। 


कुछ सोचते हुए अनंतिका वापस अपने स्टूडियो में पहुँची। वहाँ की खुली खिड़की उसने अच्छी तरह अंदर से बंद की। कॉटिज में एक पिछला दरवाज़ा भी था जो किचेन से कॉटिज के पिछले कॉम्पाउंड और बैक लॉन पर निकलता था और वो हमेशा बंद ही रहता था। किचेन में पहुँच कर अनंतिका चौंकी। बैकडोर का लैच खुला हुआ था। अनंतिका को यह बात बहुत अजीब लगी। उसे यक़ीन था कि वो दरवाज़ा हमेशा की तरह अंदर से बंद था क्योंकि उस दरवाज़े का इस्तेमाल ना अनंतिका करती थी ना निखिल। उसने डिसाइड किया कि अगली बार जब भी उसकी निखिल से बात होगी वो दरवाज़े की बाबत उससे सवाल करेगी। अनंतिका ने दरवाज़े का लैच लगाया इसके बाद ऊपर बेडरूम में पहुँची। उसने बेडरूम की फ़्रेंच विंडो भी अच्छी तरह बंद की। अब अनंतिका पूरी तरह आश्वस्त थी कि कॉटिज में आने के सारे रास्ते अच्छी तरह से बंद हो चुके हैं। अकेले रहने पर वो किसी भी तरह का कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी। ख़ास कर उस क्रीपी डिलीवरी वाले की बकवास सुनने के बाद तो बिल्कुल भी नहीं। अनंतिका कुछ पल तक सोचती रही इसके बाद उसने कैबिनेट से एक बड़ा फ़ाइव लिवर लॉक निकाला और सेकंड फ़्लोर के बंद दरवाज़े पर पहुँची। उसने दरवाज़े पर ताला लगा कर अच्छी तरह तसल्ली कर ली। फ़ाइनली अनंतिका ने चैन की साँस ली और डिनर करने नीचे बढ़ गयी।


अपनी सायकल पर सवार होकर मनोहर कॉटिज से लगभग उसी स्पीड से भागा जिस स्पीड से पिछली बार भागा था। उसके दिमाग़ में एक सवाल बार-बार चोट कर रहा था, क्या उसे उस लड़की को कॉटिज के बारे में सब कुछ सच-सच बता देना चाहिए था? भाड़ में जाए लड़की! उसने तो मनोहर ने जितना बताया उस पर भी यक़ीन नहीं किया था। मनोहर जानता था कि वो लड़की मन ही मन उसपर हंस रही थी और उसे पागल समझ रही थी। उसने जितना उस लड़की को बता दिया वही बहुत था, उसने भला कोई ठेका थोड़े ही ना लिया हुआ है उस लड़की का। मनोहर तो आज वापस डिलीवरी करने जाना ही नहीं चाहता था लेकिन गिनते के तीन डिलीवरी वाले हैं फ़ूड जॉइंट पर, जिनमें से एक छुट्टी पर था और दूसरा कहीं और डिलीवरी करने गया था इसलिए मालिक ने उसे नौकरी से निकालने की धमकी दे कर कॉटिज भेजा था। आज मनोहर ने कॉटिज की दूसरी मंज़िल की ओर नज़र उठा कर भी नहीं देखा। उस लड़की को आगाह करने के लिए भी जितना वो कर सकता था उसने कर दिया था। मनोहर ने फ़ैसला किया कि वो वापस जा कर मालिक से साफ़-साफ़ कह देगा कि आइंदा अगर कभी उसे डिलीवरी के लिए कॉटिज भेजा गया तो वो खुद ही नौकरी छोड़ देगा लेकिन वहाँ हरगिज़ नहीं जाएगा। 


मशीनी अन्दाज़ में सायकल के पैडल पर चलते मनोहर के पैरों और उसके दिमाग़ में साथ-साथ चल रहे इन विचारों को अचानक एक झटका लगा। उसके सायकल की चेन उतर गयी थी। अभी मनोहर कच्चे रास्ते की ढलान चढ़ कर टाउन जाने वाली मेन रोड पर आया ही था। वहाँ काफ़ी अंधेरा था, रोड डाईवर्ज़न पर एक स्ट्रीट लाइट जल रही थी। मनोहर सायकल से उतरा और उसे घसीटते हुए किनारे जलती लाइट के नीचे ले आया। उसे पूरे रास्ते ऐसा लग रहा था जैसे कोई उसका पीछा कर रहा हो। वो जानता था कि ये सिर्फ़ उसके मन का वहम है, उसके दिमाग़ का डर जो उस पर हावी हो रहा था। सायकल की चेन चढ़ाते हुए मनोहर बार-बार नीचे जाती ढलान और कच्चे रास्ते की तरफ़ देख रहा था, उसे डर था कि उसके दिमाग़ का डर मूर्त रूप लेकर अंधेरे से किसी भी पल निकल सकता है। 


सायकल की चेन चढ़ा कर सीधा खड़ा हुआ ही था कि सामने ढलान की तरफ़ देख कर उसकी सिसकारी निकल गयी। ढलान के नीचे पेड़ों और झाड़ियों से घिरे कच्चे रास्ते पर अंधेरे में कुछ हलचल हो रही थी। एक साया अंधेरे में उभरा, वो ढलान पर मनोहर की तरफ़ बढ़ रहा था। मनोहर क्योंकि खुद ठीक लाइट के नीचे खड़ा था और साया अंधेरे में ढलान चढ़ते हुए उसकी तरफ़ बढ़ रहा था इसलिए साये का चेहरा देख पाना उसके लिए असम्भव था। एक पल को मनोहर ने सोचा कि वो बेवजह ही डर रहा है, वो साया उधर से गुजरने वाला कोई राहगीर भी हो सकता है। मनोहर काफ़ी स्पीड में सायकल चलाते हुए कॉटिज से वहाँ तक पहुँचा था, किसी पैदल इंसान के लिए इतनी तेज़ी से भाग कर उसके पीछे आना असम्भव था। मनोहर तेज़ी से सायकल पर सवार हुआ, वो उस साये के क़रीब आने से पहले ही वहाँ से भाग जाना चाहता था। इससे पहले कि मनोहर पैडल करता उसकी नज़रें आख़री बार उस साये पर पड़ीं। तेज़ी से क़रीब आते साये पर स्ट्रीट लाइट की रौशनी पड़ते ही उसके हाथ में कोई चीज़ चमकी। मनोहर एक पल में समझ गया कि वो एक बड़े फल वाला छुरा है। मनोहर की नज़र अब उस साये के चेहरे और आँखों पर पड़ी। सर्द रात में भी मनोहर पसीने से तर, हाँफ रहा था। उसने पूरी ताक़त झोंक कर सायकल आगे मेन रोड पर भगायी। मनोहर का पूरा ध्यान अपनी तरफ़ आते साये की ओर था ना कि सामने सड़क की ओर। इसीलिए उसे अपनी तरफ़ तेज़ी से आते ट्रक का एहसास तब हुआ जब डिपर हेडलाइट्स की रौशनी में वो सराबोर हो गया। मनोहर पलटा, रौशनी से उसकी आँखें चौंधियाईं, चीखने का भी मौक़ा नहीं मिला उसे। मनोहर का सर ट्रक के नीचे आ गया। ट्रक ड्राइवर नशे में था, जब तक उसके पैर ब्रेक पर कसे, मनोहर का काम तमाम हो चुका था। ड्राइवर को जैसे ही एहसास हुआ कि उसने क्या किया है उसके पैर ऐक्सेलरेटर पर यूँ कसे जैसे कभी उठेंगे ही नहीं। मनोहर के पीछे आते साये का कोई अता-पता नहीं था, ऐसा लग रहा था जैसे वो साया हवा में ग़ायब हो गया हो। रात के अंधेरे में सड़क पर सिर्फ़ मनोहर की सर विहीन गुमनाम लाश पड़ी थी।


* * * * 


नीचे आते समय अनंतिका अपना लैपटॉप साथ लेते आयी थी। डाइनिंग टेबल पर खाना खाते हुए अनंतिका कॉटिज की बैकहिस्ट्री गूगल कर रही थी। बहुत कोशिशों के बाद भी उसे कुछ नहीं मिला।


“ये फ़िल्मों और सिरीज़ में क्या बेवक़ूफ़ बनाते हैं। गूगल सर्च करते ही खून-क़त्ल से लेकर हॉंटेड मैन्शन तक की सारी बैकहिस्ट्री सामने आ जाती है। रियल लाइफ़ में गूगल कर-कर के मर जाओ फिर भी कुछ नहीं मिलेगा,”

अपने ड्रिंक का सिप लेते हुए अनंतिका खुद में बड़बड़ाई। 


क्या डिलीवरी वाला सच कह रहा था? अगर वो सच कह रहा था तो ऐसी कोई भी जानकारी इंटरनेट पर उपलब्ध क्यों नहीं है? अनंतिका को वैसे भी उस आदमी की बातों पर कुछ ख़ास यक़ीन नहीं हुआ था लेकिन फिर भी, इस कॉटिज में आने के बाद उसके खुद के साथ जो बीती थी वो उसे भी झुठला नहीं सकती थी। अनंतिका ने अपना डिनर और ड्रिंक ख़त्म किया। वो बुरी तरह थकी हुई और नशे से सराबोर थी। नशा उस पर इस कदर हावी था कि सीढ़ियाँ चढ़ कर ऊपर बेडरूम तक जाना उसके लिए इम्पॉसिबल टास्क था। नशे में लड़खड़ाती अनंतिका किसी तरह डाइनिंग एरिया से उठी और लिविंग एरिया में काउच पर आ कर ढेर हो गयी। अनंतिका फ़ौरन ही गहरी नींद और नशे के अंधकार में पूरी तरह डूब चुकी थी।


अनंतिका को समय का कोई अंदाज़ा नहीं था फिर भी उसे ये एहसास था कि काफ़ी रात बीत चुकी है फिर भी भोर होने में अब भी कुछ घंटे बाक़ी हैं। उसकी गहरी नींद ऊपर से आती आवाज़ों से खुली थी। पहले कुछ देर चरमराहट की तीखी आवाज़ आयी जैसे कोई लकड़ी का दरवाज़ा खुल रहा हो, इसके बाद दबे पाँव चलने जैसी आवाज़ आयी। कुछ देर तक अनंतिका को लगता रहा कि ये सिर्फ़ उसके नशे में दूबे दिमाग़ की कल्पना है लेकिन समय के साथ पदचापों की आवाज़ बढ़ी। अब ऐसा लग रहा था जैसे ऊपर एक से अधिक लोग पूरे फ़र्स्ट फ़्लोर पर चल रहे है। नहीं, ये वहम या कल्पना नहीं हो सकती, अनंतिका ने बहुत मुश्किल से अपनी आँखें खोलीं, उसका सर बुरी तरह घूम रहा था। 


अपनी साँस रोक कर उसने अपने घूमते दिमाग़ और ध्यान को ऊपर से आती आवाज़ों पर केंद्रित करने की कोशिश की। 

ऐसा लग रहा था जैसे ऊपर कोई चारों तरफ़ कुछ ढूँढ रहा है। अनंतिका का दिमाग़ फ़ौरन चौकन्ना हुआ, अपने कान के पर्दों पर उसे दिल की धड़कन चोट करती महसूस हो रही थी, अपनी उखड़ी हुई साँसों को क़ाबू में करने की वो भरसक कोशिश कर रही थी क्योंकि अस्थमा पेशंट जैसी उसकी स्थिति ऊपर जो कोई भी था उसे अनंतिका की बाबत चौकन्ना कर सकती थी। 


काउच से उठने में अनंतिका को अपने जिस्म का पोर-पोर दर्द करता महसूस हुआ, उसने मन ही मन फ़ैसला किया कि वो हर हाल में अपनी शराब की तलब पर लगाम लगाएगी। ग्राउंड फ़्लोर के दोनों दरवाज़े और सभी खिड़कियाँ अंदर से बंद थीं। बिना आवाज़ के, दबे पाँव चलते हुए अनंतिका अपने स्टूडियो पहुँची, वहाँ से उसने वुडन ईज़ल का अलग कर के रखा पाया उठा लिया और उसे बैट की तरह पकड़ कर वापस सीढ़ियों की ओर बढ़ी। ऊपर से अब कोई भी आवाज़ नहीं आ रही थी, वातावरण में रात की ठंड होने के बावजूद कॉटिज में एक असाधारण घुटन भरा सन्नाटा व्याप्त था। अनंतिका का सर अब भी घूम रहा था और उसकी साँस फूल रही थी। काँपती उँगलियों से उसने वुडन लॉग मज़बूती से पकड़ने की कोशिश की और सीढ़ियाँ चढ़ते हुए ऊपर फ़र्स्ट फ़्लोर पर पहुँची। सेकेंड फ़्लोर पर जाने वाला स्टेयर-वे डोर भी बंद था, उसपर अनंतिका का लगाया हुआ ताला इंटैक्ट लटक रहा था यानी ऊपर से किसी के आने का कोई चान्स नहीं था। बेडरूम का दरवाज़ा बंद था, अनंतिका ने दिमाग़ पर ज़ोर डालने की कोशिश की कि उसने नीचे उतरते समय उसने बेडरूम डोर खुला छोड़ा था या बंद किया था। वो इतने नशे में थी कि उसके लिए ये याद कर पाना सम्भव नहीं था। उसने डोर नॉब घुमा कर दरवाज़े को अंदर की तरफ़ धकेला, लकड़ी का पुराना दरवाज़ा चरमराहट के साथ अंदर की ओर खुला लेकिन अनंतिका ने ध्यान दिया कि इस चरमराहट की आवाज़ उस आवाज़ से अलग है जो पहले उसे सुनाई दी थी। 


अनंतिका एक झटके में रूम के अंदर दाखिल हुई, उसने हाथ में थमी लकड़ी क्रिकेट बैट की तरह हवा में चारों तरफ़ घुमाई।


“कम आउट यू सन ऑफ़ ए बिच! आय नो यू आर हाइडिंग हेयर,” अनंतिका को खुद अपनी आवाज़ किसी लम्बे हॉलो ट्यूब से आती सुनाई दी। नशा अब भी उस पर हावी था।

बेडरूम ख़ाली था। 


अनंतिका झुंझलाई। ऐसा कैसे हो सकता था। उसने ऊपर से आती आवाज़ें साफ़-साफ़ सुनी थीं। क्लॉज़ेट! क्या वहाँ आने वाला इंट्रूडर अनंतिका के आने की भनक पा कर क्लॉज़ेट में जा छुपा था? क्लॉज़ेट इतना बड़ा था जिसमें दो लोग बहुत आराम से समा सकते थे। अनंतिका तेज़ी से बंद क्लॉज़ेट की तरफ़ बढ़ी। अंदर से यकीनन किसी के होने की, सरसराहट की आवाज़ आ रही थी। अनंतिका ने हाथ में थमी लकड़ी हिट करने के लिए उठा ली। उसने तेज़ी से क्लॉज़ेट का स्लाइडर डोर सरकाया और लकड़ी वाले हाथ से अंदर वार किया। अनंतिका का वार ख़ाली गया लेकिन क्लॉज़ेट ख़ाली नहीं था। क्लॉज़ेट से एक काले साये ने अनंतिका के ऊपर छलांग लगाई। 


अनंतिका की ज़ोरदार चीख कॉटिज के बाहर तक गूंजी।

“ई ई ई ई sss”

अनंतिका की तीखी और ज़ोरदार चीख वातावरण में दूर तक गूंजी। 


इस चीख की गूंज सामने वाले कॉटिज में अंश तक भी पहुँची। यूँ तो अमूमन इस समय तक अंश सो चुका होता था और बतौर उसके ‘स्लीप वॉक’ कर रहा होता था लेकिन उस रात अंश की आँखों से नींद कोसों दूर थी। 


अनंतिका के बारे में सोचते हुए, ख़ास कर उसके साथ गुजरी पिछली दोपहर और शाम की घटनाओं के बारे में सोचते हुए रात कब गुज़र गयी, अंश को ख़्याल भी नहीं था। वो तो यूँ ही उन ख़यालों में डूबे हुए बची रात भी गुज़ार लेता अगर उसके ख़यालों को अनंतिका की चीख का झटका ना लगा होता। 


अंश लपक कर अपने कमरे की फ़्रेंच विंडो पर पहुँचा। उसे यक़ीन था कि देर रात गए सन्नाटे में गूंजी वो चीख उसके कल्पना की उपज नहीं थी बल्कि अनंतिका के गले से निकली थी, और सामने वाली कॉटिज से आयी थी। सामने वाली बेडरूम विंडो पर्दे से ढकी हुई थी, हालाँकि बेडरूम में रात के उस समय भी लाइट जल रही थी, अंश कुछ मिनट तक इस आस में खड़ा रहा कि शायद पर्दे के पार अनंतिका का साया नज़र आ जाए लेकिन उस चीख के बाद घुप्प सन्नाटा व्याप्त हो चुका था। अंश का चेहरा पत्थर की मानिंद सख़्त हो गया और आँखों में सुर्ख़ लाल डोरे तैरने लगे। 


रात काफ़ी देर तक मिसेज़ राजपूत को नींद नहीं आयी थी। उनका दिमाग़ बीते समय में घटित हुई घटनाओं में उलझा हुआ था। विचारों की दिशाहीन धारा बहते हुए उनके नए पड़ोसी, अनंतिका और निखिल तक आ पहुँची। मिसेज़ राजपूत को घुटन का एहसास होने लगा, उनका ज़ी आया कि वहाँ से निकल कर कहीं भाग जाएँ, लेकिन फिर उन्हें अपनी लाचारी का ख़्याल आया। बेचैनी और भी बध गयी, जिसे दबा कर वो सोने की कोशिश करने लगीं। यादों के बोझ से थका हुआ मन मस्तिष्क को धीरे-धीरे अंधेरे की ओर धकेल रहा था कि अचानक उस अंधेरे को चीरती एक चीख कौंधी। 


मिसेज़ राजपूत की आँख खुल गयी, यह चीख अनंतिका की थी।


ग्राउंड फ़्लोर पर उनका बेडरूम अंश के बेडरूम के ठीक नीचे स्थित था और उनका बेड कमरे की खिड़की से लगा हुआ था। खुली खिड़की की चौखट व पल्ला पकड़ कर मिसेज़ राजपूत ने अपना ऊपरी शरीर सीधा किया और खिड़की से बाहर, चीख की दिशा में देखने लगीं। सामने कोई हलचल ना नज़र आयी लेकिन कुछ पल बाद उनके घर का बाहरी दरवाज़ा खोल कर बग़ल के कॉटिज की ओर बढ़ता अंश उन्हें नज़र आया। 


रात के अंधेरे और उम्र के साथ धुंधली होती अपनी आँखों की रौशनी के बावजूद, कॉटिज की तरफ़ बढ़ते अंश के जिस्म की थरथराहट, आवेश से उसका तमतमाया चेहरा उन्हें साफ़ दिखाई दे रहा था। मिसेज़ राजपूत के सूखते गले से एक फँसी हुई सिसकारी निकली, उनकी साँस फूलने लगी। साइड टेबल पर रखे वॉटर पिचर से उन्होंने ग्लास में पानी डाला। पानी पी कर ग्लास टेबल पर रखते हुए मिसेज़ राजपूत ने टेबल की दराज खोली जिसमें एक पुराना फ़ोटो ऐल्बम, लकड़ी का एक नक्काशीदार चौकोर बक्सा और कुछ काग़ज़ रखे हुए थे। 


इस सामान के नीचे दराज का लकड़ी का पल्ला हटाने पर एक और ख़ुफ़िया दराज थी जिसमें एक पुराने जमाने की रिवॉल्वर, कुछ कारतूस और कुछ पुरानी विंटेज ज्वेलरी जिसकी क़ीमत आज की तारीख़ में करोड़ों में होगी, छुपा कर रखे गए थे। इस सामान के अलावा वहाँ एक दूरबीन थी जो मिसेज़ राजपूत ने निकाल ली। दूरबीन की मदद से वो बग़ल में हो रही गतिविधियों पर नज़र रखने की कोशिश करने लगीं। 


अंश ने कॉटिज की डोरबेल बजायी जिसका कोई जवाब नहीं मिला। उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। 


‘अनंतिका sss… अनंतिका sss!’ 

अंश ने एक बार फिर डोरबेल का स्विच दबाते हुए, इस बार अनंतिका को आवाज़ भी लगाई लेकिन कोई जवाब ना आया। अंश को पिछले दरवाज़े का ख़्याल आया जो किचेन से कॉटिज के पिछले लॉन में खुलता था। वो भागते हुए पिछले दरवाज़े पर पहुँचा। जैसा कि अपेक्षित था, दरवाज़ा अंदर से बंद था। अंश ने दरवाज़ा पूरी ताक़त से पीटते हुए एक बार फिर अनंतिका को पुकारा। 


‘अनंतिका sss… अनंतिका sss!’ 

अंदर से कोई आवाज़ ना आयी। अंश ने ग्राउंड फ़्लोर की सभी खिड़कियाँ चेक की, अनंतिका के स्टूडीओ की उस खिड़की समेत जहां उन्हें वो साया ताक-झांक करता दिखाई दिया था लेकिन सभी खिड़कियाँ अंदर से मज़बूती से बंद की गयी थीं। कॉटिज के दोनों दरवाज़े पुराने ज़रूर थे, लेकिन इतने मज़बूत थे कि उन्हें तोड़ने के लिए या तो बुलडोजर की ज़रूरत पड़ती या सी.आइ.डी. इंस्पेक्टर दया की। अंश वापस सामने के दरवाज़े की तरफ़ आया। 


उसने कॉटिज के फ़्रंट पोर्टिको का मुआयना किया। अगर वो किसी तरह पोर्टिको पर चढ़ने में कामयाब हो जाता है तो वो यहाँ से गुजरते ड्रेनेज पाइप की मदद से बेडरूम की खुली हुई फ़्रेंच विंडो तक पहुँच सकता था। पोर्टिको के नीचे पहुँच कर अंश ने ऊपर की तरफ़ जम्प लगाया। तीन-चार कोशिशों के बाद वो पोर्टिको रेलिंग की कास्ट आयरन ग्रिल पकड़ने में कामयाब हो गया। अंश का कसा हुआ एथलेटिक शरीर ऊपर उठने लगा। ठीक उसी पल कॉटिज का फ़्रंट डोर खुला।


* * * *


“कम आउट यू सन ऑफ़ ए बिच! आय नो यू आर हाइडिंग हेयर।” अनंतिका को खुद अपनी आवाज़ किसी लम्बे हॉलो ट्यूब से आती सुनाई दी। 

नशा अब भी उस पर हावी था।


अनंतिका ने हाथ में थमी लकड़ी हिट करने के लिए उठा ली। उसने तेज़ी से क्लॉज़ेट का स्लाइडर डोर सरकाया और लकड़ी वाले हाथ से अंदर वार किया। अनंतिका का वार ख़ाली गया लेकिन क्लॉज़ेट ख़ाली नहीं था। क्लॉज़ेट से एक काले साये ने अनंतिका के ऊपर छलांग लगाई। अनंतिका की ज़ोरदार चीख कॉटिज के बाहर तक गूंजी थी। 


“तुम अंदर कैसी आयी? मैंने कॉटिज बंद कर के अच्छी तरह चेक किया था, तब तुम अंदर नहीं थी,”

अनंतिका उस काले साये की तरफ़ पलटते हुए आहत भाव से बोली।


‘म्याऊँ sss’ 

साये ने अपनी बड़ी-बड़ी, कंजी आँखों से अनंतिका को घूरते हुए फ़रमाइशी ‘म्याऊँ’ की और अनंतिका के कदमों में लोटने लगा। 


अनंतिका हैरान थी कि पूरी कॉटिज सील टाइट होने के बावजूद आख़िर बिल्ली अंदर आयी कहाँ से? उसने कॉटिज बंद करते समय अच्छी तरह चेक किया था, बिल्ली वहाँ नहीं थी, नहाने के बाद अनंतिका ने इसी क्लॉज़ेट से कपड़े निकाल कर पहने थे, तब वहाँ बिल्ली नहीं थी। अनंतिका ने क्लॉज़ेट अच्छी तरह बंद किया था, यानी इस बात की सम्भावना भी नहीं थी कि बिल्ली किसी समय अनंतिका की नज़र बचा कर क्लॉज़ेट में घुस गयी हो। 


“आख़िर इस बंद क्लॉज़ेट में तुम आयी कहाँ से?”

अनंतिका ने बिल्ली से सवाल किया जिसका प्रत्युत्तर एक मासूम ‘म्याऊँ’ के रूप में आया। क्लॉज़ेट में दरवाज़े के साथ तीनों दीवारें लकड़ी के पल्लों की थी। दाएँ और बाएँ पल्लों पर कपड़े, शूज़ और ऐक्सेसरीज़ रखने के लिए ऊँचे शेल्फ बने थे, क्लॉज़ेट का दरवाज़ा खोलते ही ठीक सामने के पल्ले पर एक लाइफ़ साइज़ मिरर जड़ा हुआ था और ऊपर सीलिंग पर ज़ीरो वॉट का बल्ब था जिसका स्विच क्लॉज़ेट के अंदर ही था। अग़ल-बग़ल के दोनों शेल्फ कपड़ों व अन्य सामानों से भरे हुए थे जिनमें से किसी भी सामान के साथ छेड़छाड़ नहीं की गयी थी। 


क्लॉज़ेट की लाइट जल रही थी और गोद में उस काली बिल्ली को उठाए हुए अनंतिका अनिश्चित भाव से अपने अनुत्तरित सवालों के साथ वहाँ खड़ी हुई थी।


“श्रोडिंगर के कैट एक्स्पेरिमेंट से बड़ी मिस्ट्री मेरे लिए कैट इन क्लॉज़ेट है,” कहते हुए अनंतिका ने हताशा से अपने कंधे उचकाए। वो वापस जाने के लिए मुड़ रही थी कि अचानक उसकी नज़रें क्लॉज़ेट फ़्लोर पर जमी धूल पर पड़ीं जिसपर बिल्ली के नन्हे पैरों के फ़ुट्प्रिंट बने हुए थे। धूल पर कुछ इंसानी फ़ुट्प्रिंट्स भी थे जो ज़ाहिर तौर पर उसके और निखिल के थे, लेकिन जिस बात ने अनंतिका का ख़ास ध्यान खींचा था वो थे सामने मिरर वॉल के नीचे धूल पर बने ख़ास निशान, ऐसे निशान जो दरवाज़ा खोल-बंद करने से फ़र्श पर बनते हैं। अनंतिका ने बिल्ली को गोद उतारा और मिरर वॉल की तरफ़ बढ़ी। 


अनंतिका ने झुक कर फ़र्श पर बने निशान गौर से देखे। फ़र्श पर दरवाज़े के खुलने से बने निशान थे, इसका मतलब वो मिरर वॉल दरवाज़े की तरह खुल सकती थी? लेकिन कैसे? अनंतिका ने मिरर वॉल को पीछे धकेलने की कोशिश की पर दिवार टस से मस ना हुई।


“अगर ये वॉल वाक़ई हिडेन डोर-वे है तो इसे खोलने के लिए कोई लैच होना चाहिए,”

अनंतिका वुडन पैनल और मिरर के नक्काशीदार माउंट पर उँगलियाँ फिराते हुए खुद में बड़बड़ाई। 


मिरर को वुडन पैनल पर फ़िक्स करने के लिए जो मेटल माउंट फ़्रेम यूज़ किया गया था वो ब्रास का बना हुआ था और उसपर चारों तरफ़ रेलीफ़ एंग्रेविंग से ट्रेडिशनल फ़्लोरल पैटर्न बनाए गए थे, फूलों के गुच्छे और पत्तों से भरी लताएँ। इसे देख कर ही इसके ऐंटीक होने का पता लगता था।


अनंतिका की उँगलियाँ बहुत बारीकी से एक-एक नक़्क़ाशी को टटोल रही थीं। मिरर की ऊँचाई अनंतिका की हाइट से ज़्यादा थी, अनंतिका अपने पंजों पर उचक कर ऊपरी फ़्रेम टटोलने लगी। उसकी उँगलियाँ दाएँ कोने की पत्तियों से टकराईं। उँगलियों के हल्के दबाव से ब्रास लीफ़ किसी पुश बटन के जैसे पीछे दब गयीं और एक हल्के खटके के साथ मिरर वॉल दरवाज़े की तरह खुल गयी। 


“वॉट द हेल इज़ दिस! डोर-वे टू नार्निया?”

अनंतिका दरवाज़े की खुली झिर्री के पीछे देखने की कोशिश करते हुए बुदबुदायी, लेकिन उस झिर्री के पार उसे अंधेरे के अलावा कुछ नज़र ना आया।


“नाह…इट्स टू डार्क टू बी नार्निया,”

अनंतिका ने दरवाज़ा पकड़ कर अपनी तरफ़ खींचा। ज़मीन से रगड़ खाते हुए दरवाज़ा एक तीखी चरमराहट के साथ खुल गया। 


“ओपन सेज़ मी! खुल जा सिमसिम!”

दरवाज़े के दूसरी तरफ़ नीचे को जाता हुआ एक अंधेरा गलियारा था, जिसमें नीचे की तरफ़ जाती हुई पत्थर की सीढ़ियाँ थीं। वहाँ रौशनी का कोई साधन नहीं था, अनंतिका ने अपने मोबाइल की फ़्लैश लाइट ऑन की और सीढ़ियों पर उतरते हुए नीचे देखने की कोशिश करने लगी। अंधेरा इतना सघन था कि फ़्लैश लाइट भी कुछ सीढ़ियों के बाद अंधेरे में ग़ायब हो रही थी।


“क्या हो सकता है नीचे? कोई छुपा हुआ डंजन? हिडेन ट्रेज़र?”

अनंतिका ने अगला कदम बढ़ाया ही था कि उसे कॉटिज की डोरबेल बजने, और अंश की उसे पुकारने की आवाज़ सुनाई दी।


“अंश? ये इस समय यहाँ क्या कर रहा है? ओह समझी! शायद मेरी चीखने की आवाज़ बग़ल वाली कॉटिज तक गयी है,”

अनंतिका पशोपेश में थी कि उसे क्या करना चाहिए, तभी कॉटिज के पिछली तरफ़ से अंश की घबराई हुई आवाज़ सुनाई दी। अनंतिका ने गिव-अप करने के अन्दाज़ में अपनी आँखें गोल नचाई और ऊपर बेडरूम की तरफ़ बढ़ गयी।


अनंतिका ने जब कॉटिज डोर खोला तो उसे अपने ठीक सामने पोर्टिको से लटकता अंश नज़र आया। अनंतिका की हार्ट्बीट स्किप हो गयी। अंश का सिर्फ़ कमर से निचला हिस्सा नज़र आ रहा था। ऊपर चढ़ने की क़वायद में उसकी टी-शर्ट ऊपर उठी हुई थी और डेनिम सरक कर उसके क्रॉच बल्ज तक आ गयी थी जिससे उसकी ग्रे केविन-क्लाइन अंडरवियर नज़र आ रही थी। अनंतिका के होंठ खुले जिनसे हल्की सीटी जैसी सिसकारी निकली। उसके लिए अपनी आँखें अंश के बल्ज से हटाना मुश्किल हो रहा था। उसके दिल की आवाज़ चीख-चीख कर उससे कह रही थी कि वो आगे बढ़ कर अंश की डेनिम और अंडरवियर खींच कर उसके जिस्म से अलग कर दे।


“अ…अंश,”

अनंतिका ने अपना सर झटक कर वो लुभावना लेकिन बेहूदा विचार अपने दिमाग़ से निकाला और अपनी फँसी हुई आवाज़ को संयमित करने की भरसक कोशिश करते हुए अंश को पुकारा। पोर्टिको के ऊपर चढ़ने की कोशिश करता अंश, अनंतिका की आवाज़ सुन कर ठिठका, उसने नीचे छलांग लगाई और पोर्टिको के नीचे खड़ी अनंतिका के ठीक सामने लैंड किया। 


“आप ठीक हो? चीखी क्यों थी? मैंने इतनी बार पुकारा आपको, बेल भी बजाई, कहाँ थीं आप?”

अंश हाँफते हुए एक ही साँस में बोल गया, उसकी खूबसूरत आँखें बड़ी-बड़ी होकर अनंतिका को सर से पैर तक घूर रही थीं। अंश का उसकी सलामती के लिए यूँ फ़िक्रमंद होना अनंतिका को एक अनजान सुख और सुकून दे रहा था। अंश को देख कर कुछ पल के लिए जैसे वो सब कुछ भूल गयी थी।


“कम इन्साइड, आय वॉ’ न्ना शो यू सम्थिंग,”

अपने रूम की खिड़की से मिसेज़ राजपूत ने उन दोनों को कॉटिज के अंदर जाते देखा। कुछ देर तक मिसेज़ राजपूत अनिश्चित भाव से बैठी रहीं, उन्होंने एक नज़र अपनी व्हीलचेयर पर डाली फिर बेड व दिवार का सहारा लेते हुए अपने पैरों पर खड़ी हुईं और अपने काँपते पैरों से छोटे कदम लेते सीढ़ियों से ऊपर, अंश के बेडरूम की ओर बढ़ीं।

 

* * * *


“इट्स नो बिग डील। ओल्ड कॉटिज हाउसेज़ में सैलर होना आम बात है,”

अंश और अनंतिका क्लॉज़ेट की मिरर वॉल के सीक्रेट डोर-वे के सामने खड़े थे। अंश ने अपने कंधे उचकाते हुए बेपरवाही से कहा। अनंतिका ने ध्यान दिया कि अंश कैज़ूअल साउंड करने की भरसक कर रहा था फिर भी उसके चेहरे पर एक पासिंग सैकेंड के लिए आश्चर्य और चिंता के मिक्स्ड एक्स्प्रेशन उभरे, जिन्हें वो बहुत कुशलता से दबा गया।


“सॉरी टू डिसअपॉइंट यू, बट इट्स जस्ट एन ओल्ड सैलर, नॉट ए डंजन ऑर…नार्निया,”

अंश ने डिस्मिसिव टोन में कहते हुए मिरर वॉल वापस बंद करने को हाथ बढ़ाया, अनंतिका ने उसका हाथ बीच में ही थाम लिया।


“यू आर नॉट गेटिंग माय पॉइंट, अंश। मैंने पहली बार क्लॉज़ेट खोला तो बिल्ली अंदर नहीं थी। दूसरी बार खोला तो बिल्ली क्लॉज़ेट में थी और फ़्लोर पर ये निशान थे, यानी कोई सैलर का दरवाज़ा खोल कर अंदर आया था। मुझे दरवाज़ा खुलने की चरमराहट और यहाँ चलते कदमों की आवाज़ साफ़ सुनाई दी थी,”


“इस हिसाब से जो कोई भी यहाँ आया था…अगर, वाक़ई कोई यहाँ आया था, तो उसे अब भी नीचे सैलर में होना चाहिए,” अंश ने सीरीयस होते हुए कहा।


“अगर, इस सैलर से बाहर निकलने का कोई दूसरा रास्ता नहीं हुआ तो, येस। बट आय हैव ए स्ट्रॉंग गट फ़ीलिंग दैट दिस सैलर इज़ ए सीक्रेट पैसेज विद अनादर एग्ज़िट,”


“देयर इज़ ओन्ली वन वे टू फ़ाइंड आउट,”

अंश ने कहते हुए अनंतिका का हाथ थाम और मिरर वॉल का वुडन पैनल खोल कर अंदर सीढ़ियों पर उतर गया। दोनों ने अपने मोबाइल की फ़्लैश लाइट जला ली और सावधानीपूर्वक एक-एक कदम ध्यान से रखते हुए नीचे उतरने लगे। पत्थर की ऊँची सीढ़ियों के अलावा उस तहख़ाने की दीवारें भी मज़बूत और चिकने पत्थर की बनी हुई थीं। काफ़ी देर तक सीढ़ियाँ उतरने के बाद वो दोनों तहख़ाने में पहुँचे।


नीचे तहख़ाना काफ़ी बड़ा था, अनंतिका ने अंदाज़ा लगाया कि तहख़ाना कॉटिज के लिविंग एरिया के हूबहू, लगभग 12x18 फ़ीट का था। तहख़ाना तीन तरफ़ से चिकने पत्थर की दीवारों से बंद था, जिनमें एक रौशनदान भी नहीं था। वहाँ से निकलने का एकमात्र रास्ता वो सीढ़ियाँ थीं जिनसे अनंतिका और अंश नीचे उतरे थे। बंद तहख़ाना सीलन और बदबू से भरा हुआ था जिससे पुष्टि हो रही थी कि साफ़ हवा आने का वहाँ कोई ज़रिया नहीं था। 


तहख़ाना लगभग ख़ाली था, एक कोने में क़तार से, एक पर एक कर के रखे हुए पुराने, जंग लगे लोहे के बक्से, पुरानी किताबों की दो अलमारियाँ, और कुछ छुटपुट सामान था, इन सभी पर धूल की मोटी परत जमी हुई थी। अनंतिका ने फ़्लैश लाइट फ़र्श की ओर घुमाई, सामान के जैसे ही फ़र्श पर भी धूल की परत चढ़ी थी जिस पर सिर्फ़ अनंतिका और अंश के पैरों के निशान थे। वहाँ बिल्ली के पंजों के भी निशान नहीं थे, यानी यहाँ किसी के छुपे होने, या किसी के वहाँ से आने-जाने की सम्भावना शून्य थी। अनंतिका सोच में पड़ गयी।


“क्या सोच रही हैं आप?”


“कितनी अजीब बात है ना! अगर बनवाने वाले को सैलर बनवाना ही था तो उसका सीक्रेट पैसेज वो ग्राउंड फ़्लोर पर बने किचेन से दे सकता था। फ़र्स्ट फ़्लोर के क्लॉज़ेट से यहाँ लिविंग एरिया के नीचे तक, इतने लम्बे पैसेज की क्या ज़रूरत थी?”


“पता नहीं, बनवाने वाले ने कुछ सोच कर ही बनवाया होगा,”


“तुमने मुझे बताया था कि ये कॉटिज और तुम्हारा कॉटिज, दोनों बिल्कुल हूबहू एक जैसे बने हैं। तो क्या तुम्हारे बेडरूम क्लॉज़ेट से भी नीचे अंडरग्राउंड सैलर को जाता, कोई सीक्रेट पैसेज है?”


“नाह…मेरे बेडरूम में क्यों होगा सीक्रेट पैसेज?”


“हो सकता है हो, बस तुमको उसका पता ना हो,”


“नॉट पॉसिबल। आप घर आए थे तो ऊपर मेरे रूम में नहीं आए, वरना आपको ऐसा नहीं लगता। मुझे ये क्लॉज़ेट पसंद नहीं था, ना ही इतने बड़े क्लॉज़ेट की मुझे ज़रूरत थी, इसलिए मैंने क्लॉज़ेट तुड़वा दिया और उसकी जगह अपने रूम में ही छोटा सा आर्ट स्टूडीओ सेटअप कर लिया। अगर वहाँ कोई सीक्रेट पैसेज होता तो क्लॉज़ेट तुड़वाने पर उसका पता चल जाता,”


“मुझे अब भी समझ नहीं आ रहा कि बिल्ली क्लॉज़ेट में कैसे आयी। आख़िर वो छोटी सी बिल्ली खुद तो दरवाज़ा खोल कर अंदर नहीं आ सकती…और फ़र्श पर दरवाज़ा खुलने के निशान? अगर किसी ने दरवाज़ा नहीं खोला तो वो निशान कैसे बने?”


“हो सकता है आज सुबह जब आप सो रही थीं तब निखिल ने वो दरवाज़ा खोला हो और आपको इस बारे में बताने का मौक़ा ना मिला हो। बिल्ली इतनी छोटी है कि वो क्लॉज़ेट के किसी शेल्फ के कोने में छुप कर बैठी होगी, इसलिए पहली बार आपका ध्यान उस पर नहीं गया। फिर बिल्ली ने बंद क्लॉज़ेट से निकलने के लिए जब क्लॉज़ेट का दरवाज़ा खरोंचना शुरू किया तो उसकी आवाज़ सुन कर आपको दरवाज़ा खुलने और किसी के चलने का वहम हुआ,”


अंश की यह थ्योरी अनंतिका को बिल्कुल भी कन्विन्सिंग ना लगी लेकिन फ़िलहाल उसके पास कोई दूसरी ऑल्टर्नेट थ्योरी नहीं थी। रात के साथ ठंड बढ़ गयी थी और भूमिगत होने की वजह से तहख़ाने में सीलन के साथ-साथ ठंढ भी ज़्यादा थी। अनंतिका ने सिर्फ़ टू-पीस नाइट सूट पहना हुआ था, उसके शरीर में ठंड से रह-रह कर सिहरन उठ रही थी और उसके निप्पल बिल्कुल तन गए थे, जो उसके कॉटन नाइट सूट से साफ़ दिखाई दे रहे थे। अनंतिका का ध्यान गया कि उसकी ओर फ़्लैश लाइट किए अंश की नज़रें बार-बार उसके उभरे हुए निप्पल्स पर आ कर टिक रही हैं, अनंतिका ने खुद को पानी-पानी होता महसूस किया। उसने शर्म से झेंपते हुए दोनो हाथों से अपना सीना छुपा लिया। 


“ह…हमें वापस ऊपर चलना चाहिए,”


अंश ने बड़ी मुश्किल से अनंतिका की आँखों में देखते हुए कहा। अनंतिका ने सहमति में सर हिलाया और दोनों वापस ऊपर की ओर बढ़ गए। क्लॉज़ेट से निकलते हुए अनंतिका ने एक वुलेन स्टोल लेकर अपने जिस्म पर लपेट लिया। वहाँ से निकल कर दोनों नीचे लिविंग एरिया में पहुँचे। अनंतिका ने देखा बाहर उजाला हो रहा था। सुबह के छे बज रहे थे।


“आप रेस्ट करो, मैं आपके लिए कॉफ़ी बना कर लाता हूँ,”


कहते हुए अंश किचेन की ओर बढ़ गया और अनंतिका लिविंग एरिया में काउच पर ढ़ेर हो गयी। रात भर की थकान, हैंगओवर और स्टोल से शरीर को मिलती गर्माहट से अनंतिका की आँख लग गयी। किचेन में अंश के कॉफ़ी व्हिप करने की आवाज़ आ रही थी। अनंतिका को एहसास हुआ कि वो उठ कर किचेन की ओर बढ़ रही है।


अंश अनंतिका की तरफ़ पीठ किए खड़ा है और कॉफ़ी व्हिप करने में तल्लीन है। उसे अपने पीछे से अनंतिका के आने का एहसास नहीं होता है। अनंतिका पीछे से आकर अंश से लिपट जाती है। उसके तने हुए उभार, भाले की नोक की तरह अंश की पीठ में धँसे हुए हैं। अनंतिका की इस अप्रत्याशित हरकत से अंश चौंकता है लेकिन अनंतिका उसे प्रतिवाद करने का कोई मौक़ा नहीं देती। जिस तरह चंदन के वृक्ष से लिपटी अतृप्त नागिन अपने जिस्म में धधकती ऊष्मा शांत करने के लिए लहराती है, ठीक उसी तरह अनंतिका के हाथ अंश के सीने और उसके कसे हुए सिक्स पैक ऐब्स से होकर, उसकी डेनिम और अंडरवियर के अंदर सरक गए और अंश की दोनों टांगों के बीच नागिन की मज़बूत कुंडली की तरह जकड़ गए। अनंतिका अंश की पीठ पर अपनी तनी छातियाँ रगड़ते हुए उसकी गर्दन पर चुम्बन ले रही है, उसकी उँगलियाँ अंश की डेनिम के अंदर, अंश के तनाव पर ऊपर-नीचे फिर रही हैं। अंश के होंठों से एक उन्माद भरी सिसकारी निकलती है और उसकी आँखें स्वतः ही बंद हो जाती हैं। अनंतिका उसे बेतहाशा चूम रही है, उसकी उँगलियाँ अंश के पत्थर से भी सख़्त अंग पर तेज़ी से फिर रही हैं। पुरुषांग का यह तनाव, ऐसी सख़्ती, उसने निखिल के साथ कभी महसूस नहीं की। अनंतिका अपने दांत अंश की गर्दन पर गड़ा देती है, चूमते हुए अब वो उसे काट रही है। अनंतिका की उँगलियाँ बहुत तेज़ी से अंश के सख़्त अंग पर घर्षण कर रही हैं। अपनी हथेली पर वो अंश की फड़कती नसें महसूस कर सकती है। ऐसी तीव्र उत्तेजना, ऐसा उन्माद अनंतिका ने निखिल के साथ कभी महसूस नहीं किया। 


अचानक अनंतिका की नज़रें सामने उठती हैं। किचेन का बैकडोर खुला है और दरवाज़े कर खड़ा निखिल सुलगती नज़रों से उसे और अंश को घूर रहा है।


अनंतिका ने चौंक कर आँखें खोली। उसकी साँस बुलेट ट्रेन से भी तेज रफ़्तार से चल रही थी।


“सुबह का सपना…बाबा रे!”


“ऐसा क्या देख लिया सपने में?”


अंश हाथ में दो एक्स्प्रेसो कॉफ़ी मग लिए किचेन से वहाँ आया। अनंतिका काउच पर सीधी बैठ गयी। 


अंश से नज़रें मिलाने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसकी आँखों में देखते ही अंश को उसके सपने का पता चल जाएगा। निखिल का विचार ज़हन में आते ही अनंतिका को बेहद शर्मिंदगी का एहसास और अपराध बोध हो रहा था। हालाँकि, वास्तविकता में उसने कुछ भी ग़लत नहीं किया था…अब तक! 


“क्या हुआ? कॉफ़ी पसंद नहीं आयी?” अनंतिका को सोच में खोया देख कर अंश ने सवाल किया।


“कॉफ़ी इज़ ऑसम! इट्स नॉट अबाउट दैट,” अनंतिका ने बिना अंश से नज़रें मिलाए, कॉफ़ी की सिप लेते हुए कहा।


“देन? स्टिल वरीड अबाउट द सैलर?”


“इस कॉटिज में कुछ बहुत अजीब है। जब से हम यहाँ आए हैं, एक दिन भी ऐसा नहीं बीता जब कोई ना कोई मिसअड्वेंचर ना हुआ हो। मैंने तुम्हें बताया था ना कि जिस दिन यहाँ शिफ़्ट हुए थे उस रात डिलीवरी वाले वीयर्डो ने सीन क्रीएट किया था, फिर कल रात भी वो इस कॉटिज के पास्ट के बारे में अजीब बातें बताने लगा,”


“वॉट! कौन था वो? क्या कह रहा था?” अंश यूँ चौंकते हुए बोला जैसे उसने बिजली की नंगी तार छू ली हो।


“नाम याद नहीं आ रहा उसका…90s की चीप हिंदी मैगज़ीन जैसा कुछ था…सरस सलील…नो…मनोहर कहानियाँ…येस…मनोहर नाम था उसका!’


“मनोहर! क्या कह रहा था वो?”


अनंतिका ने देखा कि मनोहर का नाम सुनते ही अंश के जबड़े भिंच गए। उसने अंश को मनोहर की कही सारी बातें बताईं। 


“उसके अकॉर्डिंग, यहाँ के लोकल्स इसके बारे में जानते हैं, पर कोई इस बारे में बात नहीं करता। मैंने इंटरनेट पर भी सर्च किया लेकिन कुछ नहीं मिला,”

अनंतिका ने देखा कि एकाएक अंश काफ़ी टेन्स नज़र आ रहा है। मनोहर का नाम सुन कर अंश इतना क्यों चौंका? उसने जब पहली बार डिलीवरी बॉय वाली घटना के बारे में अंश को बताया था तब भी अंश के चेहरे पर कुछ ऐसे ही भाव थे, लेकिन उस समय अनंतिका डिलीवरी बॉय का नाम नहीं जानती थी। 


अभी अनंतिका के मुँह से मनोहर का नाम सुन कर अंश का बुरी तरह चौंकना अनंतिका को काफ़ी अजीब लगा।

“तुम जानते हो मनोहर को?”


“न।।नहीं। चकराता छोटी जगह है लेकिन इतनी भी छोटी नहीं कि हर किसी को जानूँ, वैसे भी मैं काफ़ी समय तक यहाँ था भी नहीं,”

अंश ने अनंतिका से नज़रें मिलाए बग़ैर, अपनी कॉफ़ी का एक सिप लेते हुए कहा। अनंतिका ने महसूस किया कि अंश उससे कुछ छुपाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन वो झूठ बोलने में काफ़ी कच्चा था। 


“लुक ऐट मी, अंश। लुक स्ट्रेट इंटू माय आइज़ एंड टेल मी द ट्रूथ,” अनंतिका ने सख़्त अन्दाज़ में सवाल किया। उसकी आँखें नज़रें चुराते अंश पर गड़ी हुई थीं। 

अंश ने गिव-अप करते हुए कहा।


“ऑलराइट! मनोहर को पूरा चकराता जानता है। ही इज़ ए नट केस। दिमाग़ ठिकाने नहीं है उसका। हमेशा कुछ ना कुछ बकवास करते ही रहता है, उसकी बातों पर कोई ध्यान नहीं देता,”


“मतलब इस कॉटिज के पास्ट के बारे में उसने जो कुछ भी कहा वो सब ग़लत था?”

अंश से जवाब देते ना बना, वो अनंतिका से नज़रें चुराते हुए अपनी कॉफ़ी सिप करने लगा। अनंतिका ने उसे घूरते हुए सख़्त आवाज़ में कहा।


“अंश, लुक ऐट मी,”


“मैंने पहले भी बताया था कि रोमेश दीवान और मेरे डैड काफ़ी गहरे दोस्त थे। दोनों ने ये दोनों कॉटिज साथ-साथ बनवाए और इसके बाद यहीं शिफ़्ट हो गए। मेरे डैड अपनी फ़ैमिली, यानी मॉम और मेरे साथ शिफ़्ट हुए, जबकि मिस्टर दीवान यहाँ अकेले रहने आए,”


“ऐसा क्यों?”


“प्रेरणा दीवान की सारी पढ़ाई-लिखाई हमेशा घर से दूर, बोर्डिंग स्कूल फिर डी.यू. हॉस्टल में रह कर हुई। इसका एक बड़ा रीजन उसकी माँ का ना होना और मिस्टर दीवान की प्लेबॉय वाली लाइफ़ स्टाइल था,”


“प्रेरणा की माँ…?”


“प्रेरणा काफ़ी छोटी थी जब उसकी माँ एकाएक ग़ायब हो गयीं। कोई नहीं जानता कि सच में क्या हुआ था। स्मॉल टाउन्स में धुआँ उठने के लिए कहीं आग का लगना ज़रूरी नहीं होता, यहाँ लोगों की बातें आग की तरह फैलती हैं, जिसमें झूठ का धुआँ इतना घना होता है कि सच पहचान पाना मुश्किल हो जाता है,”


“मतलब?”


“कुछ लोग कहते हैं कि मिस्टर दीवान की पत्नी उनकी ऐयाशियों से तंग आकर, उन्हें छोड़ कर चली गयीं। कुछ लोगों कहते हैं कि वो किसी दूसरे आदमी के साथ भाग गयीं, तो कुछ लोगों का मानना है कि अपनी बीवी से तंग आ कर मिस्टर दीवान ने ही उन्हें मार कर बॉडी ग़ायब कर दी। इन सारी बातों में जो भी सच था, वो सिर्फ़ मिस्टर दीवान ही जानते थे,”


“फिर?”


“यहाँ आने के बाद मिस्टर दीवान अक्सर बीमार रहने लगे। रात दिन शराब और औरतों में डूबे रहने वाले आदमी के साथ ऐसा होना कोई बड़ी बात नहीं। फिर धीरे-धीरे उनकी तबियत बिगड़ने लगी और एक दिन अचानक ही, हार्ट फेल होने से उनकी मौत हो गयी। उनकी मौत इसी कॉटिज की दूसरी मंज़िल पर हुई थी। मिस्टर दीवान का सारा सामान आज भी ऊपर वैसे ही पड़ा है, इसीलिए दूसरी मंज़िल बंद रहती है,”


“ओह! लेकिन इसमें पूरा फ़्लोर सील बंद करने वाली क्या बात है? कॉज़ ऑफ़ डेथ नैचरल था,”

अंश दो पल उसे देखता रहा, जैसे निर्णय लेने में दिक़्क़त महसूस कर रहा हो कि अगली बात किस तरह अनंतिका के आगे रखे। फिर झिझकते हुए बोला।


“यह बात सच है कि रोमेश दीवान की मौत हार्ट फेल होने से हुई थी लेकिन…संदिग्ध परिस्थितियों में,”


“क...कैसे संदिग्ध परिस्थिति?”


“प्रेरणा दीवान उस समय दिल्ली कॉलेज में थी। यहाँ कॉटिज में रोमेश दीवान अकेले रह रहे थे। पूरे दिन उनके साथ एक केयर टेकर होता था जो सुबह आ कर कॉटिज की देख-रेख और बाक़ी काम करता था और शाम को वापस अपने घर चला जाता था। इसके अलावा मिस्टर दीवान की बिगड़ती तबियत के कारण एक पर्मनेंट नर्स यहाँ कॉटिज में हमेशा उनके साथ रहती थी…नर्स मतलब हसीन और जवान नर्स, रोमेश दीवान की बेटी की उम्र की। लोगों का मानना है कि वो नर्स कम और रोमेश दीवान की ‘कीप’ ज़्यादा थी,”


“हम्म। काफ़ी रंगीले राजा थे ये मिस्टर दीवान। फिर?”


“रोज़ की तरह एक दिन सुबह केयर टेकर कॉटिज आया। आते ही उसका सबसे पहला काम होता था ब्रेकफ़ास्ट प्रिपेयर कर के मिस्टर दीवान को उनके रूम में सर्व करना। केयर टेकर जब ब्रेकफ़ास्ट ट्रे लेकर ऊपर पहुँचा तो मिस्टर दीवान के रूम का दरवाज़ा अंदर से बंद था। उसने दरवाज़ा नॉक कर के, फिर चिल्ला कर दरवाज़ा खुलवाने की कोशिश की लेकिन दरवाज़ा नहीं खुला। किसी अनहोनी की आशंका से घबरा कर केयर टेकर ट्रे वहीं छोड़ कर नर्स के पास भागा, जो मिस्टर दीवान के बेडरूम के ठीक बग़ल वाले कमरे में रहती थी, लेकिन नर्स अपने कमरे में नहीं थी, इन फ़ैक्ट, नर्स पूरे कॉटिज में कहीं नहीं थी,”


“स्ट्रेंज। देन?”


“यहाँ आस-पास आबादी तो है नहीं, केयर टेकर ने मेरे डैड को बुलाया। दोनों ने मिल कर दरवाज़ा तोड़ा तो सामने का नजारा देख कर दोनों के होश उड़ गए,”


“ऐ...ऐसा क्या देखा?”


“रोमेश दीवान की बॉडी बेड पर चारों खाने चित्त पड़ी हुई थी। उनकी आँखें और मुँह यूँ खुले थे जैसे ज़िंदगी के आख़री पल में कोई बहुत ही भयानक मंजर देखा हो, कुछ ऐसा जिसे देखते ही डर से उनका हार्ट फेल हो गया। मिस्टर दीवान के शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था, उनकी लाश बिस्तर पर नंगी पायी गयी थी,”


“व्होआ!!”


“दैट्स नॉट ऑल। बेड के चारों तरफ़, पूरे बेडरूम फ़्लोर पर सैकड़ों मोमबत्तियाँ जलाई गयी थीं जो तब तक पिघल कर बुझ चुकी थीं और पूरे फ़्लोर पर एक वैक्स कोट लेयर चढ़ी हुई थी। बेडरूम के फ़्लोर और वॉल्स पर किसी नाइफ़ या वैसी ही धारदार चीज़ से खरोंच कर ढेरों छोटे-बड़े सिम्बल्ज़ और आकृतियाँ बनायी गयी थीं, जैसे ब्लैक मैजिक, टोने-टोटके के लिए बनायी जाती हैं वैसे ही,”


“बुड्ढा ब्लैक मैजिक कर रहा था?”


“कौन जाने। लोगों का यही मानना है कि रोमेश दीवान की बढ़ती उम्र के साथ उसकी ठरक भी बढ़ रही थी, लेकिन बिस्तर के मैदान में बूढ़ा घोड़ा अपनी ज़्यादातर रेस हार रहा था…”


“हाहाहा।।अंश, दैट वज़ सो क्रास एंड चीज़ी! ऐसे कौन बात करता है यार, बूढ़ा घोड़ा एंड बिस्तर की रेस!” अनंतिका ने अंश की बात बीच में काटते हुए कहा। अंश बुरी तरह झेंप गया।


“अरे मुझे कुछ और समझ नहीं आया, कि कैसे ये बात रखूँ।”


“दैट्स ओके, आगे बताओ,”


“लोग यही कहते हैं कि रोमेश दीवान अपनी जवान नर्स के साथ ‘टैंट्रिक सेक्स’ और ब्लैक मैजिक प्रैक्टिस करता था अपनी…”


“…खोयी मर्दानगी वापस लाने के लिए,”  अनंतिका अंश को मॉक करते हुए बोली, अंश के गाल और कान शर्म से लाल हो गए। 


“ह…हाँ, वही!”


“तुम्हें इस ब्लैक मैजिक वाली बकवास पर यक़ीन है?”


“मेरे यक़ीन करने ना करने से क्या फ़र्क़ पड़ता है। कम से कम रोमेश दीवान का यही मानना था दैट ब्लैक मैजिक वज़ द ओन्ली सल्यूशन फ़ॉर हिज़ प्रॉब्लम,”


“इस केस की तो पुलिस इन्वेस्टिगेशन हुई होगी, पुलिस का क्या मानना था? पोस्ट मॉर्टेम रिपोर्ट?”


“मैडम, रियल लाइफ़ स्मॉल टाउन पुलिस ओ।टी।टी। थ्रिलर्स की पुलिस जितनी टैक्टिकल, मोटिवेटेड, एंड एफ़िशिएंट नहीं होती। पुलिस और पोस्ट मॉर्टेम रिपोर्ट के अकॉर्डिंग, ओल्ड एज एंड पूअर मेडिकल कंडिशन में सेक्शूअल इंटरकोर्स करने की वजह से मिस्टर दीवान के हार्ट पर एक्स्ट्रीम प्रेशर पड़ा जिसे वे झेल नहीं पाए और उनका हार्ट फेल हो गया,”


”और उस नर्स का क्या हुआ?”


“उसे किसी ने नहीं देखा। पुलिस के हिसाब से, सेक्स के दौरान मिस्टर दीवान की मौत से घबरा कर नर्स रातों-रात चकराता से हमेशा के लिए ग़ायब हो गयी। पुलिस ने भी उसे ढूँढने के लिए ज़्यादा माथापच्ची नहीं की लेकिन मीडिया में न्यूज़ ना आए इसके लिए और पुलिस केस फ़ाइल को बंद करवाने के लिए प्रेरणा दीवान को अच्छी-ख़ासी मशक़्क़त करनी पड़ी,”


अंश कह कर चुप हुआ। दोनों ने अपनी कॉफ़ी ख़त्म की। अंश की बात से अनंतिका सोच में पड़ गयी थी। उसने जब अंश की ओर देखा तो उसे महसूस हुआ कि अंश के पास अभी कहने के लिए कुछ और भी है, जिसे कहने में वो हिचकिचा रहा है। अनंतिका ने अपनी आइब्रोज़ उचकाते हुए अंश से सवाल किया।


“कम आउट विद इट, अंश। वॉट इज़ इट?”


“इस इन्सिडेंट के बाद से ये जगह बंद थी, लगभग एक साल पहले प्रेरणा की कम्पनी में काम करने के लिए बाहर से आया एक एम्प्लॉई अपनी फ़ैमिली के साथ यहाँ शिफ़्ट हुआ। हस्बैंड, वाइफ़ और उनकी छे-सात साल की एक बेटी। नाइस फ़ैमिली, गुड पीपल। कॉटिज का सेकंड फ़्लोर तब भी सील था। वो फ़ैमिली फ़र्स्ट फ़्लोर पर रह रही थी, वहीं जहां अभी आप दोनों हैं,” अंश ख़यालों में डूबते हुए बड़बड़ाया।


उसकी आवाज़ जैसे कहीं दूर से आ रही थी। फ़ैमिली और बच्ची की बात सुन कर अनंतिका संजीदा हुई।


“क…क्या हुआ उस फ़ैमिली के स..साथ?” अनंतिका को अपनी आवाज़ गले में फँसती महसूस हुई। 


“पता नहीं। एक रात वो लोग यहाँ थे, हंसते-खेलते, और अगली सुबह उनका कोई नामोनिशान नहीं था। ना वो फ़ैमिली यहाँ थी और ना ही उनका कोई सामान। सब कुछ ग़ायब हो गया था, जैसे वो यहाँ कभी थे ही नहीं, उनका एक-एक सामान यहाँ से ग़ायब था सिवाय…”

अंश कहते-कहते चुप हो गया। 


अनंतिका ने ज़ोर देकर पूछा।

“सिवाय?”


“उस छोटी बच्ची की डॉल के। वो डॉल ऊपर बेडरूम में फ़्लोर के बीचोंबीच रखी हुई थी,”


“ऐसा भी तो हो सकता है कि अचानक कोई इमर्जेन्सी आ गयी हो जिसके कारण देर रात वो फ़ैमिली आनन-फ़ानन अपना सामान पैक कर के यहाँ से चली गयी,”


“बिना किसी को इन्फ़ॉर्म किए? बिना किसी मेल या मैसेज के? जैसे दुनिया से ग़ायब हो गए हों?”


“टेल मी वन थिंग, तुमने ये क्यों कहा कि डॉल फ़्लोर पर रखी हुई थी? नॉर्मल एक्स्प्रेशन होता है गिरी हुई थी, पड़ी हुई थी, या छूट गयी थी। वाय, रखी हुई थी?”

अंश ने अनंतिका की आँखों में देखा। अंश का चेहरा और उसके लबों से निकलते अल्फ़ाज़, दोनों भावहीन थे।


“क्योंकि वो डॉल पड़ी हुई, या पीछे छूटी नहीं थी। वो फ़्लोर पर रखी हुई थी और उसके चारों तरफ़ वैसे ही सिम्बल और डिज़ाइन बने हुए थे जैसे ऊपर मिस्टर दीवान के बेडरूम फ़्लोर पर बने हुए थे। फ़र्क़ बस इतना था कि ये वाले डिज़ाइन खरोंच कर नहीं बल्कि चॉक से बनाए गए थे और देखने से लगता था जैसे किसी बच्चे ने काँपते हाथों से बनाए है,”


“क्या बकवास है ये?” कहते हुए अनंतिका के शरीर ने झुरझुरी ली।


“आय नो। यक़ीन करना मुश्किल है, मुझे भी नहीं होता यक़ीन। इसीलिए मैं इस बारे में कुछ भी कहने से बच रहा था। आप ने ही फ़ोर्स किया,”

अनंतिका ने अंश की बात का कोई जवाब ना दिया, उस घड़ी वो अपने ही ख़यालों में डूबी हुई थी।


“तो आज से हम अपना चकराता टूर स्टार्ट कर रहे हैं ना?”

अंश ने टॉपिक चेंज करने के इरादे से सवाल किया। अनंतिका ने सहमति में सर हिलाया लेकिन अंश साफ़ देख सकता था कि अनंतिका अब भी उन बातों में उलझी हुई है वो अंश ने उसे बतायी हैं।


“आप बेवजह ही परेशान हो रही हैं। बाहर की ताजी हवा खाएँगी तो सब ठीक हो जाएगा,” अंश ने अनंतिका की आँखों में देख कर मुस्कुराते हुए कहा, अनंतिका के होंठों पर एक फ़रमाइशी मुस्कान आयी।


“हवा बाद में खाएँगे, फ़िलहाल मैं ब्रेकफ़ास्ट प्रिपेयर करती हूँ,”


“आप ब्रेकफ़ास्ट करिए और फटाफट रेडी हो जाइए। मैं माँ के लिए खाना बना कर और फिर तैयार होकर आता हूँ,” कहते हुए अंश ने वहाँ से विदा ली। 

 

उसके जाने के बाद काउच पर लेटी अनंतिका के दिमाग़ में अंश की कही एक-एक बात फ़िल्म रील की तरह लूप में चलने लगी।


* * * *


सुबह के ग्यारह बज रहे थे और निखिल नहा-धो कर, रेडी हो कर नॉएडा सिटी सेंटर के बरिस्टा कॉफ़ी हाउस में बैठा याशिका का वेट कर रहा था। कुछ देर बाद उसे याशिका तेज कदमों से चल कर अपनी ओर आती दिखाई दी। दोनों ने एक-दूसरे को देख कर हाथ हिलाया।


“हाय निखिल, क्या बात है, मुझे ऐसे अर्जेंट क्यों बुलाया? सब ठीक तो है? अनी कहाँ है? तुम दोनों तो चकराता गए थे ना?” याशिका ने निखिल के सामने वाली चेयर पर बैठते हुए सवाल किया। 


याशिका अनंतिका के सबसे करीबी दोस्तों में से थी, उन चंद करीबी दोस्तों में जिसे निखिल पसंद करता था, वरना अनंतिका के अधिकतर दोस्त निखिल को किसी चिड़ियाघर से भागे, दुर्लभ प्रजाति के कोई जानवर नज़र आते थे जिनसे वो हमेशा दूरी बनाए रखता था। यही कारण था कि अनंतिका का बहुत बड़ा सोशल सर्कल होने के बावजूद निखिल काफ़ी कम लोगों से वाक़िफ़ था। 


“सब ठीक है याशिका। अनी चकराता में है, मैं ऑफ़िस के कम से वापस आया हूँ,” निखिल ने मुस्कुराते हुए कहा, लेकिन याशिका देख सकती थी कि निखिल उस मुस्कुराहट के आवरण से अपनी किसी परेशानी को ढकने की कोशिश कर रहा था।


“क्या बात है निखिल, बताओ मुझे,”


“इट्स अबाउट अनी, याशिका,”


“वॉट अबाउट अनी? आर यू टू ब्रेकिंग अप ऑर समथिंग?”


“नो याशिका! ऐब्सल्यूट्ली नॉट! वी…वी आर…हैपी टूगेदर। दिस इज़ ऐक्चूअली अबाउट अनी’ ज़ कंडिशन,”


“कंडिशन?”


“स्लीप परैलिसस एपिसोड्स,”


निखिल ने सिलसिलेवार ढंग से याशिका को चकराता पहुँचने से लेकर अब तक की सारी घटनाएँ बतायी, जिस में अंश का उसने कोई ज़िक्र नहीं किया। अंश व उससे सम्बंधित सभी घटनाओं को परे रख कर निखिल ने अनंतिका की ऐंग्ज़ायटी, उसके डिप्रेशन और मेंटल हेल्थ पर फ़ोकस करना ज़रूरी समझा।


पिछले दिन अनंतिका और अंश को स्टूडीओ में देख कर निखिल कुछ समय के लिए बुरी तरह विचलित हो गया था। उसने आवेश में कोई भी फ़ैसला लेने के बजाए, खुद को थोड़ा समय देना आवश्यक समझा। प्रेरणा को पर्सनल इमर्जेन्सी और अनंतिका को वर्क ट्रिप का एक्स्क्यूज़ देकर, निखिल चकराता से ड्राइव कर के वापस दिल्ली आया। 


अकेला और लम्बा सफ़र अक्सर उन फ़ैसलों की राहें आसान बनाता है जिनकी मंज़िल रोज़मर्रा की आम ज़िंदगी में हमें दिखाई नहीं पड़ती।


इस सफ़र के दौरान, जब निखिल का ग़ुस्सा और भावनात्मक आवेश शांत हुआ तब उसे भी यह एहसास हुआ कि वो अनंतिका से बेइंतहा प्यार करता है और अनंतिका के बग़ैर एक दिन भी अपनी ज़िंदगी नहीं गुज़ार सकता। कॉटिज में आने के पहले दिन से ही अनंतिका की मुश्किलें शुरू हुईं, यह सरासर निखिल की गलती थी कि उसने अनंतिका की बातों पर समय रहते ध्यान नहीं दिया। वो अपने काम में इतना उलझा रहा कि अनंतिका के अंतर्मन की उधेड़बुन पर उसका ध्यान ही नहीं गया, और इस मौक़े का फ़ायदा उठाया अंश ने! अंश जैसे ‘जेन-ज़ी’ के लौंडों का यही तो काम है, पहले लड़की का दोस्त होने का नाटक करो, उसे रोने के लिए अपने कंधे का सहारा दो और फिर मौक़ा मिलते ही लड़की के बिस्तर में घुस जाओ। लेकिन अनंतिका कोई निब्बी नहीं थी जो ऐसे ‘फ़कबॉई’ के झाँसे में आ जाए। निखिल को यक़ीन था कि अनंतिका ने अंश के साथ अब तक कोई भी हद पार नहीं की है…अब तक! लेकिन वो कमीना अंश तो अपना पूरा ज़ोर लगाए हुए था, हर हद तोड़ने की ख्वाहिश में। निखिल ठान चुका था कि वो अंश के मंसूबे किसी भी सूरत में कामयाब नहीं होने देगा।


याशिका रिलेशनशिप काउन्सलर और साइकोथेरपिस्ट थी, उससे बेहतर सलाह फ़िलहाल कोई और नहीं दे सकता था, यही सोच कर निखिल ने दिल्ली पहुँचते ही याशिका से कॉंटैक्ट किया और उसे मिलने बुलाया।


“जितना तुम्हारी बातों से में समझ पा रही हूँ, ऐसा लगता है कि अनंतिका के पास्ट से रिलेटेड कोई सप्रेस्ड मेमरी या ट्रॉमा है जो उस जगह पर जा कर बार-बार ट्रिगर हो रहा है, कुछ ऐसा, जिसे अनंतिका की याददाश्त तो भूल चुकी है लेकिन उस भूले हुए अतीत को उसका अंतर्मन संजोए बैठा है। इस से ज़्यादा डाइग्नोज़ करने के लिए अनंतिका के सेशन्स लेने पड़ेंगे, तभी कुछ पता चल पाएगा,” निखिल की सारी बातें धैर्यपूर्वक सुनने के बाद याशिका ने कहा। 


“तुम तो अनंतिका की बेस्ट फ़्रेंड हो, याशिका। तुम्हें उसके पास्ट के बारे में पता होगा ना? तुम लोग पहले रूममेट्स थे, क्या तुमने कभी अनंतिका को स्लीप परैलिसस एक्स्पिरीयन्स करते देखा है?”


याशिका कुछ पल चुप रही, जैसे दिमाग़ पर ज़ोर डालने की कोशिश कर रही हो। फिर, कुछ सोचते हुए बोली,

“मैं अनंतिका को सिर्फ़ पिछले पाँच सालों से जानती हूँ। उसकी पर्सनैलिटी इतनी वाइब्रेंट थी कि कब हम रूमीज़ से अच्छे फ़्रेंड्ज़ और अच्छे फ़्रेंड से बेस्ट फ़्रेंड्ज़ बन गए पता भी नहीं चला। तीन साल पहले जब तुम अनंतिका की लाइफ़ में आए और वो तुम्हारे साथ तुम्हारे फ़्लैट में शिफ़्ट हो गयी, तब तक मैंने कभी उसे स्लीप परैलिसस, डिप्रेशन या ऐंग्ज़ायटी में नहीं देखा,”


“आर यू इन्सिन्यूएटिंग कि अनंतिका की लाइफ़ में प्रॉब्लम्स मेरे आने से बढ़ी हैं?” निखिल चिढ़ कर आहत भाव से बोला।


“ऑल आय एम ट्राइंग टू से इज़, अनंतिका बहुत ही ख़ुशमिज़ाज, खुले दिल से जीने वाली और ज़िंदादिल लड़की है…बट ऑफ़ेन द वन हू शाइन्स ब्रायटेस्ट इज़ द वन विद द डीपेस्ट स्कार्स। हो सकता है कि अनंतिका की पिछली ज़िंदगी में वो ज़ख़्म हों जो अब स्लीप परैलिसस का नासूर बन कर निकल रहे हैं,”


“क्या तुम अनंतिका की पिछली ज़िंदगी के बारे में कुछ जानती हो? आख़िर वो तुम्हारी बेस्ट फ़्रेंड, तुम्हारी रूममेट थी,”


“मुझसे ज़्यादा समय उसने तुम्हारे साथ बिताया है निखिल, और तुम्हारा और अनंतिका का रिश्ता बेस्ट फ़्रेंड से ज़्यादा करीबी का है, क्या तुम उसके पास्ट के बारे में जानते हो?” याशिका ने पलट कर निखिल से सवाल किया जिसका जवाब उससे देते ना बना। कुछ देर चुप रहने के बाद निखिल ने कहा। 


“म…मैं नहीं जानता कुछ भी उसके पास्ट के बारे में। अपनी फ़ैमिली, अपने गुजरे कल के बारे में बात करने पर अनंतिका काफ़ी डिस्टर्ब हो जाती थी, इसलिए मैंने कभी उसे कुरेदा नहीं। उसने बस इतना बताया था कि जब वो कॉलेज में थी तभी उसकी पूरी फ़ैमिली एक रोड ऐक्सिडेंट में ख़त्म हो गयी थी, जिसके बाद वो दुनिया में अकेली थी,”


“इग्ज़ैक्टली! मुझे भी अनंतिका के बारे में सिर्फ़ इतना ही पता है, और सिर्फ़ और तुम क्या, अनंतिका का पूरा फ़्रेंड सर्कल उसके पास्ट के बारे में सिर्फ़ यही एक बात जानता है। पाँच साल पहले अनंतिका दिल्ली आयी, अपने पेंटिंग के एक्स्ट्राऑर्डिनेरी टैलेंट, अपनी वाइब्रेंट पर्सनालिटी, और एक्सेलेंट सोशल स्किल से उसने देखते ही देखते अपना एक बड़ा सोशल सर्कल क्रीएट कर लिया लेकिन इससे पहले अनंतिका कौन थी, कहाँ थी, क्या कर रही थी और उसके साथ क्या हुआ ये कोई नहीं जानता,” 


“ऐसा कैसे हो सकता है? कोई तो होगा जो पाँच साल पहले की अनंतिका को जानता हो!”


“है ना! खुद अनंतिका। तुम्हें अनंतिका से बात करनी होगी। अपने प्यार से उसे विश्वास दिलाना होगा कि वो तुम्हें अपने साथ-साथ अपने अतीत का भी भागीदार बना सकती है,”


“ऐसी सिचूएशन में जब अनंतिका पहले ही मानसिक तनाव से ग्रस्त है उससे ये सवाल करना ग़लत होगा। जब नॉर्मल कंडिशन्स में पास्ट से जुड़ा कोई भी सवाल उसे इतना डिस्टर्ब कर देता है तो सोचो अभी के हालात में ये कितना घातक होगा। हो सकता है कि अनंतिका की तकलीफ़ कम होने के बजाए और बढ़ जाए,”


“मैंने इसी लिए कहा निखिल, अनंतिका को काउन्सिलिंग सेशन्स की ज़रूरत है। जब तक तुम उसे यहाँ मेरे पास नहीं लाओगे, मैं तुम्हारी और अनंतिका की कोई मदद नहीं कर पाऊँगी,”


निखिल सोच में पड़ गया। प्रेरणा की कम्पनी का काम निखिल के करियर ग्रोथ के लिए काफ़ी क्रूश्यल था, लेकिन अनंतिका से बढ़ कर नहीं था। उसने फ़ैसला किया कि वापस चकराता पहुँच कर वो प्रेरणा से बात करेगा और यह असाइनमेंट छोड़ देगा, इसके बाद उसकी फ़र्म अगर उसे नौकरी से भी निकाल दे तो उसे परवाह नहीं। अब वो अनंतिका की बात हल्के में लेने की गलती नहीं करेगा, वो चकराता छोड़ देगा और अनंतिका को लेकर वापस दिल्ली आ जाएगा। याशिका से विदा लेकर निखिल फ़ौरन वापस चकराता के लिए निकल गया। 


* * * *


अनंतिका ब्रेकफ़ास्ट बना रही थी जब कॉटिज की डोरबेल बजी। 


“ये अंश को गए अभी एक घंटा भी नहीं हुआ, इतनी जल्दी वापस कैसे आ गया?” अनंतिका खुद में बड़बड़ाते हुए दरवाज़े की ओर बढ़ी।


“अंश, तू इतनी जल्दी आ गया यार, अभी तो मुझे टाइम…ओह…हेल्लो,” एक साँस में बोलते हुए दरवाज़ा खोलती अनंतिका ने जब सामने अंश के बजाए प्रेरणा दीवान को खड़े देखा तो उसे एक पल को झटका लगा।


“हाय अनंतिका। आय एम सॉरी, आय जस्ट शोड अप अनइन्फ़ॉर्म्ड। इज़ दिस ए बैड टाइम?” प्रेरणा ने सहज भाव से मुस्कुराते हुए सवाल किया। 

प्रेरणा को देखते ही अनंतिका के दिमाग़ में सुबह अंश की कही सभी बातें एक बार फिर लूप में घूम गयीं लेकिन उसने फ़ौरन ही खुद पर क़ाबू पाया। 


“नो! नॉट एट ऑल…प्लीज़ कम इन।,” अनंतिका ने ज़बरदस्ती अपने चेहरे पर मुस्कान लाते हुए कहा। 

प्रेरणा कॉटिज के अंदर कमंद रखने से पहले एक पल ठिठकी। उसकी नज़रें अनंतिका की नज़रों से मिली, दोनों के होंठों पर एक असहज मुस्कान आयी। 


“आय वज़ जस्ट प्रिपेयरिंग द ब्रेकफ़ास्ट, साथ में करते हैं?”


“ओ प्लीज़ डोंट बॉदर…”


“अरे इस में बॉदर होने वाली कोई बात नहीं। मुझे ऐसे भी अकेले बैठ कर खाना पसंद नहीं, अच्छा हुआ आप आ गयीं, मुझे कम्पनी मिल जाएगी,” अनंतिका ने किचेन की ओर बढ़ते हुए कहा। 


प्रेरणा सहमति में सिर्फ़ मुस्कुराई। अनंतिका ने गौर किया कि प्रेरणा कॉटिज में हर एक चीज़ को बहुत गौर से देख रही है, जैसे उसके दिमाग़ में कुछ चल रहा हो। आख़िर क्यों आयी थी वो? वो भी निखिल की ग़ैरमौजूदगी में!


अनंतिका ने जल्दी से बटर टोस्ट, ऑम्लेट, सॉसिजेस और कॉफ़ी तैयार किए और ब्रेकफ़ास्ट ट्रे लेकर लिविंग एरिया में आयी। प्रेरणा वहाँ नहीं थी। अनंतिका ने ट्रे टेबल पर रखी और प्रेरणा को आवाज़ लगाई।


“प्रेरणा…प्रेरणा,” उसे कोई जवाब ना मिला।

कॉटिज का दरवाज़ा अंदर से बंद था, यानी प्रेरणा वहाँ से गयी नहीं थी। अनंतिका सोच में पड़ गयी। 


“आख़िर कहाँ जा सकती है?”

अनंतिका ने अपने स्टूडीओ में देखा, प्रेरणा वहाँ नहीं थी। 


लिविंग एरिया और किचेन के अलावा ग्राउंड फ़्लोर पर एक और कमरा था, अनंतिका ने वहाँ भी देखा लेकिन प्रेरणा वहाँ नहीं थी। क्या प्रेरणा कॉटिज में ऊपर गयी थी? अपने दिमाग़ में घुमड़ते सैकड़ों सवाल लिए अनंतिका ऊपर फ़र्स्ट फ़्लोर पर पहुँची। सैकेंड़ फ़्लोर जाने वाला स्टेयर-वे पहले की तारक लॉक्ड था। अनंतिका अपने बेडरूम में आयी, बेडरूम ख़ाली था। 


उलझन में डूबी अनंतिका वापस जाने को पलटी लेकिन अचानक कुछ सोच कर उसके कदम ठिठक गए। उसका ध्यान क्लॉज़ेट पर गया। क्या प्रेरणा क्लॉज़ेट के पीछे सैलर में गयी थी? अनंतिका की कनपट्टियाँ सनसनाने लगीं। अनंतिका भारी कदमों से क्लॉज़ेट की ओर बढ़ी। उसने क्लॉज़ेट का पल्ला खोला ही था कि नीचे से प्रेरणा की आवाज़ आयी।


“अनंतिका…अनंतिका!”

अनंतिका ने चैन की साँस ली और क्लॉज़ेट का दरवाज़ा बंद कर के नीचे आ गयी। प्रेरणा काउच पर बैठी थी और उसे देख कर मुस्कुरा रही थी लेकिन उसके चेहरे के भाव देख कर साफ़ पता लग रहा था कि वो अपनी असहजता छुपाने की कोशिश कर रही है।


“मैं आपको ढूँढते हुए ही ऊपर गयी थी,”


“आय एम सो सॉरी, निखिल से आपकी पेंटिंग्स के बारे में इतनी तारीफ़ सुनी है कि मुझसे रहा नहीं गया। मैं आपके स्टूडीओ में बिना बताए ही चली गयी,”


“दैट्स ऑलराइट, बट, मैं आपको ढूँढते हुए सबसे पहले स्टूडीओ में ही गयी थी, आप वहाँ नहीं थीं,”


“ऐसा कैसे हो सकता है? मैं तो वहीं थी, आप ने शायद मुझे देखा नहीं होगा,”


“मैंने आपका नाम पुकारा था,”


“ओह…राइट! मैं अटैच्ड वॉशरूम में गयी थी कुछ देर के लिए। आय’ म श्योर आप उसी टाइम स्टूडीओ में आयी होंगी,”

अनंतिका ने एक औपचारिक मुस्कान के साथ सहमति में सर हिलाया और प्रेरणा को कॉफ़ी व ब्रेकफ़ास्ट सर्व किया। 


“आप वाक़ई कमाल की पेंटर हैं, अनंतिका। आपकी बनाई पेंटिंग्स बिल्कुल रियल लगती हैं,”


“थैंक यू,” अनंतिका औपचारिकता वश मुस्कुराई। 


“ऐक्चूअली, निखिल ने जब पर्सनल इमर्जेन्सी का बोल कर लीव माँगी तो मैं थोड़ी वरीड हो गयी। कॉल पर भी निखिल बहुत परेशान साउंड कर रहे थे, मैं बस जानना चाहती थी कि सब ठीक तो है, इसीलिए चली आयी,”


अनंतिका की बॉडी लैंग्वेज एक पल को टेन्स हुई, चेहरे पर आश्चर्य के भाव आने को थे लेकिन उसने फ़ौरन खुद पर क़ाबू पाया। वो नहीं चाहती थी कि प्रेरणा को उसके हाव-भाव से कोई अंदाज़ा लगे।


“दिल्ली में निखिल की आंटी की तबियत अचानक ख़राब हो गयी है। निखिल के अलावा आंटी को देखने वाला और कोई भी नहीं, इसलिए उसे जाना पड़ा,”


“ओह! आय होप शी गेट्स बेटर एंड आय बेटर गेट गोइंग,” प्रेरणा ने कॉफ़ी ख़त्म करते हुए कहा।

अनंतिका ने देखा कि उसने ब्रेकफ़ास्ट को हाथ भी नहीं लगाया है।


“बट यू हैवेंट ईटेन येट,”


“आय एम नॉट हंग्री, बट थैंक्स फ़ॉर द जेस्चर,” प्रेरणा उठते हुए बोली।

अनंतिका को प्रेरणा का बिहेव्यर बहुत अजीब लगा था। इस से पहले अनंतिका और प्रेरणा की औपचारिक मुलाक़ात और जान-पहचान हाउस वॉर्मिंग पार्टी के दौरान हुई थी जो कि काफ़ी संक्षिप्त थी, उस समय अनंतिका ने प्रेरणा के लिए कोई राय या धारणा नहीं बनाई थी लेकिन आज उससे रूबरू मिलने के बाद, अनंतिका को प्रेरणा फूटी आँख पसंद नहीं आयी थी और उसे यक़ीन था कि प्रेरणा भी उसके बारे में यही ख़यालात रखती है, हालाँकि, कॉटिज के फ़्रंट गेट तक, एक-दूसरे से विदा लेते हुए, दोनों लड़कियों के चेहरे पर प्लास्टिक स्माइल चिपकी हुई थी। 


“अगर आपको कोई भी दिक़्क़त हो तो प्लीज़ मुझसे कहिएगा। आप हमारे गेस्ट हैं, आपका ख़्याल रखना हमारी रेस्पॉन्सिबिलिटी है,”


“आप दिक़्क़त का कोई मौक़ा ही नहीं देतीं,”


“सी यू अगेन, ब’ बाय,”


“बाय,”

अनंतिका की तरफ़ पीठ घुमाते ही प्रेरणा के चेहरे पर चिपकी प्लास्टिक स्माइल फ़ौरन ग़ायब हो गयी। प्रेरणा का खूबसूरत चेहरा बेहद सख़्त और सर्द नज़र आने लगा। लम्बे और तेज कदमों से चलते हुए प्रेरणा कॉटिज के आयरन गेट तक पहुँची। गेट खोल कर बाहर निकलते ही उस तरफ़ आता अंश प्रेरणा से टकराया।


अंश और प्रेरणा की नज़रें एक-दूसरे से मिलीं। दोनों के चेहरों पर एक साथ कई भाव आए और गुजर गए, फिर दोनों एक-दूसरे को नज़रअन्दाज़ करते हुए यूँ अपने रास्ते पर बढ़ गए जैसे दो नितांत अजनबी हों। 


प्रेरणा को चलता करने के बाद भी अनंतिका के दिमाग़ में भूचाल आया हुआ था। निखिल ने प्रेरणा से झूठ बोला इससे उसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता लेकिन निखिल ने उससे झूठ बोला! ऐसा आज तक नहीं हुआ था कि निखिल अनंतिका से कोई छोटी से छोटी बात भी छुपाए, फिर आज उसे ये सफ़ेद झूठ बोलने की ज़रूरत क्यों पड़ी? क्या निखिल वाक़ई दिल्ली गया था या कहीं और? तमाम तरह के ख़्याल अनंतिका के दिमाग़ में उमड़ रहे थे। उसका ज़ी चाहा कि निखिल को कॉल लगाए और उससे सच दरयाफ़्त करे, लेकिन उसने ये विचार त्याग दिया। वो देखना चाहती थी कि निखिल उससे इस बाबत क्या कहता है। क्या निखिल उसे वापस लौट कर सच बताता भी है या इसी खुशफ़हमी में रहता है कि उसका पैंतरा चल गया।


निखिल की यह खुशफ़हमी तो तभी हवा हो जाएगी जब वो प्रेरणा से मिलेगा और उसे पता चलेगा कि प्रेरणा उसकी बाबत पूछते हुए अनंतिका के पास आयी थी। आख़िर क्यों आयी थी प्रेरणा? क्या सिर्फ़ ये देखने कि निखिल ने जो रीज़न देकर लीव ली है वो सही है या नहीं? या निखिल का यहाँ ना होना उसके लिए एक मौक़ा था यहाँ आने का, अपने किसी ख़ास मक़सद के लिए? कितने अजीब ढंग से कॉटिज में ग़ायब हो गयी थी प्रेरणा! अनंतिका को पक्का यक़ीन था कि प्रेरणा ने झूठ बोला था, वो वॉशरूम में नहीं थी। तो फिर कहाँ गयी थी प्रेरणा? ऐसे तमाम सवाल अनंतिका के दिमाग़ में विस्फोट कर रहे थे, जो एक बार फिर डोरबेल बजने के साथ थमे।


इस बार दरवाज़े पर अंश था। 

“ये प्रेरणा दीवान यहाँ क्या कर रही थी?”


“यही तो मैं भी सोच रही हूँ,”

अंश- ‘वॉट आर द ऑड्ज़, आज सुबह ही हम इसके बारे में बात कर रहे थे और ये यहाँ चली आयी।’


अंश ने अंदर आते हुए कहा। अनंतिका को भी यह बात खटकी थी लेकिन फ़िलहाल वो इन तमाम झंझटों से एस्केप चाहती थी। अंश को लिविंग एरिया में बिठा कर अनंतिका रेडी होने ऊपर बेडरूम में चली गयी। 


* * * *


अंश की रॉयल एन्फ़ील्ड थंडरबर्ड पर सवार होकर अंश और अनंतिका कॉटिज से निकले। कुछ दूर आगे जा कर दोनों मेन रोड पर आए ही थे कि उन्हें पुलिस की बैरिकेडिंग दिखाई दी। 


“क्या हुआ है?”


“पता नहीं, शायद कोई ऐक्सिडेंट। पुलिस रूट डाईवर्ट कर रही है,”


अंश ने जैसे ही डाईवर्ज़न की तरफ़ अपनी बाइक घुमाई अनंतिका के मुँह से ज़ोर की सिसकारी निकल गई। उसकी नज़र सड़क पर पड़ी उस लाश पर पड़ गयी थी जिसे पुलिस वाले ऐम्ब्युलेन्स में लदवा रहे थे।


“मनोहर! ये तो मनोहर है,” अनंतिका लगभग चीखते हुए बोली, अंश ने फ़ौरन ब्रेक लगाया।


“वॉट?’”


“हाँ ये मनोहर ही है, कल रात जब ये डिलीवरी करने आया था तो इसने यही कपड़े पहने हुए थे, और मैं इसकी साइकिल भी पहचानती हूँ,” अनंतिका ने सड़क किनारे टूटी पड़ी साइकिल की ओर इशारा करते हुए कहा। 


“लगता है कल रात आपको खाना डिलीवर कर के वापस लौटते टाइम इसे इधर से गुजरती किसी तेज रफ़्तार ट्रक ने उड़ा दिया,”

अनंतिका को लाश देख कर उबकाई आ रही थी, जिसे वो बहुत मुश्किल से क़ाबू किए हुए थी। वहाँ मौजूद पुलिस इंस्पेक्टर की चील जैसी निगाहें अंश और अनंतिका पर ही टिकी हुई थीं। उस इंस्पेक्टर की पर्सनैलिटी अनंतिका को काफ़ी इंटिमिडेटिंग और नेगेटिव लगी। इंस्पेक्टर की उम्र चालीस-पैंतालीस के बीच होगी, क़द-काठी ऊँची और मज़बूत थी, उसके कंधे तक लम्बे बाल खोपड़ी से यूँ चिपके हुए थे जैसे ग्रीज़ लगा कर चिपकाए गए हों, नज़रों पर धूप का काला चश्मा था जो उसकी चील और बाज के चोंच जैसी लम्बी और मुड़ी हुई नाक पर टिका हुआ था, होंठों के बीच सिगरेट दबी, सुलग रही थी। उसके चेहरे से ही काइयाँपन और मक्कारी टपक रहे थे। हाथ में थमा पुलिसिया डंडा चकरी की तरह गोल नचाता हुआ वो अंश और अनंतिका की दिशा में बढ़ा ही था कि उसे पीछे से एक कॉन्स्टेबल ने आवाज़ दी। इंस्पेक्टर जैसे ही कॉन्स्टेबल की ओर पलटा, अंश ने अनंतिका से कहा।


“हमें यहाँ से निकलना चाहिए वरना पुलिस फ़ालतू में परेशान करेगी,”


“टेक मी बैक टू द कॉटिज, अंश। आय’ म नॉट फ़ीलिंग गुड,”


“आप बेवजह स्ट्रेस ले रही…”


“प्लीज़ अंश! कैन वी जस्ट गो बैक?”


“श्योर!’ “


अंश ने बाइक वापस कॉटिज की ओर मोड़ दी। कॉन्स्टेबल से बात ख़त्म कर के इंस्पेक्टर जब वापस पलटा तब तक बाइक उससे दूर जा चुकी थी। सिगरेट के धुएँ के छल्ले हवा में उड़ाता हुआ इंस्पेक्टर बाइक को नज़रों से ओझल होते देखता रहा।


कॉटिज वापस पहुँच कर अनंतिका ने अपने लिए एक लार्ज पटियाला पेग बनाया और एक ही साँस में ग्लास ख़ाली कर दिया। 


“मनोहर ने कहा था ये कॉटिज मनहूस है, यहाँ मौत बसती है।।और।।और, यहाँ से लौटते हुए वो खुद ही मारा गया,”


“मनोहर की मौत ऐक्सिडेंट है, उसका आपसे…ईवेन इस कॉटिज से भी कोई कनेक्शन नहीं। यू आर ओवररीऐक्टिंग,”

अनंतिका ने कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि उसका फ़ोन बजा, कॉल याशिका का था।


“हे याशि! कैसी है बेब्स?”


“मैं ठीक हूँ अनी…बट आय’ म रियली वरीड अबाउट यू। तूने ड्रिंक की हुई है? सुबह-सुबह?”याशिका की गम्भीर और परेशान आवाज़ कॉल पर सुनाई दी। 


“अरे चिल्ल स्वीटहार्ट! मैं बिल्कुल ठीक हूँ, मुझे भला क्या होगा?”


“अगर तू ठीक होती तो तेरी फ़िक्र में बदहवास निखिल यहाँ मुझसे मिलने ना आया होता!”


“वॉट!? निखिल दिल्ली तुमसे मिलने गया था?”

याशिका ने अपने और निखिल के बीच हुई सारी बातें सिलसिलेवार ढंग से अनंतिका को बताईं।


“निखिल के जाने के बाद मैं उलझन में थी कि तुझे कॉल कर के ये सब बताऊँ या नहीं, पर तू मेरी बेस्ट फ़्रेंड है अनी। निखिल तेरे पास्ट के बारे में मुझसे पूछता रहा लेकिन मैंने गौरव के बारे में उसे कुछ नहीं बताया,”


“गौरव!” अनंतिका की आवाज़ यूँ खोखली हो गयी जैसे उसने किसी मुर्दे को कब्र फाड़ कर निकलते देख लिया हो। गौरव उसे लिए वही था, उसके अतीत की कब्र में दफन एक मुर्दा जो अनायास ही आज ज़िक्र आने से ज़िंदा होता प्रतीत हुआ। 

“गौरव मेरे बीते हुए भयानक कल का वो बदनुमा दाग है जिसे मिटाने की कोशिश में जैसे मेरा ही वजूद मिट गया, याशि। अपने अतीत के अंधकार को मैं अपना वर्तमान और भविष्य अंधेरा नहीं करने दूँगी,” अनंतिका ने काँपती और भर्राई आवाज़ में कहा। 


“मैं भी वही कह रही हूँ, अनी। क़िस्मत ने निखिल के रूप में तुझे अपनी लाइफ़ संवारने का सैकेंड चान्स दिया है, इसे गँवाना मत। आज की डेट में जब रिलेशनशिप्स बेडरूम से कोर्टरूम पहुँचने में महज़ चंद महीने लगते हैं, किसी को अपना ‘फ़ॉरएवर’ बनाने वाला कोई मिले तो उसके लिए अपनी स्वच्छंदता और स्वतंत्रता की कभी ना मिटने वाली ललक छोड़ देनी चाहिए,”


अनंतिका की आँखों से आंसुओं की दो मोटी बूँदें गिरी। उसने कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया। वहाँ बैठा अंश सब कुछ शांति से सुन रहा था। 


उसने अनंतिका से सवाल किया।

“आर यू ओके? ये गौरव कौन है?”


“अंश, यू शुड लीव नाओ,” अनंतिका ने उचाट और सर्द भाव से कहा। 

उस मौक़े की नज़ाकत को देखते हुए अंश ने कुछ कहना ठीक ना समझा। वो चुप चाप उठ कर वापस अपने घर चला गया। अंश के जाने के बाद अनंतिका ने निखिल को कॉल किया। कुछ देर रिंग जाने के बाद कॉल पिक हुआ।


“कहाँ हो अकाउंटेंट साहब?”भावनाओं के आवेग को सम्भालने की असफल कोशिश करती अनंतिका ने भर्राई आवाज़ में सवाल किया।


“सब कुछ छोड़ कर तुम्हारे पास आ रहा हूँ अनी! शाम तक पहुँच जाऊँगा। कल मैं प्रेरणा से बात कर के ये असाइनमेंट ड्रॉप कर दूँगा, इन फ़ैक्ट, मैं अपनी फ़र्म से भी रिज़ाइन कर रहा हूँ। वी हैव इनफ़ सेविंग्स टू सर्वाइव फ़ॉर कपल ऑफ़ मन्थ्स, बाद का बाद में देखेंगे। अभी मुझे सिर्फ़ तुम चाहिए हो…और तुम्हारी ख़ुशी जिसमें है हम वही करेंगे,”


“ड्राइव सेफ़। जल्दी आओ।,”

अनंतिका ने कॉल डिसकनेक्ट कर दी और फिर जाने कितनी ही देर तक फूट-फूट कर रोती रही। जिन उम्मीदों और ऊर्जा के साथ वो यहाँ आयी थी वो सब बर्बाद हो चुके थे। अब वो वाक़ई इस मनहूस जगह से, और अंश से हमेशा-हमेशा के लिए दूर चली जाना चाहती थी।


दोपहर बारह बजे से शाम साढ़े सात बजे तक का समय किसी पहाड़ जैसा बीता। इस बीच अंश ने अनंतिका को दो-तीन पर कॉल किया लेकिन अनंतिका ने कॉल देख कर भी नहीं रिसीव किए। अंश ने टेक्स्ट ड्रॉप किया जिन्हें अनंतिका ने अनदेखा कर दिया। दिल्ली में लगभग हर कुछ महीने पर अनंतिका अपने लुक्स चेंज कर देती थी। कभी वो बाल लम्बे रखती तो कभी बिल्कुल छोटे कटा लेती, हर बार नया हेयर कलर ट्राई करती, नेल पेंट से लेकर अपने कपड़ों के शेड्स और पैटर्न तक सब कुछ बिल्कुल चेंज कर देती थी। चकराता आने के बाद से उसने अपना लुक चेंज नहीं किया था, लेकिन आज वो निखिल को सर्प्राइज़ देने के मूड में थी।


शाम साढ़े सात बजे कॉटिज की डोरबेल बजते ही अनंतिका ने भाग कर दरवाज़ा खोला। अनंतिका का लुक देख कर एक पल को निखिल का दिल धड़कना भूल गया। आम तौर पर क्रॉप टॉप और हॉट पैंट्स में रहने वाली अनंतिका आज ट्रेडिशनल सूट में थी, गले में सोने की पतली चेन जिसके लॉकेट में एमरल्ड जड़ा हुआ था, कानों में झुमके, माथे पर छोटी सी काली बिंदी, आँखों में काजल, नाक में नोज़ पिन और सेप्टम रिंग, दोनों कलाइयों में सोने की चूड़ियाँ और पैरों में पायल, इन सबके कॉंट्रैस्ट में उसने अपने बाल पर्पल कलर कर लिए थे और आम-तौर पर अपने बाल खुले रखना पसंद करने वाली अनंतिका ने बालों को हाई बन की शक्ल में बांधा हुआ था। इस पूरे आउट्लुक में अनंतिका ऐसी बला की खूबसूरत लग रही थी कि निखिल खुद पर क़ाबू ना रख पाया। 


निखिल ने दरवाज़े पर ही अनंतिका को खींच कर अपनी बाहों में कस कर भींच लिया और उसे बेतहाशा चूमने लगा। अनंतिका ने प्रतिवाद ना किया, बल्कि उसने भी निखिल का चेहरा अपनी दोनों हथेलियों में भरते हुए उस पर चुम्बन की झड़ी लगा दी।


निखिल के गले व गर्दन पर निबल करते हुए अनंतिका ने उसका दायां ईयर लोब अपने होंठों के बीच दबा लिया और दांतों से हौले से चुभलाने लगी।


“अकाउंटेंट साहब मेरे कपड़े यहीं उतारना चाहेंगे या ऊपर बेडरूम में चल कर?” अनंतिका निखिल के कान में फुसफुसाई।


“ऐक्चूअली, आय हैव ए बेटर आइडिया। एक जगह है जहां मैं तुम्हें ले जाना चाहता हूँ,” निखिल अनंतिका के दोनों उरोज अपनी हथेलियों में भर कर मसलते हुए बोला। 


“पागल हुए हो क्या! सात घंटे ड्राइव कर के आए हो, कल भी पूरी रात ड्राइव किया, अब कहीं नहीं जाना। कल चलेंगे जहां भी चलना है। अभी तो अंदर आ के, कुंडी लगा लो सैयां, तुमको जन्नत दिखाती मैं,” अनंतिका ने शरारती भाव से निखिल के क्रॉच पर अपनी उँगलियाँ फिराते हुए कहा।


“नोप! अभी चलेंगे। कल यहाँ से बोरिया-बिस्तर बांध के निकलना है,”

निखिल ने अनंतिका के प्रतिवाद करने पर उसे अपनी गोद में उठा लिया और वैसे ही चूमते हुए बाहर खड़ी गाड़ी तक ले गया। 


अनंतिका और निखिल गाड़ी में सवार हुए, निखिल ने गाड़ी आगे बढ़ा दी। अनंतिका जानती थी कि बग़ल वाले कॉटिज में, अपनी बेडरूम विंडो पर खड़ा अंश लगातार उन्हें देख रहा है लेकिन उसने एक बार भी उस ओर नज़र नहीं उठाई।


अनंतिका का दिल एक बार को यह सोच कर डूबा कि उसे फिर उसी रास्ते से गुजरना पड़ेगा जहां उसने सुबह मनोहर की डेड बॉडी देखी थी, लेकिन निखिल ने उस तरफ़ ना जाकर जंगल की ओर जाते कच्चे रास्ते की तरफ़ गाड़ी घुमा दी। अनंतिका ने चैन की साँस ली। 


आसमान में घने काले बादल छाए हुए थे, उस पर से घने होते जंगल का अंधेरा। ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर निखिल की गाड़ी हिचकोले खा रही थी। 


“निखिल बताओ ना, इस बियाबान में कहाँ जा रहे हैं हम?”

एक हाथ से स्टेयरिंग सम्भालते हुए, दूसरा हाथ निखिल ने बग़ल की सीट पर बैठी अनंतिका की गर्दन में डाला और उसे अपने पास खींच कर उसके होंठ अपने होंठों में भर कर चूसने लगा। अनंतिका ने खुद को पिघलता महसूस किया। बहुत मुश्किल से निखिल से खुद को अलग कर पायी वो।


“क्या कर रहे हो, ऐक्सिडेंट हो जाएगा! गाड़ी पलट जाएगी,”


निखिल ने कुछ आगे ले जा कर गाड़ी रोक दी और बाहर निकलते हुए बोला।

“यहाँ से आगे हमें पैदल जाना होगा, गाड़ी घने जंगल में नहीं जा सकती,”


“निखिल पागल हुए हो क्या? अंधेरी रात में, बीच जंगल में मेकआउट करने का भूत चढ़ा है? कोई शेर-वेर मिल गया तो बढ़िया थ्रीसम हो जाएगा, नहीं?”


“कम आउट माय सेक्सी सार्कैज़म क्वीन!” निखिल ने अनंतिका को बाँह पकड़ कर गाड़ी से उतारा और किसी छोटे बच्चे की तरह अपने कंधे व पीठ पर चढ़ा लिया। 


“आपके सैंडल बहुत महंगे हैं, इन्हें जंगल की ज़मीन पर मत रखिए मैले हो जाएँगे। आपका ये ग़ुलाम आपकी ख़िदमत में हाज़िर है,”


“हाहाहा…निखिल यू आर सो फ़िल्मी!”

घने जंगल के घुप्प अंधकार में झींगुरों की आवाज़ तेज हो रही थी, जो आने वाली बारिश का संकेत थी। आगे बढ़ते निखिल और अनंतिका को जुगनुओं का एक समूह दिखायी दिया जो तेज़ी से अपनी दिशा बदल रहा था। 


निखिल और अनंतिका कुछ और आगे बढ़े ही थे कि बारिश शुरू हो गयी। 


“लो बेटा! रोमैन्स की धधकती आग पर ऊपर वाले ने ठंडा-ठंडा पानी डाल दिया,”


“ये पानी इस आग को और भड़काने का काम करेगा मेरी जान, सामने देखो,”

अनंतिका ने सामने देखा। पेड़ों के बीच लकड़ी का बना एक पुराना लेकिन खूबसूरत कैबिन नज़र आया। पूरे कैबिन पर जंगली फूलों की लताओं और पत्तियों का आवरण चढ़ा हुआ था। जब तक दोनों कैबिन में पहुँचे वे सर से पैर तक भीग चुके थे। अनंतिका का सूट उसके भीगे बदन से यूँ चिपक गया था जैसे किसी ने कपड़े की जगह उसके जिस्म पर रंग की एक परत चढ़ा दी हो। बारिश और वातावरण में बढ़ती ठंड का उन दोनों पर कोई असर ना था। दोनों के जिस्मों में ज्वालामुखी सी आग धधकी हुई थी। निखिल ने अनंतिका के सर से पैर तक हर एक अंग को चूमा। 


अनंतिका अपने जिस्म से चिपके गीले कपड़े एक-एक कर के उतारने लगी। 

“ये क्या कर रही हो अनी! ठंड लग जाएगी, सर्दी हो जाएगी!” निखिल बिना पलक झपकाए, अनंतिका ने भीगे जिस्म को देखते हुए बोला, जो परत दर परत उसके सामने नुमायाँ हो रहा था, और उसके होश उड़ा रहा था।


“मेरे जिस्म की गर्मी बनाए रखना तुम्हारी ड्यूटी भी है और चैलेंज भी अकाउंटेंट साहब,” अनंतिका की आँखों में शरारत उभरी। अपने जिस्म से वो आख़री कपड़ा भी उतार चुकी थी, उसके जिस्म पर अब सिर्फ़ उसकी जूअल्री और पैरों में सैंडल थी। 


निखिल अनंतिका की ओर बढ़ा तो अनंतिका कैबिन का दरवाज़ा खोल कर बाहर खुले जंगल में आ गयी। बारिश में भीगता उसका जिस्म सोने सा चमक रहा था। निखिल ने अपने कपड़े उतारे और बाहर आ कर अनंतिका से लिपट गया। निखिल उसके जिस्म से ढलकती पानी की बूँदें चाट रहा था, अनंतिका की आँखें बंद हो गयीं और होंठों से मदहोशी में डूबी कराह निकली। निखिल ने अनंतिका को छोटे बच्चे की तरह कमर से पकड़ कर अपनी गोद में उठाया। अनंतिका ने अपनी टाँगे निखिल की कमर पर लपेट लीं और बाहें उसके गले में डाल कर उसे चूमने लगी। दोनों की साँसें तेज हो गयीं, उन्माद भरी सिसकारियों के साथ दोनों के भीगे जिस्म आपस में तेज़ी से घर्षण करने लगे। 

निखिल ने अनंतिका की पीठ एक पेड़ के तने से सटा दी और उसमें समा जाने की कोशिश करने लगा। तेज बारिश के शोर में उनकी सिसकारियाँ और जिस्मों के घर्षण की आवाज़ डूब रही थी, तभी अचानक, वातावरण में अनंतिका की तेज और आतंकित चीख गूंजी।


 

कहानी जारी है  


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